एक सरकार कानून बनाए और दूसरी निरस्त कर दे तो क्या अनिश्चितता नहीं होगी? पंजाब सरकार से सुप्रीम कोर्ट का सवाल
खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम-2016 से जुड़ी याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा कि जब एक सरकार किसी विश्वविद्यालय के लिए कानून लेकर आती है और अगली सरकार उसको निरस्त कर देती है, ऐसे में क्या कोई अनिश्चितता नहीं होगी? कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं और सरकार की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
खालसा विश्वविद्यालय और खालसा कॉलेज चैरिटेबल सोसाइटी ने हाई कोर्ट के 2017 के फैसले को चुनौती दी है. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के तहत खालसा विश्वविद्यालय का गठन किया गया है. सोसायटी की ओर से चलाए जा रहे फार्मेसी कॉलेज, शिक्षा कॉलेज और महिला कॉलेज को विश्वविद्यालय में मिला दिया गया है.
संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन हुआ है
कोर्ट ने यह भी कहा कि 30 मई, 2017 को खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम को निरस्त करने के लिए अध्यादेश जारी किया गया था. इसके बाद निरसन अधिनियम, 2017 पारित किया गया था. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि निरसन अधिनियम मनमाना है. यहां संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन हुआ है. इस पर पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि इसमें कुछ भी मनमाना नहीं है.
कांग्रेस सरकार ने निरस्त किया था
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने 2016 में कानून बनाया था. साल 2017 में नई सरकार सत्ता में आई. इसके बाद उसने इस कानून को निरस्त कर दिया. शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी की सरकार ने खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम बनाया था. कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे निरस्त किया था.
उन्होंने कहा कि न तो किसी छात्र और न ही विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक ने 2017 के अधिनियम को चुनौती दी है. छात्रों के हित भी प्रभावित नहीं हुए हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह से कानून का सवाल है. एडमिशन हुए या नहीं, ये जानने की जरूरत है.