कर्नाटक में कांग्रेस को क्यों सता रहा हॉर्स ट्रेडिंग का डर, क्या गिर सकती है सिद्धारमैया सरकार?
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुडा स्कैम में मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है. कांग्रेस ने राज्यपाल के इस फैसले को असंवैधानिक बताया है. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल अपने आदेश से सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं. सिद्धारमैया ने भी बयान जारी कर इसे सरकार और अपने खिलाफ साजिश बताया है.
कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटें हैं, जिसमें से 137 सीटों पर कांग्रेस गठबंधन का वर्तमान में कब्जा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सिद्धारमैया और कांग्रेस को कर्नाटक में हॉर्स ट्रेडिग का डर क्यों सता रहा है?
हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब क्या होता है?
कैंब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक हॉर्स ट्रेडिंग का बार्गेनिंग (सौदेबाजी) से जुड़ा शब्द है. यह शब्द पहले अरब देशों में घोड़ों के व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता है. साल 1990 से भारतीय राजनीति में भी इसका प्रयोग हो रहा है.
पॉलिटिक्स में इसका प्रयोग नेताओं को तोड़ने के लिए किया जाता है. कई बार एक पार्टी दूसरी पार्टी के नेताओं को लालच और डर के नाम पर तोड़ लेती है, इसलिए टूट की इस प्रक्रिया को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है.
पिछले एक दशक का रिकॉर्ड देखा जाए तो भारत में महाराष्ट्र और कर्नाटक राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र रहा है.
कांग्रेस को कर्नाटक में सरकार अस्थिर होने का डर क्यों?
1. 2019 में गिर चुकी है सरकार
डर की सबसे बड़ी वजह टाइमिंग है. सिद्धारमैया के खिलाफ जो एक्शन राज्यपाल ने लिया है, वो लोकसभा चुनाव के ठीक बाद लिया है.
साल 2019 में लोकसभा चुनाव के समय तक जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. उस वक्त कांग्रेस के 15 विधायक बागी हो गए थे.
कांग्रेस ने इन विधायकों को रोकने की तमाम कोशिशें कीं, लेकिन विधायकों को रोक नहीं पाए. हालांकि, इस बार की परिस्थितियां अलग है. कांग्रेस अकेले बूते पर सरकार में है. पार्टी के पास बहुमत से 25 विधायक ज्यादा हैं, लेकिन इसके बावजूद 2019 की घटना की वजह से पार्टी डरी हुई है.
2. आंतरिक गुटबाजी भी एक वजह
सरकार बनने के बाद कर्नाटक में कांग्रेस कई धड़ों में बंट चुकी है. इनमें सिद्धारमैया और शिवकुमार का गुट प्रमुख है. हाल ही लोकसभा चुनाव के बाद सिद्धारमैया गुट ने शिवकुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. सिद्धारमैया गुट के 3 मंत्री लगातार शिवकुमार के खिलाफ बयान दे रहे थे. इन मंत्रियों की दो प्रमुख मांगे थी-
– डीके शिवकुमार के अलावा कर्नाटक में कम से कम दो डिप्टी सीएम बनाए जाएं.
– वन पोस्ट, वन पर्सन फॉर्मूला के तहत शिवकुमार से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ली जाए.
यह विवाद कांग्रेस में थमा भी नहीं था कि सिद्धारमैया के खिलाफ राज्यपाल ने एक्शन ले लिया है. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि शिवकुमार के गुट भी मुख्यमंत्री की घेराबंदी कर सकते हैं.
हालांकि, डीके शिवकुमार ने सिद्धारमैया का बचाव किया है और कहा है कि हमारे पास पर्याप्त बहुमत है. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद से अभी नहीं हटने जा रहे हैं.
3. मिली केस की मंजूरी तो गए जेल
देश में अब तक जितने भी मुख्यमंत्रियों के खिलाफ राज्यपाल ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है, उन सभी को जेल जाना पड़ा है. इस फेहरिस्त में लालू यादव, बीएस येदियुरप्पा और अरविंद केजरीवाल का नाम शामिल हैं.
साल 1997 में लालू यादव के खिलाफ बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने चारा घोटाला मामले में केस चलाने की मंजूरी दी थी. राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही सीबीआई केस में एक्टिव हो गई और जांच के बाद लालू की गिरफ्तारी हुई.
इसी तरह साल 2011 में जमीन घोटाले में लोकायुक्त ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी मांगी. राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने इसकी तुरंत परमिशन दे दी. कोर्ट से वारंट निकलने के बाद येदियुरप्पा को गिरफ्तारी देनी पड़ी. दोनों ही नेताओं को गिरफ्तारी की वजह से मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छोड़नी पड़ी.
2022 में दिल्ली में शराब घोटाला का कथित मामला सामने आया. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इसकी जांच की मंजूरी दी. सीबीआई जब इस मामले की जांच शुरू की तो दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों को रडार पर ले लिया.
सीबीआई ने पहले अक्टूबर 2022 में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया और फिर मार्च 2024 में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को. केजरीवाल अभी भी जेल में बंद हैं.
कर्नाटक विधानसभा का समीकरण क्या है?
224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में वर्तमान में 3 सीट रिक्त है. कांग्रेस पास 134 विधायक तो 1 सर्वोदय कांग्रेस के पास है. पार्टी को अभी 2 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है. बीजेपी के पास 66 और जेडीएस के पास अभी 18 विधायक हैं.
राज्य में सरकार बनाने के लिए अभी 111 विधायकों की जरूरत है. एनडीए को सरकार बनाने के लिए इस स्थिति में कम से कम 25 विधायकों की जरूरत होगी.
किन राज्यों में गिर गई कांग्रेस की सरकार?
विधायकों की टूट की वजह से सबसे पहले कर्नाटक में ही साल 2019 में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार गिरी. इसके बाद साल 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ की सरकार गिर पड़ी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर दी थी.
2022 में कांग्रेस समर्थिक महाराष्ट्र विकास अघाडी की सरकार महाराष्ट्र में गिर गई. इस सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे के पास था.