असम का चराइदेव मोईदाम घोषित होगा UNESCO का धरोहर, जानिए क्या है खासियत

यूनेस्को असम के चराइदेव मोईदाम को विश्व धरोहर घोषित करेगा. संस्कृति मंत्रालय शुक्रवार को इसकी घोषणा करेगा. भारत सरकार बीते दस सालों से इसे विश्व धरोहर घोषित करने की मांग कर रही है. चराईदेव मोईदाम को सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नई दिल्ली में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र में नामित किया गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस समिति के कार्यक्रम का उद्घाटन किया था. यूनेस्कों की घोषणा के बाद चराईदेव मोईदाम भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल बन जाएगा.
चराइदेव मोईदाम असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी. राजा को उनकी सामग्री के साथ दफनाया जाता था.
असम में स्थित चराईदेव मोईदाम पूर्वोत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है. इन प्राचीन दफन टीलों का निर्माण 13वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान अहोम राजाओं द्वारा किया गया था.
क्या है चराईदेव मोईदाम?
घास के टीलों जैसे दिखने वाले इन टीलों चराईदेव मोईदाम को अहोम समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है. प्रत्येक मोईदाम एक अहोम शासक या गणमान्य व्यक्ति के विश्राम स्थल माना जाता है. यहां उनके अवशेषों के साथ-साथ मूल्यवान कलाकृतियां और खजाने संरक्षित हैं.
चराईदेव मोईदाम मृतक के अवशेषों को एक भूमिगत कक्ष में दफल किया जाता है. उसके ऊपर का एक टीला या स्मारक का निर्माण किया जाता था. मोईदाम असमिया पहचान और विरासत की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत भर में 52 स्थलों में से अहोम समुदाय के मोईदाम को विरासत स्थल के रूप में नामांकित करने के लिए चुना है. असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने इसका प्रस्ताव रखा था.
असम का माना जाता है पिरामिड
यह नामांकन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रसिद्ध अहोम जनरल लचित बरफुकन की 400वीं जयंती के साथ मेल खाता है, जिन्होंने मुगलों को हराया था.
विरासत घोषित होने के बाद चराइदेव में 90 शाही दफन टीले उत्तर पूर्व में प्रतिष्ठित दर्जा प्राप्त करने वाले एकमात्र सांस्कृतिक विरासत स्थल होंगे.
चराईदेव मोईदाम को असम का पिरामिड भी कहा जाता है. यहां 90 से अधिक टीलों का घर है. ये टीले सिर्फ दफन स्थल ही नहीं हैं, बल्कि यह असम एक विशेष सांस्कृतिक और एतिहासिक विरासत की धरोहर भी है.

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