लाइन से हटकर चल रहे हैं ईरान के नए राष्ट्रपति, 44 साल के सुन्नी मुसलमान नेता पर लिया बड़ा फैसला

ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने अपनी सरकार बनाने के बाद, उसके फैसले भी अपने हिसाब से लेने शुरू कर दिए हैं. पेजेश्कियान ने ग्रामीण विकास के उपराष्ट्रपति पद के लिए एक सुन्नी नेता पर भरोसा किया है. ईरान की आबादी में महज 10 फीसद सुन्नी अल्पसंख्यक हैं और इतने बड़े पद के लिए पेजेश्कियान का अल्पसंख्यक नेता को चुनने का फैसला ईरान की लाइन से हटकर माना जा रहा है.
ईरान राष्ट्रपति की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया, “राष्ट्रपति ने अपने आदेश से अब्दुलकरीम होसैनजादेह को उनके बहुमूल्य अनुभव की वजह ग्रामीण विकास और देश के वंचित क्षेत्रों का उपराष्ट्रपति नामित किया है.”
अब्दुलकरीम ने उठाई है अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर आवाज
1979 की क्रांति के बाद से बहुत ही कम सुन्नी समुदाय के ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रपति के मामलों से संबंधित विभागों का नेतृत्व सौंपा गया हो. 44 साल के अब्दुलकरीम 2012 में पहली बार ईरान की नागहादेह और ओशनावीह से सांसद चुने गए थे. अब्दुलकरीम ईरान के सुन्नियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं. अपने चुनाव अभियान के दौरान पेजेश्कियन ने महत्वपूर्ण पदों पर जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों को जगह देने का वादा किया था.
हाल ही में पेजेश्कियान की ओर से पेश की गई उनकी कैबिनेट में किसी भी सुन्नी मुस्लिम नेता को जगह नहीं दी गई थी, जिसके बाद से लगातार उन पर भेदभाव का सवाल उठ रहा था. इस फैसले के बाद लग रहा है, इन आरोपों को दूर करने के लिए पेजेश्कियान ने ये फैसला लिया है.
ईरान में सुन्नी आबादी
बहरीन, अजरबैजान के साथ ईरान उन चुनिंदा देशों में से एक जहां शिया आबादी अक्सरियत में है. ईरान में सुन्नी महज 10 फीसद हैं, जोकि अरब, कुर्द, तुर्कमेन, बलूच और अचोमी फारसी जैसी सुन्नी मुसलमान जातीय समूहों का हिस्सा हैं. ईरान में वैसे तो अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसाओं के मामले कम आते हैं, लेकिन ईरान में सुन्नियों को अलग से अपनी मस्जिद न बनाने देना, शिया इस्लाम से अलग मान्यताओं पर बेहस जैसे मामले सामने आए हैं.

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