इधर NATO की मीटिंग में खाई कसम, उधर शुरू हो गया चीन के खिलाफ एक्शन, जर्मनी ने दिया 5G वाला झटका
जर्मनी के शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने गुरुवार को ऐलान किया कि जर्मनी 2026 से शुरू होने वाले देश के 5G नेटवर्क से चीन की कंपनियों के पार्ट्स को हटा देगा. जर्मनी ने फैसला किया है कि चीनी कंपनी Huawei और ZTE के पार्ट्स के इस्तेमाल पर वे प्रतिबंध लगाएंगे. चीनी कंपनियों पर पहले भी डेटा चोरी का आरोप लगता रहा है, लेकिन यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी का ये कदम उस वक्त आया है जब चीन ने रूस से अपनी करीबियां बढ़ाई हैं. दूसरी तरफ, नाटो के वाशिंगटन समिट में सदस्य देशों ने रूस को रोकने की कसम खाई है.
अमेरिका पहली ही चेतावनी देता आया है कि रूस के साथ संबंध बनाने वाले देशों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. जर्मनी सरकार के इस कदम को भी इस कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है. क्योंकि चीन ने रूस के साथ व्यापार बढ़ाकर प्रतिबंधों के बाद भी उसकी अर्थव्यवस्था को संभाले रखा है. अब लग रहा है कि पश्चिमी देश चीन की कंपनियों पर लगाम कस चीन को इसकी सजा दे रहे हैं.
चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध
जर्मनी के आंतरिक मंत्री नैन्सी फ़ेसर ने कहा कि Huawei और ZTE के पार्ट्स को 2026 के आखिर तक 5G कोर नेटवर्क से हटा दिया जाएगा. इसके साथ ही 5G एक्सेस और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क में इन कंपनियों की भूमिका को 2029 के अंत तक पूरी तरह बदल दिया जाएगा.
रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन की भूमिका
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से पश्चिमी देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसको युद्ध क्षेत्र में कमजोर करना चाह रहे हैं, लेकिन चीन, ईरान, नॉर्थ कोरिया जैसे देश रूस के साथ मिलकर इन प्रतिबंधों का मुकाबला कर रहे हैं. चीन रूस का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन गया, चीन रूस को मुख्य तौर ब्रॉडकास्टिंग इक्विपमेंट, कंप्यूटर और बड़े कंस्ट्रक्शन वाहन सप्लाई कर रहा है. पश्चिमी देश इस निर्यात को रूस के युद्ध में मदद करना मानते हैं.
अमेरिका के दोस्त ले रहे एक्शन
हाल के सालों में अमेरिका ने ब्रिटेन और स्वीडन सहित यूरोपीय अलायंस से अपने फोन नेटवर्क में Huawei पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है. अमेरिका को डर है कि बीजिंग इन कंपनियों के जरिए साइबर जासूसी या कम्युनिकेशन के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने के लिए कर सकता है. हालांकि की इन आरोपों को Huawei कंपनी ने बार-बार नकारा है. जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा ने भी जर्मनी की तरह ही कदम उठाए हैं.