अब और नहीं बिकेंगी सरकारी कंपनियां, बल्कि सरकार करेगी ये बड़ा काम

भारत सरकार की कौन-सी संपत्ति, कंपनी में निवेश किया जाना है, किसे बेचा जाना है? इसका मैनेजमेंट करने के लिए सरकार ने एक विभाग ‘निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग’ (DIPAM) बनाया है. इसी विभाग के सचिव का कहना है कि अब सरकार का लक्ष्य सरकारी कंपनियों को बेचने यानी विनिवेश पर नहीं है. बल्कि सरकार ने एक नया प्लान बनाया है. आखिर क्या है सरकार का इरादा चलिए समझते हैं…
दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडे का कहना है कि सरकार अब सिर्फ अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए विनिवेश यानी सरकारी कंपनियों को पूरी तरह या उनमें हिस्सेदारी बेचने पर जोर नहीं देगी. इसके बजाय उसका ध्यान सरकारी कंपनियों (PSUs) के प्रदर्शन को बेहतर करने पर होगा.
PSUs का मार्केट कैप हुआ 4 गुना
तुहिन कांत पांडे ने कहा कि शेयर मार्केट में 77 सरकारी कंपनियां लिस्टेड हैं. इनका बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) पिछले तीन सालों में चार गुना बढ़कर लगभग 73 लाख करोड़ रुपए हो गया है. इनमें (SBI जैसे) सरकारी बैंकों से लेकर (LIC जैसी) बीमा कंपनी शामिल है. वैसे भी बीते कुछ सालों में बैंकिंग, फाइनेंस, एनर्जी और रेलवे सेक्टर की सरकारी कंपनियों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया है.
इतना ही नहीं इनके शेयर प्राइस की ग्रोथ ने इंवेस्टर्स को बढ़िया रिटर्न दिया है. सरकारी कंपनियों के टोटल एमकैप को बढ़ाने में एलआईसी की अहम भूमिका है. एलआईसी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 7.2 लाख करोड़ रुपए हो चुका है.
पीटीआई-भाषा की एक रिपोर्ट के मुताबिक तुहिन कांत पांडे का कहना है कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है. बाजार ने इनका बेहतर मूल्यांकन भी करना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं बाजार की नजर इन कंपनियों पर रहने से कंपनियों का कैपिटल एक्पेंडिचर और मैनेजमेंट सुधरा है. जबकि निवेशकों की धारणा भी बदली है.
बजट में भी विनिवेश का लक्ष्य नहीं
तुहिन कांत पांडे ने कहा कि विनिवेश को लेकर सरकार ने अपनी नीति बदली है. सरकार ने अब बजट में विनिवेश से जुटाए जाने वाली रकम का कोई स्पष्ट लक्ष्य देना बंद कर दिया है. बजट में अब कैपिटल जुटाने का प्रावधान है. इसमें विनिवेश के साथ-साथ एसेट मोनेटाइजेशन दोनों शामिल हैं. चालू वित्त वर्ष में सरकार ने इसके लिए 50,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है, जो पिछले वित्त वर्ष में 30,000 करोड़ रुपए था.
उन्होंने कहा कि दीपम अब एक सुनियोजित विनिवेश रणनीति पर चलेगा. सरकार को अपने शेयरों पर भरोसा क्यों नहीं करना चाहिए? अब हम यह नहीं कह सकते कि ये सरकार का टारगेट है जो किसी भी स्थिति में शेयर को बेच दें. इस दृष्टिकोण से कोई मदद नहीं मिली है.

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