अमेरिका में बदलेगा 250 साल का इतिहास, क्या कमला हैरिस बनेंगी US की पहली महिला राष्ट्रपति?
विश्व के किसी भी देश में पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीलंका की सिरीमाओ भंडारनायके थीं. वे 1960 में प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई थीं. उनके बाद इंदिरा गांधी 1966 में हुईं और फिर गोल्डामायर इजराइल की प्रधानमंत्री 1969 में बनीं. मार्ग्रेट थैचर का नंबर छठा था, वे 1990 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई थीं. बीच में अर्जेंटीना में इसाबेल पेरोन और केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य में एलिजाबेथ डोमिटियन भी प्रधानमंत्री रहीं. मजे की बात कि विश्व में लोकतंत्र, विश्व बंधुत्त्व और अभियक्ति की आजादी के सबसे बड़े पैरोकार अमेरिका में अभी तक कोई महिला सरकार प्रमुख (राष्ट्रपति) नहीं रही. अब अगर कमला हैरिस वहां राष्ट्रपति चुनाव जीत गईं तो इतिहास रच देंगी. 1777 में आजाद हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में ढाई सौ साल के इतिहास में कोई भी महिला राष्ट्रपति नहीं बनीं.
कमला के जीतने के कयास लगा रहे हैं राजनीतिक पंडित!
कमला महिला हैं और अश्वेत भी. उनके पिता जमैका (अफ्रीकी) मूल के थे और मां भारतीय मूल की ब्राउन. ऐसे में कमला का राष्ट्रपति बनना इतिहास की दुर्लभ घटना होगी. हंसमुख कमला अपने प्रतिद्वंदी रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में युवा हैं. ट्रंप 80 के करीब हैं और कमला 67 की. 10 सितंबर को पेंसिलवानिया के फिलाडेल्फिया शहर में हुई प्रेसीडेंशियल डिबेट में कमला अपने प्रतिद्वंदी ट्रंप पर भारी पड़ी हैं. कई मुद्दों पर उन्होंने ट्रंप की बोलती बंद कर दीं. इस डिबेट के बाद राजनीतिक प्रेक्षक कह रहे हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कमला के जीतने के आसार हैं. हालांकि अमेरिका के इतिहास को देखते हुए ऐसा कहना आसान नहीं है. यह सच है कि पिछले दो दशक से अमेरिका में बदलाव की बयार चल रही है. 2008 में एक अश्वेत बराक ओबामा का जीतना भी एक ऐतिहासिक घटना थी. मगर अभी भी वहां महिला जीतेगी, इसे लेकर कोई भी श्योर नहीं है.
गंभीर मुद्दा है गर्भपात कानून
डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार की उम्मीदवार कमला हैरिस के जीतने से अमेरिका की नीतियों में कोई खास बदलाव तो नहीं आएगा लेकिन अमेरिका के अंदरूनी मामलों में काफी परिवर्तन होंगे. सबसे बड़ा बदलाव महिलाओं के संदर्भ में होगा. लंबे समय से अमेरिका में एक बहस छिड़ी हुई है कि महिला अपने शरीर को लेकर स्वतंत्र है या नहीं. गर्भपात जैसे मुद्दों पर अभी तक अमेरिका में विक्टोरियन कानून लागू हैं. कुछ दशक पहले अमेरिका में एक संघीय (फेडरल) कानून बनाया गया था कि अमेरिकी महिलाएं एक निश्चित अवधि के भीतर गर्भपात करवा सकती हैं. मगर 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए तो इस कानून को राज्यों के खाते में डाल दिया. अमेरिका के कुछ राज्य गर्भपात को लेकर बहुत दकियानूसी हैं इसलिए 20 राज्यों में इस पर रोक लग गई. इसके विपरीत कुछ में छूट है.
गर्भपात पर खिसिया गए ट्रंप
श्वेत-अश्वेत दोनों समुदाय की महिलाएं गर्भपात को लेकर एक रुख रखती हैं. अश्वेत परिवारों में आम तौर पर मर्द ही कमाते हैं, इसलिए वे परिवार को ज्यादा नहीं बढ़ने देना चाहतीं. दूसरी तरफ श्वेत महिलाएं चूंकि नौकरीपेशा हैं इसलिए वे भी अनचाही संतान को जन्म नहीं देना चाहतीं. बोस्टन में रह रहे भारतीय मूल के राजनीतिक प्रेक्षक महेंद्र सिंह बताते हैं, इस मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप खिसिया गए. क्योंकि डेमोक्रेट्स हों या रिपब्लिकन के समर्थक इस मुद्दे पर समान कानून के पक्षधर हैं. अमेरिकी समाज में इसे महिला की आजादी से जोड़ा जाता है. मजे की बात कि अमेरिका के कुछ राज्य गर्भपात के मुद्दे पर महिला आजादी चाहते हैं और कुछ इस पर संपूर्णतया रोक. जो बाइडेन और उनके पहले के डोनाल्ड ट्रंप दोनों राष्ट्रपतियों ने अमेरिका को किसी न किसी संकट में फंसाने की सदैव कोशिशें कीं. ट्रंप ने कोरोना में अमेरिकियों को बचाने के कोई दमदार प्रयास नहीं किए और बाइडेन ने यूक्रेन को लेकर कई समर्थक देशों को अपने से दूर किया.
डोनाल्ड ट्रंप
यूक्रेन युद्ध से अमेरिका बर्बाद हुआ
ट्रंप ने कमला पर वामपंथी होने का आरोप लगाया और कमला ने कहा, चूंकि ट्रंप खुद तानाशाह हैं इसलिए वे पुतिन के दोस्त हैं. लेकिन असली मुद्दा महंगाई का है, जिसे रोकने पर कोई स्पष्ट नहीं बोल सका. इसमें कोई शक नहीं कि यूक्रेन-रूस युद्ध ने अमेरिका में महंगाई चरम पर है. महेंद्र सिंह बताते हैं कि इसका निदान किसी के पास नहीं है. लेकिन लोगों को भरोसा है कि ट्रंप यूक्रेन युद्ध को बंद कराने का प्रयास करेंगे. उन्हें लगता है कि कमला सत्ता में आती हैं तो युद्ध अभी चलेगा. ट्रंप ने पूरी बहस में कमला की अनदेखी की और निशाने पर बाइडेन को रखा. कमला ने कहा, इस चुनाव में जो बाइडेन नहीं बल्कि कमला हेरिस चुनाव लड़ रही है. इसी जून में हुई प्रेसीडेंशियल डिबेट में कमला रेस में नहीं थीं. तब तक मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन ही डेमोक्रेटिक उम्मीदवार थे. मगर उस बार की डिबेट में बार-बार लड़खड़ाने के बाद डेमोक्रेट्स का दबाव पड़ा और बाइडेन ने स्वयं ही उपराष्ट्रपति कमला हेरिस का नाम राष्ट्रपति का उम्मीदवार हेतु प्रस्तावित किया. पार्टी ने इस पर मुहर लगा दी.
अश्वेत वोटरों से उम्मीद
इसके बाद से कमला हैरिस मुखर होकर चुनावी रेस में आ गईं. उनको अमेरिका के अश्वेत समुदाय की तरफ से भारी सपोर्ट की उम्मीद है. मगर इसमें दो बाधाएं हैं. एक तो अमेरिका में अधिकांश अश्वेत मूल के लोग ब्लू कॉलर जॉब में हैं. वे प्रति घंटा काम करने वाले मजदूर हैं. वे वोटिंग के रोज वोट देने गए तो उनके काम का हर्जा होगा और यह समय वेतन में से कट जाएगा. आज की तारीख में कोई भी मजदूर अपना वेतन में कटौती बर्दाश्त नहीं कर सकता. मालूम हो कि अमेरिका में पोलिंग के लिए छुट्टी नहीं मिलती. जबकि ट्रंप के पीछे उन्मादी श्वेत समुदाय की पूरी लॉबी है, जो उन्हें वोट कर आएगी. इसलिए इतनी आसानी से कमला हेरिस की जीत की भविष्यवाणी नहीं ही की जा सकती.
कमला हैरिस
भारतीय वोटरों का बड़ा तबका अपनी पहचान मोदी से जोड़ता है
हालांकि, कमला को अश्वेत के अलावा ब्राउन साउथ एशियंस के वोट मिलने की भी उम्मीद है. उनकी मां का भारतीय होना इंडियन डायसपोरा को प्रभावित कर सकता है. इसलिए कमला हेरिस भारतीय लोगों से मेल-मिलाप कर भी रही हैं. लेकिन भारतीय मूल के लोगों का बड़ा हिस्सा डोनाल्ड ट्रंप को पसंद करता है. उसकी एक वजह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्रंप से मैत्री भाव है. पिछले राष्ट्रपति चुनाव में तो प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप को जितवाने के लिए प्रयासरत भी थे. डोनाल्ड ट्रंप की छवि अमेरिका में घोर राष्ट्रवादी और कट्टरपंथी की है. मगर अमेरिका में चाहे रिपब्लिकन जीतें या डेमोक्रेट्स प्रवासियों के मामले में उनका रवैया कट्टरपंथी ही होता है. कुशल प्रवासी मजदूर भी चाहिए और आप्रवासन नीति को कठोर भी बनाना है. आज भी विदेश जाने के लिए इच्छुक लोगों के लिए अमेरिका (USA) ही मुख्य आकर्षण का केंद्र है. चाहे वे वैध तरीके से जाएं या डोंकी रूट से पर गंतव्य USA है. कुछ लोग तो कनाडा से घुसने की फिराक में रहते हैं.
प्रवासी नीति में बदलाव मुश्किल
ऐसा नहीं है कि भारतीय मूल की कमला हेरिस राष्ट्रपति का चुनाव जीत गईं तो भारत के लिए अमेरिका की राहें खुल जाएंगी. कोई बदलाव नहीं आएगा. यूं भी कोई पार्टी सत्ता में आए विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं आता. 10 सितंबर की प्रेसीडेंशियल डिबेट में इस मसले पर ट्रंप और कमला अपनी सफाई देते रहे. बराक ओबामा 2008 से 2016 तक दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति रहे. डेमोक्रेटिक दल से थे. भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और उनके बाद 2014 में आए नरेंद्र मोदी से खूब याराना जताया. मगर भारतीयों के अमेरिका आने के लिए पॉलिसी बहुत कड़ी कर दी. 2016 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और 2020 में आए जो बाइडेन भी प्रवासियों को ले कर कड़ाई करते रहे इसलिए यह उम्मीद करना कि कमला भारतीयों के प्रवासन को लेकर उदार होंगी, व्यर्थ है.
कमला से अश्वेत नाराज भी हैं
कमला हैरिस के प्रति अश्वेत समुदाय में एक नाखुशी भी है क्योंकि जब वे कैलिफोर्निया में अटॉर्नी जनरल थीं तब उन्होंने भारी संख्या में अश्वेत समुदाय के अपराधियों को सजा दिलवाई थी. इसके विपरीत श्वेत जज फिर भी उदारता दिखाते थे. ट्रंप ने इस तरफ इशारा किया भी. 10 सितंबर की डिबेट जिस फिला डेल्फिया में हुई वहां अश्वेत समुदाय सर्वाधिक हैं. इसके बावजूद अश्वेत समुदाय में कोई उत्साह नहीं दिखा. फिला डेल्फिया के अतुल अरोड़ा बताते हैं कि कमला ने मोर्चा तो जबरदस्त लिया. 11 को जो रिपोर्ट्स आई हैं, उसके निष्कर्ष अधिकतर ओबामा के लोगों ने निकाले हैं, इसलिए इस डिबेट के आधार पर पुख्ता कुछ नहीं कह सकते.