ईरान ने इजराइल पर किया हमला तो कौन-सा देश किसका साथ देगा?

हमास के पॉलिटिकल चीफ इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह के वरिष्ठ कमांडर फुवाद शुकर की हत्या के बाद से मध्यपूर्व में तनाव बढ़ा हुआ है. ये तनाव किसी भी वक्त एक विनाशकारी जंग का रूप ले सकता है. दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकत इसे रोकने में लगी हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरान के प्रतिनिधि आमिर सईद इरवानी ने साफ किया कि इजराइल को ईरान अकल्पनीय दंड देगा.
ईरान ने इससे पहले भी 13 अप्रैल को इजराइल पर करीब 300 रॉकेट और ड्रोन से हमला किया था. लेकिन ईरान के 99 फीसदी रॉकेट्स को इजराइल ने अमेरिका और उसके अरब सहयोगियों की मदद से नाकाम कर दिए थे. एक बार फिर ईरान ने इजराइल को हमले की धमकी दी है, इस बार हमला पहले की तरह नहीं बल्कि बड़ा और कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है. ईरान के हालिया बयानों से तो ऐसा ही लग रहा है.

अमेरिका कई अरब देश से बार बार आग्रह कर रहा है कि वे ईरान पर हमला न करने के लिए दबाव बनाएं. इसी सिल-सिले में जॉर्डन के विदेश मंत्री ने भी ईरान का दौरा किया था, लेकिन ईरान अपनी बात पर अटल है और बार बार धमकी दे रहा है कि वे इजराइल को उसके किए का सबक जरूर सिखाएगा. अब सवाल उठने लगा है कि अगर इस तनाव ने जंग का रूप लिया तो दुनिया की दूसरी बड़ी ताकतें किस तरफ खड़ी होंगी.
अमेरिका और पश्चिमी देश
ये बात नई नहीं है कि फिलिस्तीन और इजराइल के संघर्ष में ज्यादातर पश्चिमी देशों का झुकाव इजराइल की तरफ रहा है. अब ईरान की बात करें तो इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान से पश्चिमी देशों ने दूरी बना ली है. अमेरिका के साथ साथ कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली आदि खुले तौर पर इजराइल के साथ हैं और अगर ईरान इजराइल पर हमला करता है, तो ये इजराइल को सैन्य मदद भी दे सकते हैं. अमेरिका और ब्रिटेन ने पहले ही अपनी मौजूदगी मध्य पूर्व में बढ़ा दी है.
चीन-रूस किस तरफ जाएंगे?
इस पूरे तनाव के बीच दुनिया की नजरें चीन और रूस पर बनी हुई है. पिछले कुछ सालों में ईरान की चीन और रूस के साथ करीबी बढ़ी है. रूस और चीन के इजराइल के साथ सामान्य रिश्ते हैं, लेकिन चीन गाजा युद्ध के दौरान इजराइल के हमलों की निंदा करता रहा है और कुछ खबरों के मुताबिक वे हमास के नेताओं से भी संपर्क में है.
ईरान के पूर्व राष्ट्रपति के साथ पुतिन
पश्चिमी मीडिया ने कई बार दावा किया है कि ईरान के मिसाइल और ड्रोन रूस ने यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल किए हैं. इसके अलावा सीरिया में बशर अल असद की सरकार को बचाने के लिए भी रूस और ईरान साथ मिलकर काम कर चुके हैं. खबरें हैं कि ईरान इजराइल पर हमला करने के लिए रूस के साथ भी लगातार संपर्क में है और इस हमले में वे रूसी मिसाइलों का भी इस्तेमाल कर सकता है.
चीन के लिए ईरान बेहद जरूरी है, वे उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का भी हिस्सा है. चीन नहीं चाहता है कि मध्य पूर्व में तनाव बढे, पहले ही चीन तनाव की वजह से अपने निर्यात पर असर झेल रहा है. चीन ने ज्यादातर मौकों पर दोनों ही पक्षों से तनाव कम करने की अपील की है.
अरब देश किस तरफ?
अरब देशों की बात करें तो इस युद्ध में सऊदी अरब, कतर, UAE और ओमान अहम किरदार अदा कर सकते हैं. यही देश पूरे मध्य पूर्व में अपना वर्चस्व रखते हैं. कतर की बात करें तो कतर के अमेरिका और ईरान दोनों से अच्छे रिश्ते हैं. कतर ने इस्माइल हानिया की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की है, लेकिन कतर अमेरिका को इजराइल के बचाव करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल करने दे रहा है.
इस्माइल हानिया के साथ कतर के अमीर
वहीं ओमान की बात करें तो ये भी अमेरिका का एक अच्छा दोस्त है. ओमान सालों से अमेरिका और ईरान के बीच होने वाली बातचीत का हिस्सा रहा है और दोनों देशों के बीच एक चैनल की तरह काम करता आया है.

वहीं सऊदी अरब मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार है और ईरान के साथ उसकी कई मुद्दों पर अन-बन रही है. 10 मार्च को चीन की मध्यस्थता में दोनों देशों ने आपसी रिश्तों को बहाल किया था, गाजा युद्ध में सऊदी अरब भी इजराइल का विरोध करता रहा है, लेकिन उसने इजराइल के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है. ईरान अगर हमला करता है, तो माना जा सकता है कि सऊदी अरब अपने आपको दूर रखेगा और वह न तो अमेरिका और न ही ईरान का खुले तौर पर साथ देगा.
तुर्की, भारत और पाकिस्तान कहां जाएंगे?
अगर इजराइल के खिलाफ बयानों की बात की जाए तो तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन सबसे आगे रहे हैं. हाल ही में तुर्की ने गाजा पर इजराइली आक्रामकता के खिलाफ उसके साथ अपने व्यापारिक संबंध खत्म किए हैं. एर्दोगन के आलोचकों का दावा है कि इजराइल की और जाने वाला तेल ज्यादातर तुर्की की बंदरगाहों से ही होकर जाता है, जिसपर तुर्की ने अभी तक रोक नहीं लगाई है.
भारत के रिश्ते इजराइल और ईरान दोनों के साथ ही दोस्ती वाले हैं. भारत का गुट निरपेक्ष रहना का इतिहास रहा है. इस तनाव के दौरान भी भारत दोनों पक्षों से तनाव कम करने का आग्रह कर रहा है.

पाकिस्तान की बात करें तो पाकिस्तान इजराइल को देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है. पाकिस्तान का ईरान के साथ भी सीमा विवाद है, लेकिन मध्य पूर्व के पूरे तनाव के दौरान वह फिलिस्तीन और ईरान की तरफ खड़ा नजर आ रहा है. अगर जंग होती है तो पाकिस्तान इसमें क्या भूमिका निभाता है, ये देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि पाकिस्तान इकलौता मुस्लिम परमाणु संपन्न देश है.

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