कूटनीति में माहिर, उदार दक्षिणपंथी चेहरा… जॉर्जिया मेलोनी G7 सम्मेलन में दुनिया का क्यों खींच रहीं ध्यान?

इटली के अपुलिया में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन में दुनिया के सात विकसित देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंचे. अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूनाइटेड किंगडम के इन राष्ट्र प्रमुखों की दुनिया में अपनी धाक है लेकिन इन सभी बड़े नेताओं के बीच जो नाम और चेहरा सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है- वो जॉर्जिया मेलोनी का है. मेलोनी को करीब से जानने वाले कहते हैं- उनमें इतनी गर्मजोशी होती है कि वह किसी का भी दिल जीत सकती हैं. उनकी मुस्कान और उनकी चमकती नीली आंखें सामने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. लेकिन जॉर्जिया मेलोनी राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भी इतनी ही स्मार्ट हैं. वह विचारधारा और डिप्लोमेसी को लेकर इतनी सजग रहती हैं कि आज यूरोप की एक प्रसिद्ध हस्ती बन गई हैं. यूरोपीय संघ के चुनाव में धाक जामकर मेलोनी ने इसका बखूबी अहसास करा दिया है.
G7 शिखर सम्मेलन 2024 में इटली मेजबान देश है लिहाजा जॉर्जिया मेलोनी की गर्मजोशी और तत्परता लाजिमी है. वह इस समिट के हर सीन में ही नही है बल्कि हर सीन का केंद्रीय आकर्षण विंदू भी है जो कि आत्मविश्वास से लबरेज है. पिछले दो दिन से वह अपुलिया में इन सात देशों के प्रमुखों से मिल रही हैं और द्विपक्षीय वार्ता कर रही हैं. अहम बात ये कि इन सातों देशों के राष्ट्राध्यक्ष पुरुष हैं और एक महिला प्रधानमंत्री ने अपनी मेजबानी से दुनिया को चकित कर दिया है. आज वह यूरोप की एक चमकती सितारा बन गई है.
G7 में केवल जॉर्जिया ही नजर क्यों आती हैं?
सवाल अहम है जॉर्जिया मेलोनी में इतनी दक्षता आई कैसे? उसके आकर्षण और स्मार्टनेस को देखते हुए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा कार्यकाल में नाटो में अमेरिकी राजदूत के रूप में काम कर चुके इवो डालडर ने तो यहां तक कह दिया कि मेलोनी को छोड़कर G7 शिखर सम्मेलन में सभी नेता काफी फीके दिखते हैं. हालांकि यह बयान अतिश्योक्ति भरा कहा सकता है लेकिन कई मायने में जॉर्जिया मेलोनी ने यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में कूटनीति की जो मिसाल पेश की है, वह उसे विजेता लीडर का दर्जा देती है.
प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित करने का मकसद
समिट की तस्वीरें बताती हैं जॉर्जिया मेलोनी G7 देशों के काफी अहम हो चुकी हैं. उसकी कूटनीतिक दक्षता का दमखम देखिए. भारत में लोकसभा का चुनाव चल रहा था लेकिन उसी वक्त उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि आने का न्योता दे दिया. मेलोनी को मालूम है भारत G7 का स्थायी सदस्य देश नहीं है लेकिन उस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति को वह जरूरी मानती है. दरअसल यूरोप में जिस तरह से दक्षिणपंथी सियासत का उभार हुआ है और उसमे मेलोनी एक बड़ी नेता बनकर उभरी हैं, उसके बीच प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति को वह अपनी बढ़ती ताकत से जोड़कर देखना चाहती हैं और दुनिया को दिखाना भी चाहती हैं.

यूरोपीय देशों में दक्षिणपंथ का उदार चेहरा
मुसोलिनी को अपना आदर्श मानने वाली जॉर्जिया मेलोनी आज की तारीख में दक्षिणपंथी सत्ता समूह का उदारवादी चेहरा हैं. उसकी कूटनीति उदारवादी मध्य-दक्षिणपंथी धारा से ताल्लुक रखती है. इस धारा में काफी हद तक आम सहमति की संभावना रहती है. क्योंकि ऐसी धारा धुर दक्षिणपंथी और मध्य-दक्षिणपंथी के बीच एक सेतु का काम कर सकती है. मेलोनी के बढ़ते प्रभाव की यह बड़ी वजह मानी जा रही है. उसमें सम्मोहन है तो शक्ति भी.
वैसे मेलोनी की यह लोकप्रियता और स्वीकार्यता रातोंरात हुई घटना की तरह नहीं है. जब वह 2022 में प्रधानमंत्री बनीं तो विशेषज्ञों ने उनकी ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी के नवफासीवादी इतिहास को लेकर गहरी चिंता जताई थी. इटली के अलग-थलग पड़ने की आशंका भी जताई लेकिन मेलोनी ने अपनी छवि सुधारी, उदारवादी रुख अपनाया और फिर इस प्रकार लोगों की धारणा बदल दी. मेलोनी ने अमेरिका समेत यूरोपीय देशों से रिश्ते मजबूत किए. खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर उन्होंने खुद को अन्य धुर दक्षिणपंथी नेताओं से अलग कर लिया. इससे भी उन्हें पश्चिमी नेताओं के बीच खड़े होने में मदद मिली.
मेलोनी की पार्टी यूरोप की किंगमेकर कैसे बनी?
यह उल्लेखनीय है कि मेलोनी की पार्टी ने यूरोपीय चुनावों में अच्छे अंतर से जीत हासिल की है. फ्रांस हार गया. यही वजह है कि आज इटली में मेलोनी की राइट विंग पार्टी तेजी से बढ़ रही है.जॉर्जिया ने हाल में कहा था कि इटली यूरोप को बदल सकता है. जानकार कहते हैं मेलोनी और उसकी पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली की बढ़ती लोकप्रियता ऐसे लोगों को भी जोड़ रही है जो उनकी विचारधारा के समर्थक नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने उदारवादी तरीका अपनाया है. जिसका कड़ा विरोध करना सहज नहीं होता.
जाहिर है कि इसका असर यूरोपीयन यूनियन के चुनाव पर भी देखा गया. कुल 27 देशों के यूरोपीयन संघ की सत्ता में मेलोनी की पार्टी की सीट अब दोगुनी हो गई. यानी उसकी ताकत में बड़ा इजाफा देखने को मिला. प्रवास और जलवायु के मुद्दे पर दक्षिणपंथ का रुख सब पर भारी पड़ा.
भारत और इटली के संबंध और मोदी-मेलोनी
भारत और इटली के संबंध काफी पुराने हैं. दोनों देशों की सभ्यता प्राचीन है. लेकिन दोनों देशों के बीच सन् 1947 में राजनीतिक रिश्ता बना. पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने सन् 1953 और 1955 में इटली का दौरा किया था. लेकिन दोनों देशों में अहम संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में मजबूत हुए.
अक्टूबर 2021 में G20 समिट में प्रधानमंत्री मोदी ने इटली का दौरा किया. तब ऊर्जा और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर वार्ता हुई. लेकिन सितंबर 2022 में जॉर्जिया मेलोनी की जीत के बाद भारत-इटली के संबंध को नई उड़ान मिली. मेलोनी ने 2-3 मार्च 2023 को जब भारत का दौरा किया तब ग्रीन इकोनोमी, ऊर्जा सुरक्षा, डेफेंस-सह-उत्पादन, ब्लू इकोनोमी, अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने पर द्विपक्षीय वार्ता हुई. आज भारत और इटली मधुर संबंधों का नया इतिहास लिख रहा है.

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