आखिरी UP में क्या चल रहा? केशव प्रसाद मौर्य ने CM योगी के ही विभाग से मांग लिया ब्यौरा
उत्तर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच सियासी खटपट बढ़ते ही जा रही है. संगठन को सरकार से ऊपर बताने वाले केशव प्रसाद मौर्य ने अब आरक्षण को हथियार बनाया है. डिप्टी सीएम केशव ने सीएम योगी के विभाग से पूछा है आउटसोर्सिंग में कितने लोगों को आरक्षण का फायदा मिला है. उन्होंने कार्मिक और नियुक्ति विभाग से जानकारी मांगी है. इस बात को लेकर उन्होंने पिछले साल भी चिट्ठी लिखी थी. इस साल उन्होंने 15 जुलाई को पत्र लिखा है.
बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव ने सरकार से बड़ा संगठन है वाला चर्चित बयान दिया था. इसके अगले दिन पत्र में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने दो मुद्दे उठा दिए. पहला आउटसोर्सिंग के जरिए दी जाने वाली नौकरी में आरक्षण और दूसरा शिक्षक भर्ती का है जिसके लिए 2018 में विज्ञापन निकाला गया था. यूपी की योगी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि कॉन्ट्रैक्ट पर दी जाने वाली नौकरियों में आरक्षण की अनदेखी हो रही है. मतलब पिछड़े और दलित कोटे को रिजर्वेशन नहीं दिया जा रहा है.
आउटसोर्सिंग के जरिए नौकरी की नहीं मिली जानकारी
यूपी सरकार ने डिप्टी सीएम को ये जानकारी नहीं दी है कि अब तक कितने लोगों के आउटसोर्सिंग में नौकरी दी गई है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले सात सालों में मतलब 2017 से अब तक लाखों लोगों को आउटसोर्सिंग से नौकरी दी जा चुकी है. बताया गया है कि चतुर्थ श्रेणी की सभी नौकरी कॉन्ट्रैक्ट पर दी जा रही है. मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2008 में कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी.
69 हजार शिक्षक भर्ती का मुद्दा भी उठाया
दूसरा मुद्दा 69 हजार शिक्षक भर्ती का है. इसके लिए विज्ञापन साल 2018 में निकला था. आरोप है कि इस मामले में आरक्षण देने में गड़बड़ी हुई. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी इस मामले की जांच की और आरोप सही पाए. अभी ये मामला हाई कोर्ट में लंबित है. दिलचस्प बात ये है कि यूपी में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल भी ये मुद्दा उठा चुकी है. पार्टी की अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल इस बारे में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को पहले ही चिट्ठी लिख चुकी हैं.
आउटसोर्सिंग का मतलब?
इसमें आउटसोर्सिंग के माध्यम से विभागों में भर्तियां की जाती हैं. सभी भर्तियां थर्ड पार्टी के माध्यम से होती हैं. सरकार टेंडर निकलती हैं. मानक पूरा करने वाली कंपनी को ठेका देकर संबंधित या जरूरत के हिसाब कर्मचारियों की डिमांड करती है. वेतन का पैसा सरकार कंपनी को देती, कंपनी उन कर्मचारियों को देती है. सैलरी को लेकर सरकार और कर्मचारी के बीच सीधा संबंध नहीं होता है.
सरकार के पास कोई अधिकृत डाटा नहीं
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पिछले सात सालों में आउटसोर्सिंग के माध्यम से रखे गए कर्मचारियों को संख्या 3 लाख के करीब बताई जा रही हैं, लेकिन सरकार के पास कोई अधिकृत डाटा नहीं हैं. आउटसोर्सिंग के माध्यम से रखे गए 3 लाख कर्मियों की संख्या में सबसे ज्यादा चिकित्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा (स्वास्थ्य विभाग ) में रखे गए हैं. इसके अलावा मुख्य रूप से पंचायती राज, ग्राम्य विकास, कृषि विभाग, राजस्व, समाज कल्याण, सिंचाई विभाग, राजस्व, सहकारिता, परिवहन विभाग, राज्य के अलावा विभिन्न प्राधिकरण में भी भर्तियां हुई हैं.
संविदा का मतलब?
ये अस्थायी रूप विभाग भर्ती करता हैं, लेकिन नौकरी स्थायी नहीं होती हैं, वेतन विभाग से ही दिया जाता है. इन कर्मचारियों की जिम्मेदारी विभाग की होती हैं. सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण, शिक्षा विभाग, पंचायत विभाग, ग्राम्य विकास विभाग के जरिए करीब लगभग 49546 लोगों को नौकरी दी गई है.
(इनपुट- पंकज चतुर्वेदी)