उमर खालिद को स्पेशल कोर्ट से भी नहीं मिली जमानत, जानें जज ने अपने आदेश में क्या-क्या कहा?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद को मंगलवार को बड़ा झटका लगा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक स्पेशल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी. वह साल 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े बड़े षड्यंत्र के मामले में आरोपी हैं. कोर्ट का कहना है कि खालिद की पहली अर्जी खारिज करने के पिछले आदेश को अंतिम रूप दे दिया गया है. खालिद की यह दूसरी नियमित जमानत याचिका थी. उसके ऊपर सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत केस दर्ज किया गया है.
उमर खालिद की याचिका को खारिज करते हुए एडिशनल सेशंस जज समीर बाजपेयी ने कहा, ‘जब दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही 18 अक्टूबर 2022 के आदेश के तहत खालिद की आपराधिक अपील को खारिज कर दिया गया और उसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी याचिका वापस ले ली, तो इस कोर्ट का 24 मार्च 2022 को पारित आदेश अंतिम हो गया है. अब ये कोर्ट किसी भी तरह से खालिद की इच्छा के अनुसार मामले के तथ्यों का विश्लेषण नहीं कर सकती है. साथ ही साथ खालिद की ओर से मांगी गई राहत पर विचार नहीं कर सकती है.’
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद की दलीलों पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस की ओर से आरोप तय करने और ट्रायल शुरू करने में कोई देरी नहीं हुई है. इस प्रकार जब कार्यवाही में देरी अभियोजन पक्ष की ओर से नहीं बल्कि वास्तव में आरोपियों की ओर से हुई है, तो आवेदक (खालिद) इसका लाभ नहीं उठा सकता है. कोर्ट ने खालिद के वकील की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि एल्गर परिषद-माओसिस्ट संबंधों में कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस को जुलाई 2023 में और शिक्षाविद-कार्यकर्ता शोमा कांति सेन को इस साल 5 अप्रैल को जमानत दिए जाने के कारण आरोपी के खिलाफ “प्रथम दृष्टया सबूत” के बारे में सुप्रीम कोर्ट का नजरिया बदल गया है.
वॉट्सऐप मैसेज शेयर करना क्या आतंक फैलाना है?
कोर्ट ने कहा, ‘खालिद के वकील की ओर से बताए गए वर्नोन के मामले के अनुसार, जमानत पर विचार करते समय मामले के तथ्यों का गहन विश्लेषण नहीं किया जा सकता है और साक्ष्य के सत्यापन योग्य मूल्य का केवल सतही विश्लेषण किया जाना होता है और इसलिए हाई कोर्ट ने किया. जमानत देने के लिए आवेदक के अनुरोध पर विचार करते समय साक्ष्य के सत्यापन योग्य मूल्य का सतही विश्लेषण किया गया और ऐसा करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है.’
खालिद की जमानत के खिलाफ दलील देते हुए अमित प्रसाद ने दावा किया था कि उसके वॉट्सऐप चैट से पता चला है कि जमानत की सुनवाई को प्रभावित करने के लिए उसे सोशल मीडिया नैरेटिव सेट करने की आदत है. दलील का खंडन करते हुए खालिद के वकील ने कोर्ट से पूछा था कि क्या वॉट्सऐप मैसेज शेयर करना आपराधिक या टेरर एक्ट है?
दिल्ली में हुई हिंसा में मारे गए थे 53 लोग
राष्ट्रीय राजधानी में दंगे भड़काने की बड़ी साजिश में कथित संलिप्तता के लिए शरजील इमाम, खालिद सैफी और पूर्व AAP पार्षद ताहिर हुसैन समेत बीस लोगों पर मामला दर्ज किया गया था. इन दंगों में 53 लोग मारे गए और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. मामले की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है.