अनुरा कुमारा दिसानायके: आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका में लेफ्टिस्ट नेता की जीत के क्या हैं मायने?

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में पहली बार एक वामपंथी नेता को सत्ता की बागडोर मिली है. JVP नेता अनुरा दिसानायके श्रीलंका के 9वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले चुके हैं. अनुरा करीब 2 साल पहले आर्थिक संकट के चलते हुए जन विद्रोह का प्रमुख चेहरा थे, इस दौरान वह जनता की मजबूत आवाज बने, इस विद्रोह ने राजपक्षे परिवार को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
इसके बाद श्रीलंका के युवाओं और ग्रामीण इलाकों में अनुरा दिसानायके का क्रेज बढ़ने लगा, 2 साल के संघर्ष का परिणाम यह हुआ कि साल 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में 3 फीसदी वोट पाने वाली पार्टी, 2024 के चुनाव में 42.31 फीसदी वोट के साथ जीत हासिल करने में कामयाब रही. वहीं दिसानायके ने शपथ ग्रहण के बाद देश को दिए अपने पहले ही संबोधन में साफ कर दिया है कि आर्थिक सुधार और भ्रष्टाचार मुक्त छवि बनाना उनकी सरकार की प्राथमिकता है.
श्रीलंका में वामपंथी नेता की जीत के मायने?
श्रीलंका लंबे समय से बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है. 2022 में हुए आर्थिक और सियासी संकट के लिए राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार माना जाता है, यही वजह है कि इस चुनाव में उनके परिवार के उम्मीदवार नमल राजपक्षे को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा आर्थिक संकट के बाद देश की बागडोर संभालने वाले रानिल विक्रमसिंघे को भी राजपक्षे परिवार की नजदीकी का खामियाजा भुगतना पड़ा है. 1982 से अब तक श्रीलंका के इतिहास का यह पहला राष्ट्रपति चुनाव है जब एक वामपंथी नेता सत्ता के शिखर पर पहुंचा है. ऐसे में आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका को अनुरा दिसानायके से नीति और नियति दोनों में ही बदलाव की उम्मीद है.
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1. आर्थिक सुधार और बदलाव के पक्ष में जनता
अनुरा दिसानायके एक कड़े मुकाबले में जीत हासिल कर श्रीलंका के राष्ट्रपति बने हैं. उन्होंने अपने चुनाव प्रचार को अर्थव्यवस्था में सुधार और बदलाव पर केंद्रित रखा. यही वजह रही कि ग्रामीण इलाकों और युवाओं में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई. अनुरा एक वामपंथी नेता हैं और वामपंथ विचारों की झलक उनकी सरकार के कामकाज और नीतियों में जरूर दिखाई देगी, हालांकि देश को आर्थिक संकट से निकालना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी, इसके लिए वह IMF के साथ समझौते को जारी रखने के लिए प्रतिबद्धता जता चुके हैं.
वहीं शपथ ग्रहण के बाद दिसानायके ने अपने पहले संबोधन में सरकार की नीतियों को लेकर भी संकेत दे दिए हैं. उन्होंने कहा कि श्रीलंका अलग-थलग नहीं रह सकता और उसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है. दिसानायके का कहना है कि वह कोई जादूगर नहीं हैं बल्कि उनका उद्देश्य आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को ऊपर उठाने की सामूहिक जिम्मेदारी का हिस्सा बनना है.
2. श्रीलंका की जनता के लिए भ्रष्टाचार अहम मुद्दा
चुनाव के दौरान दिसानायके ने भ्रष्टाचार विरोधी संदेश और राजनीतिक संस्कृति बदलने का वादा किया था, उनके इस वादे ने युवा मतदाताओं को आकर्षित किया जो श्रीलंका की राजनीतिक व्यवस्था में लंबे समय से बदलाव की मांग कर रहे हैं. दिसानायके ने शनिवार को वोट डालने के बाद कहा था कि , ‘हमारे देश को नई राजनीतिक व्यवस्था की जरूरत है.’
इसके अलावा वह चुनाव प्रचार के दौरान श्रीलंका सरकार के कई प्रोजेक्ट्स पर उंगली उठाते रहे हैं. दिसानायके ने सरकार के कामकाज में पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. ऐसे में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करना और अपनी सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त छवि बनाना भी अनुरा दिसानायके के लिए बड़ी चुनौती होगी.
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3. गरीबों पर कम हो सकता है टैक्स का बोझ
आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका की सत्ता पर काबिज रानिल विक्रमसिंघे ने काफी हद तक महंगाई कम करने के प्रयास किए थे, माना जाता है कि IMF के साथ समझौते के लिए टैक्स में की गई वृद्धि से जनता उनके खिलाफ हो गई. हालांकि IMF की डील से श्रीलंका के आर्थिक संकट में काफी कुछ सुधार हुआ है. इस साल तीन साल में पहली बार वृद्धि की उम्मीद है और आर्थिक संकट के समय के 70% से घटकर 0.5% पर आ गई है.
लेकिन देश की लाखों गरीब जनता को दिसानायके से अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ-साथ टैक्स कटौती और महंगाई कम करने की भी उम्मीद है. ऐसे में दिसानायके के सामने IMF डील को जारी रखने के साथ-साथ जनता को टैक्स के बोझ से राहत देना एक बड़ा टास्क होगा. मुमकिन है वामपंथी विचारों वाली पार्टी अमीर उद्योगपतियों पर अधिक टैक्स लगाकर जनता को थोड़ी राहत दे, लेकिन श्रीलंका की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि फिलहाल उनकी सरकार का फोकस 36 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज चुकाने पर होगा जिससे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके.

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