ईरान को कभी ना भूलने वाला दर्द देने की तैयारी! इजराइल-अमेरिका के बीच हुआ सीक्रेट समझौता
51 साल पहले योम ए किप्पूर पर इजराइल और अरब देशों की जंग शुरू हुई और इस साल योम ए किप्पूर पर इजराइल ईरान पर हमले का फाइनल फैसला ले चुका है. इजराइली कैबिनेट ने एकमत से ईरान पर हमलों के लिए मतदान कर दिया है. खबर ये भी है इजराइल के इन हमलों को अमेरिका का समर्थन मिल चुका है.
इजराइल और अमेरिका के बीच के सीक्रेट समझौता भी हुआ है. इजराइल फ्रंट पर रहकर ईरान पर हमले करेगा और अमेरिका ईरान में गृहयुद्ध की आग भड़काने वाला है. ईरान के अंदर इस 2 फ्रंट वॉर की पूरी तैयारी हो चुकी है.
इजराइल के लिए सबसे बड़ा खतरा है ईरान, क्योंकि ईरान की वजह से ही इजराइल को सात फ्रंट पर जंग लड़नी पड़ रही है. इजराइल को लेबनान, गाजा पट्टी, इराक, वेस्ट बैंक, सीरिया, यमन और ईरान से जंग लड़नी पड़ रही है. इन सबकी शक्ति के केंद्र तेहरान है और अगर तेहरान को खत्म कर दिया गया तो इजराइल के इन दुश्मनों की ताकत अपने आप खत्म हो जाएगी.
इसीलिए इजराइल ईरान पर हमले करने की रणनीति पर फाइनल मुहर लगा चुका है. इजराइल ने ऐलान कर दिया है कि प्रॉक्सी ईरान के हाथ पैर हैं अब इन्हें काटने के बजाय सिर कलम करना निश्चित हो चुका है.
जल्द ईरान पर होगा हमला?
इजराइल में ईरान पर हमले का प्लान तैयार हो चुका है. बीते 24 घंटे में तेहरान में हुई गतिविधियों से बहुत जल्द ईरान पर हमले के संकेत मिल रहे हैं.
10 अक्टूबर की देर रात इजराइली सिक्योरिटी कैबिनेट की बैठक हुई है, सिक्योरिटी कैबिनेट की बैठक में ईरान पर हमलों के मुद्दे पर वोटिंग हई. पूरी कैबिनेट ने ईरान पर हमले का समर्थन किया है. इस बैठक को ईरान पर हमलों से पहले अंतिम बैठक कहा गया है. संकेत साफ है कि इजराइल के प्लान में अब कोई बदलाव नहीं होने वाला है.
इजराइल के रक्षा मंत्री योव गैलांट ने सबसे विनाशक संकेत दिया है. गैलांट ने कहा है कि स्वर्ग के द्वार खुल चुके हैं, सही समय आ चुका है. इस बयान का मतलब माना जा रहा है कि इजराइल ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमले करने वाला है.
इजराइल के टारगेट पर ईरान के परमाणु संयंत्रों में सबसे पहले फार्दो है. ये ईरान का न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्लांट है. 2009 से ऑपरेशनल है. ये चट्टानों के नीचे बना है. इसकी तेल अवीव से दूरी 1842 किमी है. इसी तरह अराक न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर भी टारगेट पर है, जो 2006 में बनकर तैयार हुआ था. यहां रेडियो आइसोटोप प्रोडक्शन होता है. जबकि नतांज न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्लांट है, जो 2004 से ऑपरेशनल है. ये एक अंडरग्राउंड प्लांट है, इसकी तेल अवीव से दूरी 2027 किमी है.
इस्फहान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर चीन के सहयोग से बना है, इसमें 3000 से ज्यादा साइंटिस्ट काम करते हैं. इजराइल यहां भी हमला कर सकता है. आगे बुशहर न्यूक्लियर पावर प्लांट है जो रूस के सहयोग से बना है. 2010 से ऑपरेशनल है, इसकी तेल अवीव से दूरी 2072 किमी. है.
तेल ठिकानों पर भी होगा हमला
इसके साथ साथ इजरायल ईरान के तेल ठिकानों पर भी विस्फोट करने की तैयारी में है ताकि ईरानी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह चौपट किया जा सके. ईरान की 7 बड़ी रिफाइनरी इजरायल के टारगेट पर हैं जिसमें पहले नंबर पर है अबादान रिफाइनरी. दूसरे नंबर पर है इस्फहान रिफाइनरी. तीसरे नंबर पर है है अराक रिफाइनरी, चौथे नंबर पर है बंदर अब्बास रिफाइनरी, पांचवे नंबर पर है तेहरान रिफाइनरी, छठे नंबर पर है अरवांद रिफाइनरी और सातवें नंबर पर है लावन आइलैंड रिफाइनरी.
तेल के दामों में लगेगी आग
इजराइल के इस प्लान से पूरे अरब में खलबली मच गई है. क्योंकि ईरानी परमाणु संयंत्रों और तेल ठिकानों पर हमले का मतलब पूरे अरब में जंग फैलना होगा और इसके साथ ही पूरी दुनिया में तेल के दामों में भी आग लगना तय है.
अरब के कई देशों ने अमेरिका से अपील की है कि इजराइल को इस तरह के हमले करने से रोका जाए, लेकिन इजराइल के इस प्लान में अमेरिका भी शामिल है.
हमले का ब्लूप्रिंट तैयार
प्रॉक्सी का सिर काटने के प्लान में अमेरिका ने ईरान के टुकड़े टुकड़े करने का ब्लूप्रिंट भी बना लिया है. ईरान की 50 फीसदी आबादी गैर पर्शियन है. ईरान के 4 सीमाई क्षेत्रों में तेहरान के खिलाफ विद्रोह होता रहता है, बाइडेन इन इलाकों में गृहयुद्ध भड़काने की तैयारी में हैं.
ईरान के इन अशांत रहने वाले इलाकों में आसानी से गृहयुद्ध भड़काया जा सकता है.
ईरान के अशांत के अशांत क्षेत्र
ईरान के अशांत रहने वाले इलाकों में है खुजेस्तान प्रांत, यहां अरबी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यक रहते हैं, ये समुदाय अरबी कबीलों का प्रतिनिधित्व करता है. इनके साथ सरकारी योजनाओं में भेदभाव होता है
ये लंबे समय से अलग स्वायत्त क्षेत्र की मांग कर रहे हैं.
दूसरा प्रांत है कुर्दिस्तान, दुनिया जानती है कि कुर्द-ईरान की जंग पुरानी है. ईरान में रहने वाले कुर्द, ईरानी आबादी का 10% हिस्सा हैं, ये सुन्नी मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय है. कुर्दिस्तान ईरान के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में से एक है, इस क्षेत्र में तेहरान के खिलाफ कुर्दों के सशस्त्र गुट सक्रिय हैं.
तीसरा इलाका है ईरानी अजरबैजानी समुदाय का अजेरी तुर्क, ये ईरान की आबादी का 16% हिस्सा है. अजेरी तुर्क सांस्कृतिक, भाषाई तौर पर अजरबैजानी-टर्किश मूल के हैं. 2019-20 के युद्ध में ईरान ने अजरबैजान के बजाय आर्मीनिया का साथ दिया था. तब इसी अजेरी क्षेत्र में तेहरान के खिलाफ विद्रोह भड़क गया था.
चौथा क्षेत्र है सिस्तान-बलूचिस्तान, यहां बिलोचिस्तानी पहचान का सुन्नी समुदाय रहता है. बलोच लंबे समय से एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहे हैं, ये पाकिस्तान के साथ साथ ईरान के खिलाफ भी सशस्त्र विद्रोह में सक्रिय हैं.
यानी जिस तरह प्रॉक्सी को ताकत देकर ईरान इजराइल के खिलाफ जंग में उतार चुका है उसी तरह अमेरिका तेहरान विरोधी ईरानी गुटों के जरिए ईरान में गृह युद्ध शुरू कराना चाहता है.
ईरान में अमेरिका की चाहत
अमेरिका ईरान में अपने समर्थन वाली सरकार चाहता है और इसलिए अरब के सऊदी, UAE जैसे देश इस जंग को रोकना चाहते हैं ताकि अमेरिका को ईरान की नई सरकार से बेहतर संबंध बनाने से दूर रखा जा सके. अमेरिका और इजराइल के इस प्लान के बाद तेहरान ने भी राजनयिक और सैन्य गतिविधि तेज कर दी है.
ईरान हुआ सतर्क
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पाजेश्कियान ने 11 अक्टूबर को तुर्कमेनिस्तान में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की. ईरान ने ऑल टाइम पार्टनर रूस से ऐसे हालात में मदद की उम्मीद लगाई है, अगर अमेरिका और इजराइल मिलकर ईरान के खिलाफ जंग शुरू करते हैं तो रूस भी इस युद्ध में उतर सकता है. अरब सुपर पावर का बैटलफील्ड बनने की तरफ बढ़ रहा है.