कांजीवरम और बनारसी साड़ी में क्या अंतर है? यहां जानें

साड़ी भारतीय संस्कृति और पहनावे का एक अहम हिस्सा है. हर महिला को साड़ी पहनना पसंद होता है. खासकर किसी खास अवसर के दिन. साड़ी को पहनने का तरीका बहुत अलग-अलग होता है. जैसे नॉर्थ इंडियन, साउथ इंडियन, गुजराती, और महाराष्ट्रीयन शैली. हर शैली का अपना एक विशेष तरीका और महत्व है. साड़ी पहनने में लगने वाला समय और मेहनत इसकी खूबसूरती को और बढ़ाता है. हर साड़ी की अपनी एक पहचान होती है.
भारतीय महिलाएं हर खास मौके पर ज्यादातर साड़ी पहनना पसंद करती हैं. साथ ही बॉलीवुड एक्ट्रेसेस भी खास मौके पर साड़ी पहने हुए नजर आती हैं. आजकल साड़ी को पहनने का तरीके में बहुत बदलाव होता जा रहा है. बड़े-बड़े फैशन डिजाइनर्स भी साड़ी को नए और मॉडर्न रूप से डिजाइन कर रहे हैं. जैसे कि साड़ी पर वर्क, डिजाइन साथ ही युनिक ब्लाउज डिजाइन साड़ी लुक को स्टाइलिश बनाने के लिए ट्राई किए जाते हैं. इसी के साथ ही साड़ी के कपड़े की विभिन्न प्रकार होती हैं, जैसे सिल्क, कॉटन, जॉर्जेट, और शिफॉन. भारत के विभिन्न राज्यों में साड़ी के अपने विशेष रूप और डिजाइन होते हैं जैसे बनारसी साड़ी, कांजीवरम साड़ी, और बालूचरी साड़ी आदि.
आपने भी खास मौके पर महिलाओं को बनारसी या कांजीवरम सिल्क साड़ी पहने हुए देखा होगा. लेकिन इन साड़ियों के बीच पहचान करनी कई बार काफी मुश्किल हो जाती है. क्योंकि ये देखने में लगभग एक जैसी लगती हैं. तो आप इन आसान तरीकों के बनारसी और कांजीवरम साड़ी के बीच पहचान कर सकते हैं.
कपड़ा
यह साड़ी दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु के कांजीवरम शहर से आती है. आमतौर पर कांजीवरम साड़ी प्योर शहतूत रेशम के बनाई जाती है, जो मजबूत और चमकदार होती है. वहीं बनारसी साड़ी साड़ी उत्तर प्रदेश के वाराणसी यानी की बनारस से आई है. लेकिन ये रेशम से बनी होती है, इसमें बनारसी रेशम और जरी का भी उपयोग होता है, जिससे इसे एक खास लुक मिलता है. साथ ही रेशमी धागों या ब्रोकेड कपड़े से बनने के कारण इनकी बनावट नाजुक और चिकनी होती है.
डिजाइन और पैटर्न
अगर बात करें डिजाइन और पैटर्न की तो, कांजीवरम साड़ी में पारंपरिक दक्षिण कारीगरी होती है, जिसमें प्राकृतिक जैसे फूल, पत्ते, और मंदिर, चेक, मोर और तोते, बोल्ड बॉर्डर के कारीगरी के पैटर्न होते हैं. वहीं बनारसी साड़ी पर आमतौर पर मुगल-प्रेरित डिजाइन होते हैं. जैसे कि फूल, पत्तियां, पक्षी और जानवर. साथ ही बनारसी साड़ी पर जरी का काम किया जाता है जिसमें बुटा, बूट और दूसरे बहुत से डिजाइन शामिल होते हैं.
वजन
कांजीवरम साड़ी आमतौर पर भारी होती है और इसकी बनावट मजबूत होती है. वहीं बनारसी साड़ी हल्की और शिफॉन जैसी होती है, जिससे इसे पहनना और संभालना आसान होता है.
बनावट
कांजीवरम साड़ी मोटी और टिकाऊ होती है. कांजीवरम साड़ियों को अलग-अलग रंग के धागों से बनाया जाता है जिससे लाइट बदन पर साड़ी का रंग भी बदला दिखाई देने लगता है. वहीं बनारसी साड़ियों में जरी के धागे का इस्तेमाल किया जाता है और इन पर लाइट पड़ने पर फैब्रिक अलग-अलग तरह की चमक देता है.
कांजीवरम साड़ी अपनी समृद्धता और भव्यता के लिए जानी जाती है, जबकि बनारसी साड़ी अपने जटिल डिजाइन और कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है. दोनों साड़ियाँ अपने-अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का पहचान हैं और भारतीय महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाती हैं.

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