आलिया की ‘डार्लिंग’ से शाहरुख की ‘जवान’ तक, इन फिल्मों में बॉलीवुड ने दिखाई असली मुद्दों पर बात करने की हिम्मत

फिल्में समाज का आईना होती हैं, लिहाजा फिल्मों में वही दिखाया जाता है जो कहीं न कहीं समाज में चल रहा होता है और कम बार ही सही लेकिन कुछ फिल्मों के जरिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने भी दर्शकों को अपनी कहानियों के जरिए एक अच्छा और स्ट्रॉन्ग मैसेज देने की भी हिम्मत दिखाई है. इन फिल्मों में कुछ ऐसी फिल्में भी शामिल हैं, जिनमें स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक तौर पर तोड़ने जैसे मुद्दों पर भी बात की गई है. हमारा समाज चाहे जितनी भी तरक्की कर ले, मंगल पर जाने की बात कर ले, लेकिन आज भी औरतों को बुरी तरह प्रताड़ित करके उनका बेरहमी से बलात्कार करके, बेरहमी से हत्या करने की वहशी दरिंदगी कहीं न कहीं आज भी जिंदा है.
हाल ही में, 9 अगस्त को कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज की ट्रेनी डॉक्टर का बलात्कार के बाद हत्या का जघन्य अपराध सामने आया है. सिनेमा जगत हमेशा से इस तरह के जघन्य अपराध को अपनी फिल्मों के जरिये दिखाता रहा है. कई फिल्में जैसे दामिनी, बैंडिट क्वीन, पिंक के जरिये भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने इस विषय पर सिनेमा के माध्यम से बात की है. सिर्फ बलात्कार ही नहीं बल्कि कई सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनी हैं. फिर चाहे वो अमिताभ बच्चन की बागबान हो, जिसमें बूढ़े मां-बाप को बच्चे अपने स्वार्थ के चलते तकलीफ देते हैं, या फिर सुनील दत्त नरगिस की फिल्म मदर इंडिया, जहां एक मां एक औरत की इज्जत की रक्षा करने के लिए अपने बेटे को भी गोली मार देती है.

गौरतलब है पुराने जमाने में ज्यादातर ऐसी सामाजिक फिल्में ही बनती थीं, जो न सिर्फ परिवार के साथ देखने वाली फिल्में होती थीं, बल्कि उन फिल्मों के जरिए आम इंसान बहुत सारी अच्छी बातें भी सीखता था. लेकिन बाद में एक समय ऐसा भी आया जब सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से फिल्मों का निर्माण होने लगा. फिर चाहे वो आक्रामक हिंसा से भरपूर फिल्में हों , या सेक्स पर आधारित अश्लील फिल्में ही क्यों न हो, उस दौर में ज्यादातर फिल्मों का मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना और बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन करना होता था.
लेकिन फिर से एक बार समय का चक्र घूमा और सामाजिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ. इस में नामी गिरामी एक्टरों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू और दीपिका पादुकोण जैसे बॉलीवुड के कई कलाकारों का सामाजिक फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ा. जिसके बाद कई सामाजिक फिल्में प्रदर्शित हुईं और इन फिल्मों ने सफलता भी हासिल की. जैसे टॉयलेट एक प्रेम कथा, बधाई हो, पैडमैन, थप्पड़ आदि. कई सारी सामाजिक फिल्मों ने न सिर्फ देश के लोगों को जागरूक किया. बल्कि संदेश और शिक्षा भी प्रदान की. आज इस बारे में बात करते हैं.
सामाजिक विषय पर भी बनी हैं फिल्में
सामाजिक फिल्मों की बात हो और अक्षय कुमार का जिक्र न हो ये तो हो ही नहीं सकता. क्योंकि अक्षय कुमार उन एक्टरों में से हैं जिन्होंने महिलाओं से जुड़ी कई सारी सामाजिक फिल्में बनाई हैं. फिर चाहे वो भाई बहन पर आधारित फिल्म रक्षाबंधन हो, टॉयलेट एक प्रेम कथा हो, या औरतों के लिए पीरियड के दौरान सैनिटरी नैपकिन कितना जरूरी है जैसे विषय पर बनी फिल्म पैडमैन हो. अक्षय कुमार ने औरतों के सम्मान और हक के लिए सिर्फ फिल्में ही नहीं की, बल्कि सैनिटरी पेड के विज्ञापन में भी काम किया है. अक्षय कुमार की हमेशा कोशिश रही है कि वह औरतों की सेहत और सुरक्षा के लिए ऐसे काम करें, जिससे सीख लेकर औरतें जागरूक हो जाएं.

इस बारे में बात करते हुए अक्षय कुमार ने खुद कहा था “मैं नारी जाति का सम्मान करता हूं और चाहता हूं कि औरतें भी अपने हक के लिए आवाज़ उठाएं. वो जागरूक और शिक्षित हो जाएं. मैंने हमेशा अपनी फिल्मों के जरिए महिलाओं को सही राह दिखाने की कोशिश की है. इतना ही नहीं मैंने अपने मार्शल आर्ट ट्रेनिंग सेंटर में औरतों को अपनी सुरक्षा के लिए स्पेशल ट्रेनिंग भी देनी शुरू की है, जिससे वह राह चलते आवारा लड़कों से अपनी रक्षा कर सकें.”
अक्षय कुमार की तरह तापसी पन्नू भी उन हीरोइनों में से एक हैं, जिन्होंने ‘थप्पड़’ और ‘नाम शबाना’ जैसी फिल्मों के जरिये औरतों को ये संदेश देने की कोशिश की है कि औरतें कमजोर नहीं हैं. लेकिन उन्हें जागरूक होने की जरूरत है. अपनी फिल्मों के जरिए वो औरतों को सम्मान से कैसे जीना है ये पाठ पढ़ा चुकी हैं. निजी तौर पर भी तापसी पन्नू काफी दबंग हैं. उनका कहना है की औरतों को अपनी रक्षा खुद ही करनी होगी. कोई और उनको बचाने नहीं आएगा. माना की मर्दों के मुकाबले शारीरिक तौर पर औरतें कमजोर होती हैं. लेकिन वो दिमाग का इस्तेमाल करके अपनी रक्षा कर सकती हैं.
तापसी ने खुद का उदाहरण देते हुए कहा था, “जब मैं दिल्ली में रहती थी और फिल्मों में नहीं आई थी उस वक्त मैं बस में ट्रेवल करती थी. उस दौरान आवारा लड़कों से बचने के लिए मैं अपने पास एक सेफ्टी पिन रखा करती थी और बस में कोई भी मुझसे जब चिपकने की कोशिश करता था या गलत ढंग से छूने की कोशिश करता था तब मैं उसको पिन चुभा देती थी. मैंने हमेशा अपनी जिंदगी सम्मान के साथ ही जी है और इसलिए मैं ऐसी फिल्में करना पसंद करती हूं जो नारी सुधार के लिए संदेश देती हों. जैसे थप्पड़ फिल्म में मैंने पत्नी के सम्मान के हक के लिए आवाज उठाई है ,इसी तरह नाम शबाना में भी मैंने औरत की छिपी हुई ताकत को उजागर किया है. मैंने अपनी हर फिल्म में ये साबित किया है की औरत किसी से कहीं भी कम नहीं है. बस उसे अपनी काबिलियत और अंदरुनी ताकत पहचानने की जरूरत है.”

सामाजिक मुद्दों पर बनी अन्य यादगार फिल्में
पिछले कुछ समय में सामाजिक मुद्दों पर कई ऐसी फिल्में बनी हैं जो दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ गई हैं. जैसे अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की ‘पीकू’, अमिताभ बच्चन की ‘ऊंचाई’, ‘पा’, ‘102 नॉट आउट’, ‘बाबुल’,’पिंक’. इन फिल्मों के अलावा अलावा घरेलू हिंसा से बाहर आकर नई जिंदगी शुरू करने वाली मोना सिंह, शमिता शेट्टी की ‘ब्लैक विडोज’ , राजकुमार राव की ‘न्यूटन’ और ‘बधाई हो’, वरुण धवन की ‘सुई धागा’ में भी महत्वपूर्ण विषय पर बात की गई है.
आज भी बनती हैं अच्छी फिल्में
माय ब्रदर निखिल होमोसेक्सुअलिटी पर आधारित वो फिल्म है, जिसमे एचआईवी और एड्स जैसे टॉपिक को खूबसूरती से दर्शाया गया है. इन फिल्मों के अलावा फिल्म महाराजा से लेकर आलिया भट्ट की डार्लिंग तक कई फिल्मों में किस तरह से समाज की बुराई से आजादी दिलाई जा सकती है, इस बारे में बात की है. आमिर खान के बेटे जुनैद खान की ‘महाराज’, दिलजीत दोसांझ की ‘अमर सिंह चमकीला’, शाहरुख खान की ‘जवान’ को भी लोगों ने फिल्म में दिखाई हुई हिम्मत के लिए बहुत पसंद किया. आलिया भट्ट की ‘डार्लिंग’ में महिलाओं पर हिंसा और शोषण और घरेलू हिंसा की कहानी को खूबसूरती से पेश किया गया है. इसके अलावा कुछ समय पहले रिलीज हुई फिल्म ‘गिल्टी’ में देश में बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई पर प्रकाश डाला गया है.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सामाजिक विषयों पर आधारित ऐसी कुछ फिल्में बनी हैं, जिन्होंने ऑडियंस को महत्वपूर्ण संदेश देने की कोशिश की है और उन्होंने दर्शकों को ये सोचने पर मजबूर किया है कि समाज में वास्तविक बदलाव कैसे लाया जा सकता है. वैसे तो फिल्में न केवल मनोरंजन का साधन हैं बल्कि वो सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने का प्रभावशाली माध्यम भी हो सकती हैं. लेकिन इसे हम कितना सीरियसली लेते हैं ये एक अलग रिसर्च का मुद्दा है.

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