इंडिया से आये हो, हमें चेक करना है, डरो मत, हम कुछ नहीं करेंगे… बांग्लादेश से TV9 रिपोर्टर की आपबीती
आप इंडिया से आए हो, हमें आपकी गाड़ी चेक करनी है. यह बोलते हुए एक साथ कई छात्र हमारी गाड़ी की तरफ बढ़े. छात्रों के उस ग्रुप की अगुआई कर रही एक लड़की अपने हाथ में पकड़े एक छोटे डंडे को गाड़ी पर मारते हुए बोली… डरो मत, आपको कुछ नहीं करेंगे! वो लड़की ग्रेजुएशन की स्टूडेंट रही होगी. उसकी बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि बांग्लादेश में किसी भारतीय को ऐसा सुनने को मिलेगा यह किसने सोचा होगा.
मैं उन्हें देखे जा रहा था. वो लोग आपस में कुछ कानाफूसी करने लगे. ढाका से करीब 300 किलोमीटर दूर मेहरपुर और खुलना इलाके से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर हम ढाका लौट रहे थे. रात करीब 12 बजे का वक्त था. ढाका शहर में प्रवेश करने वाले मार्ग पर भारी जाम लगा था. व्यवस्था बनाए रखने के लिए कॉलेज के छात्र-छात्राएं इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे. साथ वाली लेन में सुरक्षाबलों की दो गाड़ियों पर कुल मिलाकर एक दर्जन से अधिक जवान भी चुपचाप आगे ट्रैफिक खुलने का इंतजार कर रहे थे. उन्हें भी अंदाजा था कि वक्त बदल चुका है.
इस समय बांग्लादेश छात्र-छात्राएं चला रहे हैं. मैं इन्हीं ख्यालों में था जब स्टूडेंट्स हमारी गाड़ी की जांच के लिए अंदर झांकने लगे. नज़रें मिलीं तो मैंने मुस्कुराते हुए अंग्रेजी में कहा कि आप लोगों ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया है और सभी को आपको उपलब्धि पर गर्व है. मेरे मन में भी आपके प्रति बेहद आदर भाव है. इतना सुनकर वो लड़की और उसके ग्रुप के बाकी लड़कों के चेहरे पर एक चमक दिखी. उन सबका चेहरा गर्व से चमकने लगा.
मुस्कुराते हुए उन्होंने भी मुझे धन्यवाद कहा और फिर आवाज आई कि आप लोग अपनी गाड़ी आगे बड़ा सकते हैं. थैंक यू, थैंक यू का आदान-प्रदान हुआ और हमारी गाड़ी कुछ सेंटीमीटर आगे खिसकी. स्टूडेंट्स मेरे पीछे मौजूद गाड़ियों की जांच के लिए बढ़ गए. उनकी सहायता के लिए कुछ और साथी स्टूडेंट्स भी इधर-उधर से आते दिखे.
बांग्लादेश के सड़कों पर छात्रों की हुकूमत
ढाका में हर सड़क-चौराहे, गली-मोहल्ले का एक जैसा हाल है. सड़कों पर स्टूडेंट्स ने कमान अपने हाथों ले रखी है. बांग्लादेश आर्मी की जगह जगह तैनाती है, लेकिन वो अपने स्थान पर हथियार लिए केवल तैनात हैं. डॉक्टर यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार नीतिगत फैसला कर रही है, लेकिन सड़कों पर ये स्टूडेंट्स ऑन-स्पॉट फैसला कर रहे हैं. पिछले तीन-चार दिनों में यह भी दिखा कि वो अपने काम को बहुत मेहनत और जिम्मेदारीपूर्वक कर रहे हैं. उनका जोश देखते बनता है.
ऐसा लगता है मानो अभी अभी कोई अफसर वाली नौकरी लगी हो. कुछ कर दिखाने का जज्बा लिए ढाका की सड़कों पर घूम रहे हैं. ये बात भी सही है कि बांग्लादेश के छात्रों ने मिलकर इतिहास रचा है. अपनी कामयाबी का परचम लहरा पूरी दुनिया को दिखा भी दिया है. पंद्रह साल में शेख हसीना ने बांग्लादेश की सिंहासन के आसपास जितनी किलेबंदी की थी एक धक्के में सब कुछ ढह गया. स्टूडेंट्स खुलकर शेख हसीना के खिलाफ अपनी नाराजगी जता रहे हैं. इस वक्त बांग्लादेश के बाकी लोग या तो छात्रों के समर्थन में हैं या अपनी चुप्पी साधे बैठे हैं.
हमारी हसीना कैसी है!
बांग्लादेश की संसद के सामने एक छात्राओं का झुंड मिला. भारतीय पत्रकार जानकर मेरी तरफ आगे बढ़े. आते ही उसमें से एक लड़की ने तंज मारते हुए पूछा कि आप दिल्ली से आए हो, ये बताओ हमारी हसीना कैसी है? ठीक से ख्याल तो रख रहे हो ना! मैं उनके सवाल के तीर के पैनापन को समझ चुका था सो हल्के अंदाज में जवाब दिया कि क्या बताऊं अब तक तो हमें भी उनकी शक्ल देखने को नहीं मिली है, ये सुना है कि उन्हें कहीं और जाना था, इंतजाम होने तक दिल्ली में रहेंगी.
मेरा जवाब सुनकर लड़कियों का झुंड हंसने लगा. थोड़ा संजीदा होकर बोली कि हसीना को हमें वापस कर दीजिए. उन्होंने नरसंहार किया है. उनसे किसी तरह की बहस में उलझे बगैर मैंने कहा कि मैं पत्रकार हूं सरकार नहीं. मेरे हंसी मजाक के अंदाज से वो थोड़े सहज हो गए थे. हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता. रिपोर्टिंग के दौरान छात्रों के एक ग्रुप ने मुझे घेरा और भारत को लेकर अपनी नाराजगी जताने लगे. उन्हें हिंदी समझ में आती है यह जानकर मैंने हिंदी में बात करनी चाही तो गुस्सा जताते हुए बोले कि हिन्दी बोलना उनके लिए अपमानजनक है. उन्हें यह समझाने में अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी कि भारत का रिश्ता बांग्लादेश के लोगों से है और उसी नाते बांग्लादेश की सरकार और पद पर बैठे लोगों से है.
मेहरपुर इस्कॉन मंदिर की सबसे दर्दनाक तस्वीर, दंगाइयों से बचने के लिए कुएं में कूदकर लोगों ने बचाई थी जान #Bangladesh #BangladeshViolence | @TheSamirAbbas | @ManishJhaTweets pic.twitter.com/VZAraBmd9J
— TV9 Bharatvarsh (@TV9Bharatvarsh) August 12, 2024
यह कहना गलत नहीं होगा कि फिलहाल भारत के लिए बड़ी चुनौती बांग्लादेश के इन युवाओं से संवाद कायम करना होगा और वो भी जल्द से जल्द. भारत के प्रति कई तरह के अफवाहों को सच मान बैठे इन छात्रों और उनके नेतृत्व को सच से रूबरू करवाना उतना ही जरूरी है जितना 1971 के मुक्ति योद्धाओं को मदद पहुंचाना था. आखिरकार नए बांग्लादेश को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी इन्हीं युवाओं के कंधों पर है.