अमेरिका ने भारत को क्यों कहा क्वाड का लीडर, आखिर इसके पीछे क्या है वजह?
क्वाड है क्या? आइए सबसे पहले इसी को समझते हैं. क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा बनाया गया एक समूह जो इन देशों के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता का एक मंच प्रदान करता है. यह मुक्त, खुले और समृद्ध इंडो-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करता है और इन देशों को एक साथ लाता है. सही मायने में देखा जाए तो इसका मुख्य उद्देश्य इंडो-पैस्फिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व को रोकना है और यहां पावर का चैक एंड बैलेंस बनाए रखना है. साथ ही इन देशों द्वारा उम्मीद जताई गई है कि इस समूह में आने वाले सालों में कुछ और देश भी जुड़ेंगे. अब सवाल फिर वही खड़ा हो रहा है कि अमेरिका अब अचानक से भारत को क्वाड का एक लीडर मान रहा है.
सबसे पहला कारण है, अमेरिका दौरे के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेंगे जो कि इस बार रूस के शहर कज़ान में होने जा रहा है. इस सम्मेलन का आयोजन रूस द्वारा किया जा रहा है, जिसमें भारत, दक्षिण अफ्रिका, चीन और ब्राजील भाग लेंगे. इस सम्मेलन में ब्रिक्स करेंसी (R5) लाने सहित कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा होने वाली है. इस फैसले को लेकर अमेरिका की चिंता बढ़ी हुई है. अगर ब्रिक्स करेंसी का व्यापार में इस्तेमाल किया जाता है तो इसका सीधा असर अमेरिकी डॉलर पर देखने को मिल सकता है.
यह है दूसरा कारण
वहीं इसके अलावा दूसरा कारण जो माना जा रहा है, अमेरिका फिलहाल डैमेज कंट्रोल में करने की स्थिति में है. हाल ही में खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत पन्नू ने अमेरिका की एक जिला कोर्ट में एक लॉसूट फाइल किया है, जिसमें उसने भारत सरकार पर उसकी हत्या की कोशिश के आरोप लगाए हैं. इस पर अमेरिका की जिला कोर्ट ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को तलब किया है. इसे लेकर प्रशासन की कोशिश है कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में किसी प्रकार की खटास न आए.
अमेरिका-चीन पावर गेम
वहीं चर्चा ये भी है कि अमेरिका के इस तरह के बयान के पीछे चीन के साथ पावर गेम भी बड़ा कारण है. चीन यह जानता है कि क्वाड का मुख्य उद्देश्य इंडो-पैस्फिक रीजन में चीन नजर बनाए रखने के लिए किया गया है, ऐसे में संभव है कि वो क्वाड की निंदा करेगा. वहीं दूसरी ओर रूस भी इसे लेकर इतना सहज नहीं दिखाई नहीं है. दूसरी ओर चीन और रूस ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ऐसे में अमेरिका रणनीतिक तौर पर इन दोनों को किसी प्रकार का मौका नहीं देना चाहता, इसलिए भारत के समर्थन में इस तरह की बयान दिए जा रहे हैं.
क्या कहते हैं जानकार?
जानकारों की मानें तो इस बयान की केवल मीडिया में चर्चा है लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई महत्व नहीं है. इस विषय पर जवाहर लाल नेहरू के प्रोफेसर और विदेशी मुद्दों के जानकार प्रो. पुष्पेश पंत ने कहा है कि यह अमेरिका का बैलेंस बयान है. इस बयान का कोई ज्यादा मतलब नहीं है. बाइडेन प्रशासन केवल दिखाने के लिए ऐसे बयान दे रहा है. भारत में इस बयान पर काफी चर्चा हो रही है लेकिन अमेरिका में इस पर बात नहीं हो रही है. वहीं क्वाड को लेकर अमेरिका पहले से ही इतना गंभीर नहीं रहा है और इसमें केवल 4 देश ही हैं.
रिपोर्टः सज्जन कुमार