‘ऐसे मिलेगी स्वर्ग में एंट्री…’, जब एक सनकी ने मां-बहनों के साथ किया था ये खौफनाक कांड
दिसंबर 1970 का महीना… जगह स्पेन का सांता क्रूज इलाका… यहां एक मशहूर डॉक्टर वाल्टर ट्रैंकल रहते थे. उन्होंने उस रात घर के दरवाजे पर दस्तक सुनी. उनकी मेड घर के काम कर रही थी. दरवाजा खोला तो देखा कि सामने कीचड़ से लथपथ हालत में दो आदमी खड़े थे, जो कि उनकी मेड के पिता और भाई थे. डॉक्टर ने मेड को आवाज लगाकर बुलाया और खुद दूसरे कमरे में चले गए.
डॉक्टर वाल्टर उनकी बातों को सुनना तो नहीं चाहते थे. लेकिन दोनों व्यक्तियों की हालत ऐसी देखकर उन्हें न जाने क्यों शक हुआ इसलिए तीनों की बातें सुनने के लिए वह दरवाजे के पास छुपकर खड़े हो गए. जब उन्होंने तीनों की बातें सुनीं तो उनके होश उड़ गए. दरअसल, दोनों व्यक्ति उनकी मेड से कुछ लोगों के कत्ल करने की बात कह रहे थे. वहीं, मेड भी खुशी से कह रही थी कि जो कुछ भी आप दोनों ने किया वह सही किया. डॉक्टर ने यह सब सुनते ही तुरंत पुलिस को फोन मिलाया और पूरी बात बताई.
जब तक पुलिस उनके घर नहीं पहुंच गई डॉक्टर वाल्टर को हर एक सेकंड गुजारना बहुत ही भारी लग रहा था. वाल्टर को लग रहा था जैसे कहीं वे तीनों पुलिस के आने तक भाग ही न जाएं. या कहीं घर के अंदर उन्हें भी न मार डालें. तभी पुलिस टीम उनके घर पहुंची. मेड और उसके पिता-भाई वाल्टर के घर पर ही थे. अब पुलिस के आने के बावजूद परिवार कत्ल की बातें कर रहा था. पुलिस ने तीनों को पकड़कर जब पूछताछ की तो पता चला पिता-बेटे ने तीन महिलाओं की हत्या कर डाली है.
पुलिस की भी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा. क्योंकि उनके हाव-भाव से बिल्कुल भी पता नहीं लग रहा था कि उन्होंने ऐसा भी कुछ किया है. फिर पुलिस ने अच्छे से पूछताछ की तो मेड के पिता और भाई ने पूरी घटना बता दी. कहा कि उन्होंने तीन लोगों का कत्ल किया है. पुलिस उनके बताए पते पर पहुंची तो उनके भी होश उड़ गए. एक अपार्टमेंट के अंदर 3 शव क्षत-विक्षत हालत में पड़े हुए थे. एक शव बेडरूम में और दो शव लिविंग रूम में. ऐसा लग रहा था जैसे वहां खून की होली खेली गई हो. पुलिस भी हैरान थी कि ऐसी भी क्या बात हो गई कि तीन लोगों का इतनी बेरहमी से मर्डर कर दिया जाए.
1800 में बनी द लोर्बर सोसायटी
इसके बाद पुलिस ने तुंरत शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा और गिरफ्तार दोनों व्यक्तियों से इन हत्याओं की वजह पूछी. जब दोनों ने वजह बताई तो पुलिस भी दंग रह गई. दरअसल,1800 में एक मजहब बना था, द लोल्बर सोसायटी जिसकी शुरुआत जर्मनी के ड्रेसडन शहर से हुई थी. हैरल्ड एलेक्जेंडर ने इस सोसायटी का नेतृत्व संभाल रखा था. यह सोसायटी 100 लोगों का एक समूह था. इस सोसायटी की मान्यताएं और विचारधाराएं एक सिद्धांत के इर्द गिर्द केंद्रित थीं. इस सोसायटी का मानना था कि लोर्बर सोसायटी के बाहर बुराई ही बुराई है. सोसायटी वालों का मानना था कि ग्रुप की कमान संभालने वाले हैराल्ड की एक संतान होगी जिसका नाम फ्रैंक एलेक्जेंडर होगा. वह एक मसीहा होगा.
मां-बहनों के साथ संबंध बनाने को कहा
फ्रैंक को वे लोग जन्म से पहले ही भगवान मान रहे थे. उनका मानना था कि फ्रैंक की हर मांग को बिना किसी सवाल के पूरा किया जाएगा. आलम यह था कि लोग हैरल्ड की बातों में आकर इस सोसायटी से जुड़ते ही चले गए और उनके अनुयायियों की संख्या हजारों में हो गई. इसी बीच फ्रैंक का जन्म हो गया. वह जब धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो उसे इंसानी जरूरत महसूस होने लगीं. तब उसे पता चला कि अगर उसने सोसायटी से अलग जाकर किसी के भी साथ कोई संबंध बनाया तो गलत हो जाएगा. और उसे ईशनिंदा जैसा अपराध माना जाएगा. तब फ्रैंक ने अपने अनुयायियों को अनुचार करने को कहा. उसने अपनी मां और बहन के साथ संबंध बनाने के लिए सभी को प्रेरित किया. हैरानी की बात यह थी कि अनुयायियों ने उसकी बात मान भी ली.
फ्रैंक का अजीब फरमान
1960 के बाद हैराल्ड और उसके परिवार के बारे में यह बातें फैलनी शुरू हो गईं. परिवार को अब समझ आने लगा कि वह कानून के झमेले में फंस सकते हैं. इसलिए उन्होंने अपना सामान लपेटा और स्पेन में कैनरी आईलैंड चले गए. हालांकि, उन्होंने जगह भले ही बदल ली लेकिन उनकी सोच और आदतें वैसी ही रहीं. इधर फ्रैंक का पागलपन बढ़ता ही जा रहा था. वह पूरी तरह से बेलगाम हो चुका था. स्पेन जाने के 10 महीने बाद 22 दिसंबर 1970 को फ्रैंक ने घोषणा की कि अब हत्या का समय आ गया है. उसने कहा कि अगर उसके अनुयायी महिलाओं की हत्या करते हैं तो उन्हें स्वर्ग में जगह मिलेगी. उसने तर्क दिया कि महिलाएं स्वभाविक रूप से दुष्ट होती हैं और अगर अनुयायी उनकी हत्या नहीं करते हैं को उन्हें स्वर्ग में जगह नहीं दी जाएगी.
बहनों के सामने मां को मारा
हत्याकांड की शुरुआत फ्रैंक के परिवार से ही हुई. परिवार की महिलाओं को कहा गया कि वे किसी भी समय मारी जा सकती हैं. जब भी उन्हें कहा जाए कि उन्हें मरना है, वे लोग खुद को समर्पित कर दें. एक रोज फ्रैंक ने अपनी ही मां को हत्या के लिए चुन लिया. क्योंकि उसका मानना था कि उसकी जो भी हालत हुई है उसकी जिम्मेदार उसकी मां ही है. सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये थी उसके अनुयायियों ने फ्रैंक के इस फैसले पर सवाल तक नहीं उठाया. फिर जब फ्रैंक अपनी मां को कुल्हाड़ी से मारने लगा तो वह आराम से उसके सामने बैठ गई. उसी समय फ्रैंक की बहनें पेट्रा और मरीना भी वहां पहुंच गईं. लेकिन मां को मरता देख उन्हें भी कोई असर नहीं हुआ.
इसके बाद फ्रैंक ने दोनों बहनों को भी बेहरमी से पीटना शुरू कर दिया. यह बात उस समय सामने आई जब फ्रैंक के पड़ोसियों ने बताया कि उनके घर से दबी हुई कराहने की आवाजें आ रही थीं. लेकिन वो आवाजें जोर से इसलिए नहीं आ पाईं क्योंकि फ्रैंक के घर में जोर से म्यूजिक भी बज रहा था.
पुलिस ने भेजा पागलखाने
फ्रैंक एक पेशेवर हत्यारा नहीं था. फ्रैंक ने जब दोनों बहनों को भी मार डाला तो पिता हैरल्ड के साथ जोर-जोर से झूमना और नाचना शुरू कर दिया. इस हत्या के बाद हैरल्ड और फ्रैंक डॉक्टर वाल्टर के घर पहुंचे. वहां उन्हें मेड सबाइन (फ्रैंक की तीसरी बहन) के साथ भी ऐसा ही करना था. लेकिन इसी बीच उनकी बातचीत को सुनकर डॉक्टर वाल्टर ने पुलिस को बुला लिया था. लेकिन पुलिस ने फ्रैंक और हैराल्ड को कोर्ट में पेश नहीं किया. क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट में दोनों मानसिक रूप से कमजोर पाए गए. इसलिए उन्हें पागलखाने भेज दिया गया. इसी बीच सबाइन ने भी उनके साथ जाने की गुहार लगाई. लेकिन उसे उनके साथ नहीं भेजा गया. दोनों पिता-बेटा पागलखाने में रहे. फिर 1991 में दोनों पागलखाने से किसी तरह भाग निकले और उसके बाद से उनका अब तक कुछ पता नहीं लग पाया.