आर्थिक तंगी के कारण छूटी एकेडमी, चलने में भी होती थी मुश्किल, अब पैरालंपिक में रच दिया इतिहास

भारत में किसी भी खेल में आगे आकर अपनी पहचान बनाने के लिए खिलाड़ियों को कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ता है. देश के छोटे-छोटे हिस्सों से आने वाले युवाओं के लिए ये चुनौती ज्यादा होती है. अगर खिलाड़ी क्रिकेट को छोड़कर किसी दूसरे खेल से जुड़ा हो तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसमें आर्थिक तंगी से निपटना सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा देखी जाने वाली चुनौती है. और अगर वो एथलीट शारीरिक तौर पर पूरी तरह सक्षम न हो तो ये चुनौतियां कई गुना बढ़ जाती हैं. फिर भी पैरा-गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और सफलताएं भी हाथ लग रही है. प्रेरणा देने वाली ऐसे ही खिलाड़ियों में एक है रुबीना फ्रांसिस, जिन्हें अपने पैरों पर सीधे खड़े होने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था, जिनके मैकेनिक पिता को आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी अपनी बेटी का सपना पूरा करना था और वो सपना पेरिस पैरालंपिक में पूरा भी हो गया, जहां रूबीना ने ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया.
पेरिस में चल रहे पैरालंपिक 2024 गेम्स में रुबीना फ्रांसिस ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल SH-1 कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया. इसके साथ ही 25 साल की रुबीना ने पैरालंपिक में पिस्टल शूटिंग का मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास भी रच दिया. अपने दूसरे पैरालंपिक में हिस्सा ले रही रुबीना क्वालिफिकेशन में 7वें स्थान पर रहकर फाइनल में पहुंची थीं, जहां उन्होंने 211.1 पॉइंट्स के साथ तीसरे स्थान पर रहते हुए ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इस तरह पैरालंपिक 2024 में वो भारत के पदकों की संख्या को भी 5 तक ले गईं. रुबीना के लिए हालांकि ये सब इतना आसान भी नहीं था.
मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वाली रुबीना को यहां तक पहुंचाने में उनकी मेहनत के अलावा पूर्व ओलंपिक मेडलिस्ट और दिग्गज भारतीय निशानेबाज गगन नारंग की मदद का बहुत बड़ा रोल रहा. लेकिन इस एकेडमी तक पहुंचने से पहले भी रुबीना को काफी संघर्ष करना पड़ा था. पैरों में जन्म से ही कमजोरी और मुड़े होने के कारण उन्हें सही से चलने में हमेशा से ही परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऊपर से परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी. जानकारी के मुताबिक, उनके पिता साइमन जबलपुर में ही मैकेनिक थे और बाइक ठीक करने की दुकान चलाते थे. इससे ही जो भी कमाई होती, उससे ही घर चलता था और इसी दौरान रुबीना का शूटिंग के लिए प्यार जग गया.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बार रुबीना की स्कूल में गगन नारंग की शूटिंग एकेडमी ‘गन फॉर ग्लोरी’ के ट्रायल्स हो रहे थे और यहीं पर रूबीना ने पहली बार इस स्पोर्ट्स पर ध्यान दिया, जिसके बाद शुरू हुई मेहनत, संघर्ष और सफलता की कहानी. करीब एक साल तक एकेडमी में ट्रेनिंग करने के बाद रुबीना के खेल में सुधार हो रहा था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति और मुश्किल होने लगी थी क्योंकि उसी दौरान नगर निगम ने उनकी पिता की दुकान को तोड़ दिया था, जिससे संकट गहराने लगा था. इसके बावजूद पिता ने घर-घर जाकर लोगों की मोटरसाइकिल को दुरुस्त कर खर्चा निकालने की कोशिश की. इसके बाद भी एकेडमी का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा था तो उन्हें एकेडमी ही छोड़नी पड़ी.
शूटिंग के लिए रूबीना के बढ़ते लगाव और जुनून को उनके परिवार ने भी पहचाना और हर संभव तरीके से मदद की कोशिश करते रहे. इसी दौरान उन्हें भोपाल में स्टेट शूटिंग एकेडमी में एडमिशन मिला, जहां राज्य सरकार ने उनका खर्चा उठाया और यहां से वो लगातार आगे बढ़ती रहीं. धीरे-धीरे उन्होंने नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट्स में हिस्सा लेना शुरू किया और जल्द ही वो पैरा शूटिंग में देश की नंबर-1 महिला शूटर भी बन गईं. यही वो वक्त था जब उन्होंने पहली बार 2018 के पैरा एशियन गेम्स के लिए क्वालिफाई किया था.
इसके बाद रुबीना ने इंटरनेशनल लेवल पर कई मेडल अपने नाम किए और फिर सबसे बड़ा दिन आया 2021 में जब उन्होंने पेरू में हुए पैरा स्पोर्ट कप में वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम कर दिया. तब रुबीना ने 238.1 पॉइंट्स के स्कोर के साथ उस वक्त का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था और टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई किया था. टोक्यो में डेब्यू करते हुए रुबीना ने फाइनल तक का सफर तय किया लेकिन वहां वो 7वें स्थान पर रही थीं. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अब 3 साल बाद पेरिस पैरालंपिक में मेडल के सपने को पूरा कर लिया.

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