इमोशनल मैसेज या बदलता मूड…विधानसभा चुनाव से पहले बदले-बदले क्यों नजर आ रहे अजित पवार?
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजित पवार खूब बयान दे रहे हैं. कभी वह अपनी सहयोगी पार्टी के फैसलों पर ही सवाल उठाते हैं तो कभी लोकसभा चुनाव में लिए गए अपने फैसले पर पछतावा करते हैं. बारामती में बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ पत्नी को उतारने वाले अजित पवार को 2 महीने बाद अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है. अजित ने कहा, मैं अपनी सभी बहनों से प्यार करता हूं. राजनीति को घर-परिवार से बाहर रखना चाहिए. मैंने सुनेत्रा को चुनाव मैदान में अपनी बहन के खिलाफ उतारकर गलती की. अब सवाल उठता है कि अजित पवार का ये महाराष्ट्र की जनता को इमोशनल मैसेज है या चुनाव से पहले उनका बदलता मूड.
पिछले साल जुलाई में अजित पवार एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गए थे, जिससे एनसीपी दो फाड़ हो गई थी. बाद में चुनाव आयोग ने अजित के नेतृत्व वाले गुट को असली एनसीपी घोषित किया था. सत्ता के लिए चाचा से अलग होने वाले अजित पवार शरद पवार पर भी नरम रुख अपनाते हुए नजर आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि शरद पवार एक वरिष्ठ नेता और उनके परिवार के मुखिया हैं, इसलिए वह उनकी किसी भी आलोचना का जवाब नहीं देंगे.
क्या सीटों पर बनेगी बात?
सुप्रिया सुले और शरद पवार पर अजित पवार के ताजा बयान के बाद सियासी फिजाओं में अटकलों के बादल तैरने लगे हैं. विधानसभा चुनाव के लिए अभी तक किसी भी गठबंधन में सीट शेयरिंग पर बात फाइनल नहीं हुई है. हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति और विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी दावा कर रही है कि जल्द ही सीट बंटवारे पर बात कर फैसला लिया जाएगा. उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी बीजेपी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ महायुति में है.
अजित महाराष्ट्र की 80-90 सीटों पर लड़ना चाहते हैं. उन्होंने अमित शाह के साथ हुई मुलाकात में ये डिमांड रखी थी. उन्होंने जल्द से जल्द सीटों का बंटवारा करने की भी मांग की और लोकसभा चुनाव की तरह अंतिम समय तक इसमें उलझने से बचने को कहा. अजीत पवार के पास अपने सहयोगी बीजेपी और शिवसेना के लिए चेकलिस्ट की अच्छी खासी संख्या है.
पार्टी उन 54 सीटों पर लड़ना चाहती है जिसपर अविभाजित एनसीपी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी. इसके अलावा अजित पवार पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र से कांग्रेस के खिलाफ 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य बना रहे हैं. अजित पवार की नजर कांग्रेस के खिलाफ मुंबई की 4-5 विधानसभा सीटों पर भी है. इन सीटों पर अल्पसंख्यक वोट बैंक का दबदबा है. इसके अलावा उन्हें 3 निर्दलीय और 3 कांग्रेस विधायकों के अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का भी भरोसा है.
अजित दादा ने तो अपनी डिमांड साफ कर दी है. उधर, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना भी 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. गठबंधन में ‘बड़ा साझेदार’ होने के नाते बीजेपी ने 160-170 सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रखा है.
क्या संघ की नाराजगी अलग होने की बनेगी वजह?
महायुति में सीटों को लेकर पेच तो फंसा ही है साथ ही RSS भी अजित पवार से खुश नहीं है. संघ नेताओ की नाराजगी का मुद्दा नागपुर मे संघ और बीजेपी के समन्वय बैठक में उठ चुका है. संघ के पदाधिकारी अजीत पवार को एनडीए मे लेने पर पहले ही नाराजगी जता चुके हैं. संघ का मानना है कि अजीत पवार को साथ लेने का बीजेपी को लोकसभा चुनाव में फायदा नहीं हुआ. लोकसभा चुनाव मे बीजेपी के 89 फीसदी वोट शिंदे को मिले, लेकीन शिंदे के 88 फीसदी वोट बीजेपी को ट्रान्सफर हुए. बीजेपी और अजित पवार के वोट ट्रान्सफरेबिलिटी मात्र 50 फीसदी से कम थी.
अजित पवार राजनीति के माहिर खिलाड़ी है. उन्हें पता है कि कब किसका हाथ पकड़ना है और कब किसका छोड़ना है. वह चाचा शरद पवार को नाराज भी नहीं करना चाहते और बीजेपी से मतभेद भी नहीं करना चाहते. पवार खानदान का ये नेता अपना विकल्प खोलकर रखना चाहता है. वह महायुति में होते हुए बीजेपी को मैसेज देते हैं कि मेरे पास MVA के रूप में दूसरा ऑप्शन भी है तो बीजेपी के साथ रहकर चाचा को पहले ही चोट पहुंचा चुके हैं.
अजित बहन सुप्रिया पर बयान देकर कोई पहली बार इमोशनल कार्ड नहीं खेल रहे हैं. लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने शरद पवार पर इमोशनल बयान दिया था. तब उन्होंने कहा था कि मैं भी 60 साल से ऊपर का हूं. क्या हमारे पास मौका है या नहीं? क्या हम गलत व्यवहार कर रहे हैं? इसलिए हम भावुक हो जाते हैं. पवार साहब भी हमारे ‘दैवत’ हैं” (भगवान) और इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन 80 पार करने के बाद हर व्यक्ति का अपना समय होता है, नए लोगों को मौका दिया जाना चाहिए.