ओडिशा में BJP से अलायंस न करके घाटे में रहे नवीन पटनायक? TV9 एग्जिट पोल से समझिए
पूर्वी भारत के राज्य ओडिशा में लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और बीजू जनता दल (बीजेडी) के बीच गठबंधन को लेकर कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन अंततः बातचीत सफल नहीं हुई. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. बीजेपी और बीजेडी दोनों ही अलग-अलग चुनाव लड़े. सभी की निगाहें टिकी हुई हैं कि क्या अकेले चुनाव लड़ने पर बीजेडी को फायदा हुआ या फिर उसे नुकसान का सामना करना पड़ा? PEOPLES INSIGHT, POLSTRAT और TV9 के एग्जिट पोल सर्वे का अनुमान है कि ओडिशा में अलांयस नहीं कर नवीन पटनायक घाटे में रहे हैं.
ओडिशा में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव साथ हुए हैं. ओडिशा में लोकसभा सीटों की संख्या 21 है. एग्जिट पोल सर्वे का अनुमान है कि ओडिशा में बीजेपी को 13 सीटें मिल सकती है, जबकि बीजेडी को मात्र सात सीटों से संतोष करना पड़ सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आठ सीटें मिली थी. इस तरह से बीजेपी को कुल पांच सीटों का फायदा होने का अनुमान है. वहीं, बीजेडी को 12 सीटें मिली थी. उसे पांच सीटों का नुकसान होने का अनुमान है. हालांकि रिजल्ट की घोषणा 4 जून को होगी, तभी सही तस्वीर सामने आ पाएगी.
2019 के चुनाव में बीजेडी को हुआ था नुकसान
बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में भी बीजेडी को नुकसान का सामना करना पड़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी ने राज्य की कुल 21 लोकसभा सीटों में से 20 पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेडी को आठ सीटों का नुकसान का सामना करना पड़ा था. उसकी सीटें कम होकर 12 रह गई थी. बीजेडी की सीटें घटने का फायदा बीजेपी को हुआ था. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को केवल सीट मिली थी, लेकिन 2019 में सात सीटों का इजाफा हुआ था और बीजेपी ने आठ सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस को भी एक सीट मिली थी.
बातचीत के बाद भी नहीं हो सका अलायंस
बता दें कि ओडिशा में चुनाव से पहले बीजेपी और बीजेडी के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी, लेकिन यह बातचीत सफल नहीं हुई और दोनों ही पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा है और ओडिशा में चुनाव के दौरान बीजेपी और बीजेडी के बीच कड़ी टक्कर हुई है और जमकर सियासी बयानबाजी हुई. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने नवीन पटनायक के स्वास्थ्य को लेकर टिप्पणी की, तो पटनायक ने उन पर पलटवार किया था. चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के निशाने पर नवीन पटनायक के सहयोगी और रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी वी.के. पांडियन भी रहे. वहीं, भाजपा नेता और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान 15 साल के अंतराल के बाद अपने गृह राज्य में सीधे चुनाव में लौटे. उन्होंने पिछले एक दशक में भाजपा के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में नाम कमाया है और कैबिनेट में महत्वपूर्ण पद हासिल किया है.
चुनाव में नवीन पटनायक की साख दांव पर
इस चुनाव में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की साख दांव पर है. यदि वह चुनाव में जीत हासिल करेंगे, तो 24 साल से पद पर रहे ओडिशा के सीएम छठी बार सत्ता संभालेंगे. वह सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री बन सकते हैं.
दिवंगत बीजू पटनायक के बेटे, 77 वर्षीय बीजद प्रमुख को 50 साल की उम्र तक राजनीति को कोई अनुभव नहीं था, लेकिन राजनीति में कदम रखने के बाद कभी भी उन्हें पराजय का सामना नहीं करना पड़ा है. पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय इस्पात मंत्री के रूप में एक संक्षिप्त कार्यकाल (1998 और 1999) के बाद पटनायक ने 5 मार्च, 2000 को ओडिशा के मुख्यमंत्री बने. तब से उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में रुचि नहीं दिखाई, इसके बजाय उन्होंने राज्य पर ध्यान केंद्रित किया है.
एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बीजेडी के 26 दिसंबर, 1997 को अपने गठन के बाद से कभी भी सत्ता से बाहर नहीं रही है. 2009 तक बीजेडी और भाजपा दोनों गठबंधन में रहे, लेकिन ईसाई विरोधी दंगों के मुद्दे पर 2009 के चुनाव से ठीक पहले बीजेडी ने भाजपा के साथ अपना संबंध तोड़ लिया. उसके बाद बीजेडी 2009, 2014 और 2019 के राज्य चुनावों में 147 सदस्यीय ओडिशा विधानसभा में लगातार 100 से अधिक सीटें जीती हैं. 2009 के बाद अकेले लड़ने के बावजूद पार्टी ने लोकसभा चुनावों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है.