अगर बनी ‘खिचड़ी’ सरकार तो कैसे आएगी बहार, अमेरिका की इस रिपोर्ट में छिपा है सार

लोकसभा चुनाव के नतीजे लगभग सामने आ चुके हैं. जिस पर शेयर बाजार ने किस तरह का रिएक्शन दिया है. वो सभी ने देख लिया है. शेयर बाजार पौने 6 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुआ है. इससे साफ हो गया है ​कि कि शेयर बाजार को सिर्फ स्थिर सरकार पसंद है. 4 जून को शेयर बाजार का रिएक्शन सिर्फ एक ट्रेलर है.
अमेरिका की ब्रोकरेज फर्म यूबीएस की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि एनडीए सत्ता में आए या फिर कोई और, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने या फिर कोई दूसरा शख्स. निवेशकों को निराशा ही हाथ लग सकती है. यूबीएस ने अपनी रिपोर्ट में तीन सिनेरियो को सामने रखा है. इन तीनों परिस्थितियों में बाजार की स्थिति वैसी नहीं रहने वाली है, जिस तरह की बीते 10 सालों में देखने को मिली थी. आइए यूबीएस के तीन सिनेरियो के आसरे समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर शेयर बाजार किस तर​ह से रिएक्श करता हुआ दिखाई दे सकता है?
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘खिचड़ी’ सरकार
यूबीएस ने अपने पहले सिनेरियो में जो बात कही है वो काफी दिलचस्प है. अगर नरेंद्र मोदी विशुद्ध एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री बनते हैं तो सरकार वैसी दमदार नहीं होगी, जिस तरह से बीते 10 वर्षों में देखने को मिली थी. ऐसे में शेयर बाजार में अस्थिरता देखने को मिल सकता है. क्योंकि शेयर बाजार को एक स्थिर सरकार पसंद है. बीते 10 सालों की बात करें तो सेंसेक्स ने निवेशकों को 3 जून 2024 तक 217 फीसदी का रिटर्न दिया है. वहीं नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में सेंसेक्स ने 61 फीसदी का रिटर्न दिया था. जबकि दूसरे दौर में 97 फीसदी का रिटर्न देखने को मिला. अब जब नरेंद्र मोदी अगले 5 साल ‘खिचड़ी’ सरकार का नेतृत्व करेंगे तो शेयर बाजार में वैसी ही तेजी देखने को मिलेगी? ये अपने आप में एक मुश्किल सवाल है.
अगर बिना मोदी के बने एनडीए सरकार
यूबीएस ने एक दूसरी परिस्थति भी खड़ी की है. अगर एनडीए सरकार बिना नरेंद्र मोदी के फेस के बने तो? जी हां, ये भी संभव हो सकता है. एनडीए के घटक दल एक नए चेहरे को भी सामने खड़ा सकते हैं. ऐसे में शेयर बाजार का रिएक्शन कैसा होगा? ये भी अपने आप में बड़ा सवाल है. जानकारों की मानें तो ऐसी परिस्थितियों में भी शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिल सकती है. उसका कारण भी है. शेयर बाजार का सेंटीमेंट नए चेहरे को देखकर गड़बड़ा सकता है. भले ही नया पीएम पुरानी पॉलिसी को चेंज ना करें, लेकिन उन पॉलिसी को समझने और उन्हें सुचारू रूप से चलाने में मुश्किल खड़ी हो सकती है. दूसरी बात ये है कि क्या नया पीएम फेस शेयर बाजार निवेशकों को पसंद भी आएगा? ये भी बड़ा सवाल होगा. ऐसे में निवेशकों को नुकसान की गारंटी मिलनी तय मानी जा सकती है.
क्या पाला बदल सकते हैं सहयोगी दल?
यूबीएस की रिपोर्ट ने एक तीसरी परिस्थिति भी सामने रखी है. वो ये कि बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दल पाला बदलकर दूसरे गठबंधन से हाथ मिला सकते हैं. मुमकिन है कि दूसरा गठबंधन उनके सहयोग से सरकार भी बना ले. ऐसे में शेयर बाजार और ज्यादा रिएक्ट कर सकता है. उसका कारण है कि अलग दल या गठबंधन की सरकार पुरानी पॉलिसी को बदलकर नई पॉलिसीज सामने लाएगी. जिसका असर शेयर बाजार पर साफ देखने को मिल सकता है.
मिड टर्म या फिर लॉन्ग टर्म में वो पॉलिसीज कितनी सही हैं, इसका अंदाजा लगाना भी काफी मुश्किल होता है. जिसकी वजह से शेयर बाजार पैनिक कर सकता है. जानकारों की मानें तो शेयर बाजार लंबे समय से चली आ रही मजबूत सरकार की पॉलिसी के साथ आगे बढ़ता है. जब भी सरकार बदलती है या फिर पुरानी सरकार कमजोर होती है तो पॉलिसी लेवल पर अस्थिरता की भावना खड़ी हो जाती है. जिसका नेगेटिव इंपैक्ट शेयर बाजार में देखने को मिलता है.
शेयर बाजार का अ’मंगल’
4 जून को चुनाव नतीजों के बीच शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. बांबे स्टॉक एक्सचेंज का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 5.74 फीसदी यानी 4389.73 अंकों की गिरावट के साथ 72,079.05 अंकों पर बंद हुआ है. जबकि कारोबारी सत्र के दौरान सेंसेक्स 8.88 फीसदी यानी 6,234.35 अंकों की गिरावट भी आ गई थी. वहीं दूसरी ओर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का प्रमुख सूचकांक निफ्टी में 5.93 फीसदी यानी 1,379.40 अंकों की गिरावट के साथ 21,884.50 अंकों पर बंद हुआ. कारोबारी सत्र के दौरान निफ्टी में 8.52 फीसदी यानी 1,982.45 अंकों की गिरावट देखने को मिली थी. शेयर बाजार में इस गिरावट की वजह से शेयर बाजार निवेशकों को 30.41 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है.

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