कुशल प्रशासक, बेहतरीन राजनेता और मन में देश की चिंता…मोहन भागवत ने बताया कैसी थीं देवी अहिल्याबाई होलकर
देवी अहिल्याबाई होलकर की आज, 31 मई को जयंती है. उनकी जयंती पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी का यह वर्ष है. हमारे लिए आज की स्थिति में भी उनका चरित्र आदर्श के समान है. सरसंघचालक ने कहा कि दुर्भाग्य से उनको वैधव्य प्राप्त हुआ, लेकिन एक अकेली महिला होने के बाद भी अपने बड़े राज्य को केवल संभालना नहीं, बड़ा करना और केवल राज्य को बड़ा नहीं करना, सुराज्य के नाते उसका कार्यवहन करना, राज्यकर्ता कैसा हो वह इसका आदर्श है. उनके नाम के पीछे पुण्यश्लोक यह शब्द है. पुण्यश्लोक उस राज्यकर्ता को कहते हैं जो राज्यकर्ता अपनी प्रजा को सब प्रकार के अभावों से मुक्त करता है, दुःख से मुक्त करता है. एक तरह से प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य से उऋण जाता है.
उन्होंने कहा कि वास्तव में उस काल में हमारे यहां पर जो आदर्श राज्यकर्ता हुए उनमें से एक देवी अहिल्याबाई थीं. अपनी प्रजा को रोजगार मिले इसलिए उन्होंने उद्योगों का निर्माण किया और ऐसा पक्का निर्माण किया कि महेश्वर का वस्त्र उद्योग आज भी चलता है और बहुत लोगों को रोजगार देता है. सरसंघचालक ने कहा कि उन्होंने प्रजा के सभी अंगों की, जो दुर्बल थे और पिछड़े थे. उसकी भी उन्होंने चिंता की.
अपने राज्य की कर व्यवस्था को उन्होंने सुसंय कर दिया. किसानों की चिंता की. सब प्रकार से उनका राज्य सुराज्य था. अपने बचपन से हम उनका नाम सुनते हैं तो केवल अहिल्याबाई होलकर ऐसा नहीं सुनते, देवी अहिल्याबाई होलकर ऐसा सुनते हैं, तो ऐसी पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर महिलाओं के कर्तृत्व की क्षमता की प्रतीक हैं.
पेश की सशक्तिकरण की मिसाल
मातृशक्ति के सशक्तिकरण की बात आज हम करते हैं, लेकिन मातृशक्ति कितनी सशक्त है और क्या- क्या कर सकती है, कैसे कर सकती है? इसका अनुकरण करने लायक देवी अहिल्याबाई ने अपने जीवन से हम सब लोगों के सामने आदर्श रखा है. उन्होंने जो काम किया वो अनेक प्रकार से विशेष है. राज्य को उन्होंने कुशलतापूर्वक चलाया. उस समय सभी राज्यकर्ताओं से उनके संबंध मित्रता के थे. इतना ही नहीं, आसपास के सभी राज्यकर्ता भी उनको देवी स्वरूपा मानते थे.
इतनी श्रद्धा और आदर उनके बारे में समकालीन राज्यकर्ताओं में था. राज्य पर कोई आक्रमण न हो, इसलिए समरनीति की जानकार के रूप में भी उनको जाना जाता है. बड़ी सेना लेकर राघोबा दादा आए थे, लेकिन देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपनी नीति से और बिना संघर्ष के उस समस्या का समाधान कर दिया. ऐसी कुशल प्रशासक, उत्तम राज्यकर्ता, सामरिक और राजनयिक कर्तव्यों में माहिर राज्यकर्ता थीं और केवल अपने राज्य की उन्होंने चिंता नहीं की, पूरे देश की चिंता की.
कराया अनेकों मंदिरों का निर्माण
अपने देश की संस्कृति का जो आधार है, उसको पुष्ट करने के लिए देश में अनेक स्थानों पर उन्होंने मंदिर बनवाए. अपने को राजा नहीं मानती थीं. “श्री शंकर कृपे करूण” ऐसा लिखती थीं. शिव भगवान की आज्ञा से राज्य चला रही हैं, ऐसा उनका भाव था. उन्होंने कई जगह मंदिर बनवाए, नदियों पर घाट बनवाए, धर्मशालाएं बनवाईं.
उन्होंने सारे भारत में यह कार्य किया, जो धर्मयात्राओं के मार्ग थे और व्यापारिक आने जाने के मार्ग थे, उन पर यह सारे काम किए ताकि भारत की सारी जनता का आना जाना अपने सांस्कृतिक स्थलों में और अपनी आजीविका के लिए सर्वत्र चलता रहे. एकात्मता बनती रहे और बढ़ती रहे. इतना दूर का विचार करके उन्होंने यह काम किया और अपनी धर्म श्रद्धा के कारण किया. इसलिए उन्होंने यह सारा काम अपनी निजी संपत्ति में से किया.
सादगी का जीवन
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि स्वयं रानी होकर बहुत सादगी से रहती थीं. इस प्रकार प्रजा का पालन, राज्य का संचालन, राज्य की सुरक्षा, देश की एकात्मता-अखंडता, सामाजिक समरसता, सुशीलता और सादगी, इनका आदर्श रखने वाली एक महिला राज्यकर्ता, आदर्श महिला इस प्रकार पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई का चित्र हमारे सामने है.
आज की हमारी स्थिति में भी हमारे लिए वो एक आदर्श हैं. उनका अनुकरण करने के लिए पूरे साल उनका स्मरण करने का प्रयास सर्वत्र चलने वाला है. यह अतिशय आनंद की बात है. उस प्रयास को सब प्रकार की शुभकामना देते हुए मैं अपना कथन समाप्त करता हूं.