इकोनॉमी को लगा झटका, 15 महीने के निचले स्तर पर देश की जीडीपी

क्या भारतीय अर्थव्यव्स्था में मंदी के लक्षण दिखने लगे हैं. ये सवाल इसलिए है, क्योंकि शुक्रवार को देश की इकोनॉमिक ग्रोथ के आंकड़े और कोर इंडस्ट्री ग्रोथ से जुड़े आंकड़े सामने आ गए हैं. आरबीआई के अनुमानों के विपरीत देश की जीडीपी ग्रोथ रेट चालू वित्त वर्ष 2024-25 की अप्रैल-जून में 15 महीने के निचले स्तर पर आ गई है. ये 6.7 प्रतिशत रही है.
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने शुक्रवार को जीडीपी ग्रोथ रेट के आधिकारिक आंकड़े जारी कर दिए. अप्रैल-जून 2024 की तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर जहां 6.7 प्रतिशत रही है. वहीं पिछले महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति में इसके अप्रैल-जून तिमाही में 7.2 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया था.
पिछले साल के मुकाबले 1.5 प्रतिशत की गिरावट
जीडीपी के ताजा आंकड़े चिंताजनक इसलिए भी हैं, क्योंकि वित्त वर्ष 2023-24 की इसी अवधि में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत थी. इसका मतलब ये हुआ कि सालभर में देश की इकोनॉमिक ग्रोथ में 1.5 प्रतिशत की गिरावट आई है. जबकि पिछली तिमाही यानी जनवरी-मार्च के मुकाबले भी इकोनॉमिक ग्रोथ घटी है. तब देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 7.8 प्रतिशत थी.
जानकारों का कहना है कि अप्रैल से जून की अवधि में चुनावों के चलते आचार संहिता लगी रही. इससे इकोनॉमी में सरकारी खर्च कम हुआ. संभवतया जीडीपी के नीचे आने की वजह ये हो सकती है. इसके अलावा हीटवेव के प्रकोप ने भी इस दौरान इकोनॉमी पर असर डाला है. हालांकि इसके बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यस्था है. चीन की जीडीपी ग्रोथ अप्रैल-जून तिमाही में 4.7 प्रतिशत थी.
एग्रीकल्चर सेक्टर का सबसे खराब प्रदर्शन
अप्रैल-जून तिमाही के आंकड़ों को समझने की कोशिश करें, तो देश के प्राइमरी सेक्टर यानी कृषि और संबद्ध क्षेत्र का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. वित्त वर्ष 2023-24 की इसी तिमाही में कृषि सेक्टर की ग्रोथ रेट 4.2 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 2.7 प्रतिशत रह गई है.
इस तरह देश के टर्सरी सेक्टर यानी सर्विस सेक्टर की हालत भी खराब हुई है. ये पिछले साल इसी तिमाही में 10.7 प्रतिशत की दर से ग्रोथ कर रहा था, जो अब घटकर 7.2 प्रतिशत रह गया है. ये देश में पर्यटन इत्यादि क्षेत्रों में नरमी रहने की ओर संकेत करता है.
जबकि मैन्यूफैक्चरिंग, निर्माण और कोर इंडस्ट्री को मिलाकर बनने वाले सेकेंडरी सेक्टर की ग्रोथ रेट बढ़ी है. पिछले साल इसी तिमाही में ये 5.9 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 8.4 प्रतिशत हो गई है. ये देश में कंजप्शन खासकर के प्राइवेट उपभोग बढ़ने की ओर इशारा करता है.
राजकोषीय घाटा भी हुआ 2.77 लाख करोड़
इसी के साथ सरकारी आंकड़ों में देश के राजकोषीय घाटे की जानकारी भी सामने आई है. चालू वित्त वर्ष 2024-25 के शुरुआती 4 महीने यानी अप्रैल से जुलाई के बीच केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य के 17.2 प्रतिशत के बराबर आ गया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राजकोषीय घाटा जुलाई के अंत तक 2,76,945 करोड़ रुपए रहा है. हालांकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में बजट अनुमान के मुकाबले सरकार का राजकोषीय घाटा 33.9 प्रतिशत था.
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और रेवेन्यू के बीच का अंतर होता है. यह सरकार के ऊपर उधारी बकाया होने का संकेत होता है. ये एक तरह से सरकार के कमाई से ज्यादा खर्च करने की जानकारी देता है.
8 कोर सेक्टर का डेटा भी रखता है मायने
जीडीपी के साथ ही देश के 8 कोर सेक्टर के आंकड़े भी शुक्रवार को जारी हुए. इसके हिसाब से देश के 8 कोर सेक्टर की ग्रोथ रेट जुलाई में सालाना आधार पर घटकर 6.1 प्रतिशत रही है. पिछले साल जुलाई में ये ग्रोथ 8.5 प्रतिशत थी. जबकि पिछले महीने की तुलना में देखें तो जून 2024 में इनकी ग्रोथ रेट 5.1 प्रतिशत ही थी. देश के 8 कोर सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली क्षेत्र का उत्पादन आता है.
विदेशी मुद्रा भंडार ने दी तसल्ली
इस गमगीन माहौल में देश के विदेशी मुद्रा भंडार (India Forex Reserve) ने राहत भरी सांस दी है. आरबीआई के रिकॉर्ड्स के मुताबिक 23 अगस्त को खत्म हुए हफ्ते में देश फॉरेक्स रिजर्व 7.02 अरब डॉलर से अधिक बढ़कर 681.68 अरब डॉलर के नये रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है. इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.54 अरब डॉलर बढ़कर 674.66 अरब डॉलर पर रहा था. देश के फॉरेक्स रिजर्व की गणना में भारतीय रिजर्व बैंक के पास मौजूद डॉलर, पाउंड,यूरो, येन जैसी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं को शामिल किया जाता है. वहीं देश का गोल्ड रिजर्व, आईएमएफ से मिला एसडीआर और उसके पास जमा हमारी मुद्रा का भंडार भी विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से में आता है.

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