अरब देशों का वो राज़ जिसका वास्को डी गामा ने किया पर्दाफाश और इतिहास रच दिया

यह 15वीं सदी के अंत की कहानी है. यूरोप का दुनिया से संपर्क नहीं था और अरबों के जरिए सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत के बारे में थोड़ा-बहुत जानते थे. वे अपनी सारी सप्लाई खासकर मसाले और चाय अरब देशों से खरीदते थे पर उन्हें यह नहीं पता था कि ये सारा सामान अरब देश भारत से खरीदते हैं और फिर यूरोप को बेचकर कमाई करते हैं. 8 जुलाई 1497 को वास्को डी गामा भारत की खोज में निकला तो रास्ते में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. यहां तक कि अरब और भारत के समुद्री जहाजों को लूटना पड़ा.
11 महीने बाद भारत पहुंचे वास्को डी गामा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि यूरोप की जरूरत का सारा सामान यहां मौजूद था जो उसका देश और अन्य यूरोपीय देश अरब देशों से खरीदते थे. इससे यूरोप के लोगों का राजफाश हो गया और यूरोपीय देशों की नजरें भारत पर गड़ गईं. आइए जान लेते हैं पूरा किस्सा.
कोलंबस के पांच साल बाद निकला था वास्को डी गामा
भारत की खोज में सबसे पहले निकला कोलंबस रास्ता भटक कर अमेरिका पहुंच गया था. जिन द्वीप समूहों पर कोलंबस ने सबसे पहले कदम रखे उन्हें आज वेस्ट इंडीज कहा जाता है. इसके बाद वास्को डी गामा ने समुद्र के माध्यम से एशिया का रास्ता खोजने की ठानी. कोलंबस के पांच साल बाद वास्को डी गामा ने भारत का समुद्री रास्ता खोजने की कोशिश की. इसके लिए वह एक बड़े और चार छोटे जहाजों के साथ दो सौ से ज्यादा नाविक लेकर यूरोप से भारत के लिए निकला था. इसके पीछे कारण था पुर्तगाल का खाली होता खजाना.
शाही खजाना भरने के लिए रवाना किया
साल 1481 में जॉन द्वितीय यूरोपीय देश पुर्तगाल का राजा बना तो उसे शाही खजाना खाली मिला. वहां कुलीन वर्ग ऐश-ओ-आराम की जिंदगी बिताने के साथ दिनोंदिन ताकतवर हो रहा था. राजा की शक्तियां सीमित होती जा रही थीं. इसलिए उसने राजकीय कोष को भरने की ठानी और जॉन द्वितीय की नजर अफ्रीका के सोने और गुलामों के व्यापार पर पड़ी. फिर उसने देखा कि अरब देश मसालों के व्यापार से काफी मुनाफा कमा रहे हैं. फिर क्या था, उसने अपने जासूस रवाना कर दिए वो समुद्री रास्ता खोजने के लिए जिसके जरिए मसालों का व्यापार किया जा सके.
मिस्र और पूर्वी अफ्रीका से भारत तक के व्यापार के रास्ते को खोजने की कड़ी में जॉन द्वितीय ने एक जहाज भी रवाना किया जो अफ्रीका के दक्षिणी छोर से लौटा और राजा को बताया कि अफ्रीका पार कर समुद्री रास्ता उत्तर पूर्व दिशा में जाता है.
पुर्तगाल के साइनस शहर में जन्मे वास्को डी गामा के पिता यहां के राजा के किले के कमांडर थे.
दूसरे राजा ने भी जारी रखा अभियान
साल 1495 में मैनुएल प्रथम ने पुर्तगाल की सत्ता संभाली तो उसने भी जॉन द्वितीय की तरह एशिया तक पहुंचने के रास्ते की खोज जारी रखी और इसके लिए वास्को डी गामा सबसे उचित व्यक्ति लगा. पुर्तगाल के साइनस शहर में जन्मे वास्को डी गामा के पिता राजा के किले के कमांडर थे. इसलिए वह भी पुर्तगाल की नौसेना में शामिल हो गया. धीरे-धीरे उसे समुद्री रास्तों का काफी ज्ञान भी हो चुका था.
यात्रा शुरू करने के बाद वास्को डि गामा अफ्रीका के पश्चिमी तट होकर दक्षिण अफ्रीका में केप ऑफ होप होते हुए हिंद महासागर में दाखिल हुआ. यहां पहुंचने के बाद उसके कई साथी बीमार हो गए और खाना भी खत्म होने लगा था. ऐसे में दो मार्च 1498 को वास्को डी गामा ने मोजम्बिक द्वीप पर डेरा डाला. यह द्वीप अरब साम्राज्य के अधीन था और भारतीय महासागर से अरबों के व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भी था.
मोजम्बिक द्वीप पर ज्यादातर मुसलमान थे और ईसाई बेड़े पर ये हमला कर सकते थे. इसलिए वास्को डी गामा ने वेश बदल लिए मोजम्बिक के सुल्तान से मिलकर पुर्तगाल के लिए व्यापार समझौते की कोशिश की. हालांकि, इसमें उसे सफलता नहीं मिली और स्थानीय लोगों ने उसे खदेड़ दिया.
अरब व्यापारियों के जहाज लूट लिए
वहां से निकलने के बाद वास्को डी गामा कीनिया पहुंचा तब तक उसकी सारी रसद खत्म हो चुकी थी. ऐसे में साथियों के साथ मिलकर उसने अरब व्यापारियों के जहाज लूटे. इससे मिले सामान से अपना पेट भरते हुए सभी मोम्बासा गए पर वहां से भी भगा दिए गए तो मालिंदी पहुंचे और कुछ ऐसे लोगों को पकड़ लिया जिन्हें भारत का रास्ता पता था.
रास्ते की जानकारी मिलने पर वास्को डी गामा साथियों की साथ भारत की ओर बढ़ चला और 20 मई 1498 को आखिरकार भारत पहुंच ही गया. कालीकट के तट पर कदम रखते ही सागर के रास्ते भारत पहुंचने वाला वह पहला यूरोपीय बन गया.
कालीकट पहुंचा तो खुली की खुली रह गईं आंखें
कालीकट पहुंचे वास्को डी गामा को काफी आश्चर्य हुआ, क्योंकि यहां वह हर चीज मिल रही थी, जिसे यूरोप में अरबों से खरीदा जाता था. खासकर मसालों और चाय की यहां भरमार थी. इसलिए वास्को डी गामा कालीकट में ही तीन महीने के लिए रुक गया और वहां के राजा को पुर्तगाल के साथ व्यापार के लिए राजी करता रहा. हालांकि, कालीकट में अरब के व्यापारी पहले से ही मौजूद थे, जिन्होंने राजा के कान भर दिए और वास्को डी गामा को खाली हाथ लौटना पड़ा. वापसी में उसके 55 साथी ही जिंदा पुर्तगाल पहुंचे थे. हालांकि, यहां से तब वह थोड़े से मसाले ले गया था, जिसे पुर्तगाल में बेचकर तीन सौ गुना मुनाफा कमाया था.
गोलों से भी नहीं डरे कालीकट के राजा
दो साल बाद ही पुर्तगाल के राजा ने वास्को डी गामा को दो जंगी जहाजों के साथ फिर भारत भेजा पर यहां कालीकट के राजा ने फिर से भाव नहीं दिया. ऐसे में खाली हाथ लौटना पड़ा. पर इसी बीच पुर्तगाली कोचीन में एक फैक्टरी लगाने में कामयाब हो गए थे. 1502 में वास्को डी गामा को बाकायदा सैन्य मिशन पर भारत भेजा गया और 29 अक्तूबर 1502 को वह कालीकट पहुंचा और दो दिनों तक लगातार तोपों से काटीकट पर गोले बरसाए. फिर कालीकट के राजा नहीं झुके और उसे लौटा पड़ा. हालांकि, इस बीच पुर्तगाली कन्नूर में एक और फैक्टरी लगा चुके थे. फिर धीरे-धीरे समुद्री रास्ते से पुर्तगालियों ने भारत से व्यापार शुरू किया और एकाधिकार कायम कर लिया, जो बाद में अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और डच के आने के बाद इनमें भी बंट गया.
वहीं, वास्को डी गामा साल 1524 में एक बार फिर पुर्तगाली वायसराय के रूप में भारत आया तो पुर्तगाली अफसरों के भ्रष्टाचार से उसका सामना हुआ. यहां कोचीन में वह मलेरिया का शिकार हो गया और 24 दिसंबर 1524 को दम तोड़ दिया. उसे कोची के किले में दफन किया गया और साल 1539 में वास्को डी गामा की अस्थियां पुर्तगाल भेज दी गईं.
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