उत्तर भारत का यह शहर ‘किला मुबारक’ के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है

पंजाब का बठिंड़ा शहर का अपने आप में ऐतिहासिक, धार्मिक महत्व के साथ अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों को समेट कर रखा हुआ है. जो पर्यटक ऐतिहासिक, धार्मिक, खूबसूरत प्राकृति के बीच पंजाबी संस्कृति को करीब से देखना चाहते है उनके लिए बठिंड़ा शहर सबसे अच्छी जगह है. इस शहर में पर्यटकों को देखने के लिए ऐतिहासिक किला, गुरुद्वारा और दुर्गा मंदिर बने हुए हैं वहीं यहां की मानव निर्मित 5 झीलें इस शहर को खूबसूरती को कई गुना तक बढ़ा देती हैं.
इन्हीं झीलों की वजह से इस शहर को पंजाब का “झीलों का शहर” का शहर कहा जाता है. बठिंड़ा आने वाले पर्यटकों के आकर्षण केंद्र में शामिल हैं लखी जंगल, रोज़ गार्डन, किला, गुरूद्वारा, मैसर खाना दुर्गा मंदिर और प्राकृतिक दृश्यों के बीच में प्राचीन इमारतें इस शहर की शान बन कर खड़ी हैं. बठिंड़ा के दर्शनीय स्थलों पर एक नजर डालते हैं.
मैसर खाना मंदिर : इस मंदिर का निर्माण मैसर खाना देवी दुर्गा, देवी ज्वाला के सम्मान में बनाया गया था. ये मंदिर बठिंड़ा शहर से करीब 30 किमी की दूरी पर बठिंड़ा – मनसा रोड पर स्थित है. इस मंदिर में हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन भव्य मेला लगता है. हिंदू धर्म के अनुसार ज्वाला देवी का भक्त कमल उनके दर्शन करने के लिए खतरनाक तीर्थ यात्रा पर निकला था, लेकिन वो यात्रा को पूरी न कर सका, इसलिए उसने मां दुर्गा को खुश करने और उनके दर्शन के लिए उसने आजीवन तपस्या शुरू कर दी. अपने भक्त की तपस्या से खुश हो कर मां दुर्गा ने एक साल में दो बार अपने दर्शन भक्त कमल को दिए थे. मां दुर्गा के लगने वाले मेले में पंजाब के अलावा पड़ोसी राज्यों से श्रद्धालु मां के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने आते हैं.
तख्त श्री दमदमा साहिब गुरूद्वारा : बठिंड़ा शहर से करीब 20 किमी क दूरी पर दमदमा गांव में ये तख्त श्री दमदमा साहिब गुरूद्वारा है. स्थानीय लोगों के अनुसार आनंदपुर साहिब, चमकौर साहिब और मुक्तसर में मुगलों के साथ हुई भीषण युद्ध के बाद गुरु गोविंद सिंह मालवा के जंगलों में चले गए थे. सिख गुरु गोविंद सिंह इसी जगह पर पूरे नौ महीने और नौ दिन तक रुके थे और उन्होंने इसी जगह को अपने प्रसार के केंद्र से रुप में उपयोग किया था. उन्होंने इस जगह को खालसे-दा-तख्त कहकर संबोधित किया है, और उन्होंने एक मुहर बनवाई थी जिस पर ‘तख़्त दमदमा साहिब जी’ लिखा था.
दमदमा साहिब निहंग सिख समुदाय का मुख्य केंद्र भी है. यहां पर हर साल बैशाखी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. तख्त श्री दमदमा साहिब में 10 गुरूद्वारा और तीन तालाब जिन्हें नानकसर सरोवर, अकालसर सरोवर, गुरुसर सरोवर के नाम से जाना जाता है. नानकसर तालाब का संबंध गुरु नानक देव जी के साथ जुड़ा है, अकालसर सरोवर का संबंध गुरु गोविंद सिंह जी के साथ जुड़ा है, इस सरोवर के बारे में मशहूर मान्यता है कि इस सरोवर के पानी का एक घूंट पीने से किसी भी तरह की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है. वहीं गुरुसर सरोवर को गुरु तेग बहादुर जी के कहने पर बनाया गया था.
किला मुबारक : बठिंड़ा शहर का उल्लेख हिंदू धर्म के ग्रंथ ऋग्वेद और महाभारत में भी बताया गया है. बठिंड़ा शहर का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से रहा है. इसलिए बठिंड़ा में ऐतिहासिक महत्व की वास्तुकला आज भी मौजूद है. बठिंड़ा किला मुबारक भी वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण है. आज ये किला शहर के सबसे व्यस्त इलाके धोबी बाज़ार में स्थित है. इस किला मुबारक का निर्माण यहां के शासक राजा डाब ने 110 ईस्वी में करवाया था. इस किले के निर्माण में जो ईंटें उपयोग में लाई गई थीं वो कुषाण काल ​​की थीं.
किले का निर्माण का मुख्य कारण शहर को दुश्मनों के हमले से सुरक्षित रखना था. इस किले पर दिल्ली के कई शासकों ने अपने अधीन रखा और अपने इच्छानुसार इस किले में कई परिवर्तन करवाए थे. दिल्ली की गद्दी पर बैठी पहली महिला शासक महारानी रजिया सुल्ताना को भी बंदी बनाकर इसी किले में रखा गया था. साल 1705 में सिखों के 10वें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने भी इस किले पर कुछ समय गुजारा था. उनकी याद में इस किले में एक गुरुद्वारा गुरु गोविंद सिंह बना हुआ है. किला मुबारक की वास्तुकला नाव के आकार की है.
जो दूर से देखने पर रेत में खड़े जहाज की तरह दिखाई देती है. इसी किले के अंदर पटियाला राजपरिवार के लोग रहते थे. इस जगह को ‘किला अंदरून’ कहते हैं. इस किले में राजपरिवार के लिए अलग-अलग महल बने हुए थे. जैसे मोती महल, राजमाता महल, शीश महल, जेल महल (शाही कैदियों के लिए बना था ), चांद का महल, रंग का महल.
रोज गार्डन : शहर की खूबसूरती को निखारने में यहां के रोज गार्डन यानी गुलाब पार्क की भी अहम भूमिका है. इस रोज गार्डन की खूबसूरती यहां लगे गुलाब की अलग-अलग प्रजातियां हैं. इस रोज गार्डन का उद्घाटन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 6 मई 1979 को किया था. इस गार्डन में घूमने के लिए प्रवेश निशुल्क है. यहां पर पर्यटकों को गुलाब के फूलों की कई किस्में देखने को मिलती हैं. जिनमें पापा जेनो, लाल, सफेद गुलाब, बहुरंगी पीला गुलाब, शीयर ब्लिस, की तरह हजारों बैरायटी के गुलाब शामिल हैं. मानसून के मौसम में रिमझिम बारिश के दिन गुलाब गार्डन को देखने का अपना अलग ही मजा है.
बीर तालाब चिड़ियाघर : बीर तालाब के पास बने इस चिड़ियाघर कई तरह के जंगली जानवर, पक्षी देखने को मिलते हैं. बठिंड़ा रेड क्रॉस सोसाइटी ने 1978 में इसका निर्माण करवाया था. साल 1982 में पंजाब सरकार के वन एवं वन्यजीव संरक्षण विभाग ने इस चिड़ियाघर को अपने कब्जे में लेकर यहां मौजूद वन्य जीवों के देखभाल करने की जिम्मेदारी में हाथों में ले ली थी. इस चिड़ियाघर पर्यटकों को देखने के लिए चीतल, हिरण, बंदर, तेंदुए, सारस, बत्तख, के साथ शीशम, बांस, सागौन जैसे कई संरक्षित पेड़ भी देखने को मिलते हैं. बीर तालाब चिड़ियाघर का आकर्षण यहां के चित्तीदार हिरण है, इन हिरणों को पर्यटक बिलकुल नजदीक से देख सकते हैं साथ ही हिरण सफारी का आनंद भी उठा सकते हैं.
कैसे पहुंचें बठिंड़ा
सड़क मार्ग : बठिंड़ा चंडीगढ़ से 220 किमी, अमृतसर से 190 किमी, लुधियाना से 140 किमी, और जलंधर से करीब 160 किमी है. बठिंड़ा राजधानी दिल्ली, जयपुर जम्मू से सीधे जुड़ा हुआ है. दिल्ली से पंजाब, हरियाणा की वोल्वो बस की सुविधा भी मौजूद है वहीं पर्यटक अपनी खुद की गाड़ी या कैब से भी पहुंच सकते हैं.
रेल मार्ग : बठिंड़ा के लिए दिल्ली और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कई सुपर फास्ट ट्रेने चलती है जो लगभग 5.15 घंटे में पहुंचा देती हैं. बठिंडा जंक्शन उत्तर रेलवे का बड़ा रेलवे स्टेशन है, जो अंबाला-बठिंडा रेल लाइन पर स्थित है. नई दिल्ली-बठिंडा इंटरसिटी एक्सप्रेस, दादर-अमृतसर एक्सप्रेस रोज चलने वाली ट्रेन है.
हवाई मार्ग : बठिंड़ा आने के लिए सबसे नजदीक का हवाई अड्डा चंडीगढ़ ही है जो बठिंडा से करीब 225 किमी है. चंडीगढ़ से कैब या बस से बठिंड़ा पहुंच सकते हैं.

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