अमेरिका तैयार कर रहा मेगा मशीन, पूरी दुनिया में बदल सकता है युद्ध की तस्वीर

अमेरिका सोवियत युग के ऐसे हथियार पर काम कर रहा है जो आने वाले वक्त में युद्ध की तस्वीर बदल सकता है. इसमें वॉरशिप और कार्गो प्लेन की सभी खूबियां होंगी. अमेरिका का दावा है कि ये समंदर, रेगिस्तान और बर्फीले युद्धक्षेत्र में सेना की सबसे बड़ी ताकत बनेगा. माना जा रहा है कि वो हथियार कैस्पियन सी मॉन्स्टर हो सकता है.
सोवियत संघ के जमाने का कैस्पियन सी मॉन्स्टर जो कोल्ड वॉर के दौरान समंदर पर राज करता था. लहरों से बात करता एक ऐसा ग्राउंड इफेक्ट व्हीकल था जिसमें एक वॉरशिप और कार्गो शिप की खूबियां थी.1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के साथ इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया.
रेगिस्तान और बर्फीले इलाकों में भी ऑपरेशन में माहिर
अब 34 साल बात समंदर के ऐसे ही दैत्य पर अमेरिका काम कर रहा है, जो आने वाले सालों में ना सिर्फ समंदर बल्कि रेगिस्तान और बर्फीले इलाकों पर ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा. हथियार का नाम लिबर्टी लिफ्टर है. जो कि 81 हजार किलो से ज्यादा पेलोड ले जाने में सक्षम होगा. इसकी स्पीड 325 किमी प्रति घंटे से ज्यादा हो सकती है.
लिबर्टी लिफ्टर दुनिया का सबसे बड़ा कार्गो शिप होगा.हालांकि इसकी तकनीक सोवियत काल के कैस्पियन सी मॉन्स्टर जैसी है, लेकिन इसमें कई बदलाव करके इसे बेहद उन्नत बनाया जा रहा है. लिबर्टी लिफ्टर समंदर से कुछ मीटर ऊपर उड़ान भरेगा. इसके साथ ही ये रेगिस्तान और बर्फीले क्षेत्र में भी ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम होगा.
रडार की पकड़ से रहता है दूर
इसकी सबसे बड़ी खूबी रडार के पकड़ नहीं आना है. सतह से कुछ मीटर ऊपर उड़ने की वजह से लिबर्टी लिफ्टर किसी भी रडार की पकड़ से बाहर होगा. हालांकि, जरूरत पड़ने पर कुछ वक्त के लिए 10 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने में यह सझम होगा. लिबर्टी लिफ्टर एक ग्राउंड इफेक्ट व्हीकल यानी GEV है जिसे इक्रानोप्लेन भी कहा जाता है.

इक्रानोप्लेन समुद्र की सतह से कुछ मीटर ऊपर उड़ान भरते हैं
इनकी पेलोड क्षमता काफी ज्यादा होती है
ये समंदर और जमीन दोनों पर लैंड कर सकते हैं
इनके टेकऑफ के लिए ज्यादा बड़े रनवे की जरूरत नहीं होती

1990 के बाद दुनिया की कोई भी सेना इक्रानोप्लेन का इस्तेमाल नहीं करती.. अमेरिका का दावा है कि 2027 तक पहला इक्रानोप्लेन अमेरिकी सेना में शामिल हो जाएगा. ऐसे में मॉडर्न वॉरफेयर में अमेरिका इस खास तकनीक का इस्तेमाल करने वाले इकलौता देश होगा.
(टीवी9 ब्यूरो रिपोर्ट)

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