अलविदा रतन टाटा! 140 करोड़ के दिलों पर राज करता था भारत का ये ‘रतन’
140 करोड़ से अधिक लोगों के देश में, रतन टाटा ने जिस तरह का मुकाम और सम्मान हासिल किया है, वैसा कुछ ही लोगों को मिल पाया है. आज वो हमारे बीच नहीं है. उनका निधन ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ. रतन टाटा एक कामयाब बिजनेसमैन तो थे ही साथ ही बड़े परोपकारियों में भी उनकी गिनती होती थी. जैसे-जैसे उन्होंने टाटा ग्रुप को आगे बढ़ाया. वैसे-वैसे देश की इकोनॉमी को भी काफी बूस्ट मिला.
भारत के इंटरनेशनल लेवल पर ख्याति हासिल करने वाले बिजनेस लीडर्स में से एक रतन टाटा काफी शर्मीले थे और अकेला ही रहना पसंद करते थे. उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक ‘टाटा ग्रुप’ के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. उन्होंने साल 2012 में 75 वर्ष की आयु में रिटायर हुए. खास बात तो ये है उनका नाम किसी विवाद से नहीं जुड़ा. उन्होंने अपने विजन, मेहनत से एक फैमिली बिजनेस को इंटरनेशनल एंपायर के रूप में बदला. आइए आपको भी उनके जीवन के बारे में खास बातें बताते हैं.
कब हुआ था जन्म
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को नवल टाटा और सूनू कमिसारिएट के घर हुआ था. उनका बचपन काफी मुश्किलों भरा था क्योंकि जब वह 7 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता अलग हो गए थे और उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने उनके छोटे भाई जिमी के साथ किया था. उन्होंने अपना बीएस 1962 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क से आर्किटेक्चर में पूरा किया. उसके बाद 1975 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, यूएस से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम की डिग्री प्राप्त की. जेआरडी टाटा की सलाह पर रतन ने फैमिली बिजनेस में शामिल होने के लिए आईबीएम से नौकरी के ऑफर को ठुकरा दिया.
ऐसे हुई टाटा ग्रुप में एंट्री
रतन टाटा ने टाटा ग्रुुप के साथ अपने करियर की शुरुआत टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर एक ट्रेनी के रूप में की, चूना पत्थर खोदने और ब्लास्ट फर्नेस को संभालने का काम किया. 70 के दशक के अंत में, उन्हें नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड (एनईएलसीओ) और मुंबई स्थित एम्प्रेस मिल्स का प्रभार दिया गया. 1991 में, जेआरडी टाटा ने टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी बनाया. इस समय, रतन टाटा फैमिली बिजनेस वाली परिवार की चौथी पीढ़ी थे.
टाटा ग्रुप को ऐसे बढ़ाया आगे
यूके बेस्ड मैनेजमेंट राइटर और टाटा: द इवोल्यूशन ऑफ ए कॉर्पोरेट ब्रांड के लेखक मोर्गन विट्ज़ेल के अनुसार, 1991 में रतन का आगे आना टाटा ग्रुप के लिए सबसे अच्छी बात थी. वह न केवल पुराने कर्मचारियों को नई युवा ऊर्जा के साथ बदल रहे थे. बल्कि समग्र रूप से समूह में कई बदलाव लाए. टिस्को और टेल्को को टाटा स्टील और टाटा मोटर्स के रूप में री-ब्रांड किया गया. उनके नेतृत्व में कंपनी का रेवेन्यू और प्रॉफिट दोगुना हो गया और कंपनी ने जगुआर, कोरस, लैंड रोवर और टेटली का सफलतापूर्वक अधिग्रहण किया. रतन टाटा को तब लोकप्रियता मिली, जब उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती भारतीय कार टाटा नैनो को 1 लाख रुपए की कीमत पर पेश किया और भारतीय उपभोक्ताओं के सस्ती कार खरीदने के सपने को पूरा किया. ऐसा नहीं है कि टाटा ग्रुप पर बुरा वक्त नहीं आया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ग्रुप पर एक समय 26 बिलियन डॉलर (लगभग 1.42 ट्रिलियन रुपये) के कर्ज था. जिससे निवेशकों में चिंता पैदा हो गई. 2जी घोटाले के बाद टाटा का टेलीकॉम कारोबार भी काफी दबाव में था.
दो दशकों के बाद दिया इस्तीफा
28 दिसंबर, 2012 को 75 वर्ष की आयु में उन्होंने पद छोड़ दिया और साइरस मिस्त्री को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया. उनके पद छोड़ने के दौरान 2011-12 के अंत में ग्रुप की कुल सेल्स 4.51 ट्रिलियन रुपए थी. 1992-93 में जब रतन टाटा पहली बार चेयरमैन बने थे, तब ये यह टर्नओवर 43 गुना था. रतन टाटा मुख्य दो टाटा ट्रस्टों, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के साथ-साथ प्रमुख होल्डिंग कंपनी, टाटा संस के प्रमुख बने रहे. कुल मिलाकर उनकी इनमें 66 फीसदी हिस्सेदारी है. बाद में साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच संबंधों में खटास आ गई और मिस्त्री को बाहर कर दिया गया. टीसीएस के एन चन्द्रशेखरन ने बाद में टाटा ग्रुप के अध्यक्ष का पद संभाला और इस पद पर वे अभी भी बने हुए हैं.
पद्म पुरस्कारों से सम्मानित
रतन टाटा को 2000 में ‘पद्म भूषण’ और 2008 में ‘पद्म विभूषण’, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी द्वारा उन्हें इकोनॉमिक एजुकेशन में 26वें रॉबर्ट एस हैटफील्ड फेलो से भी सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, दुनिया भर के 15 संस्थानों ने उन्हें इंजीनियरिंग से लेकर बिजनेस मैनेज्मेंट तक स्टडी के क्षेत्रों में मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया है.