केशव के दर पर सहयोगी और बीजेपी नेताओं की दस्तक, क्या ओबीसी नेताओं की लामबंदी में जुटे हैं मौर्य?

उत्तर प्रदेश की सियासत में लगातार खींचतान जारी है. लोकसभा चुनाव के बाद से नेताओं की बयानबाजी तेज हो गई है. सियासी वर्चस्व की जंग में अब एक-दूसरे को शिकस्त देने के लिए शह-मात का खेल खेला जाने लगा है. चुनाव नतीजों के बाद से कैबिनेट की बैठकों से दूरी बनाकर रखने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य इन दिनों बीजेपी और सहयोगी दलों के नेताओं के साथ लगातार मुलाकात कर रहे हैं. केशव से मिलने वालों में बड़ी संख्या में ओबीसी और दलित नेता हैं. बीजेपी के सहयोगी और सरकार के मंत्री डिप्टी सीएम केशव मौर्य के दर पर दस्तक देकर क्या सियासी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं?
सीएम योगी ने सोमवार को आजमगढ़ की समीक्षा बैठक की थी. इसमें सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को भी बुलाया गया था. सीएम की बैठक में शामिल होने के बजाय राजभर लखनऊ में केशव मौर्य के घर पर मिलने पहुंच गए. दोनों ही नेताओं के बीच करीब आधे घंटे की मुलाकात हुई. इसके दूसरे दिन मंगलवार को निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद से मुलाकात की.
दस दिन में संजय निषाद दूसरी बार केशव से मिले
पिछले दस दिनों में संजय निषाद दूसरी बार केशव से मिलने पहुंचे थे. इतना ही नहीं बीजेपी के ओबीसी और दलित नेता भी केशव प्रसाद मौर्य से उनके घर पर जाकर मुलाकात कर चुके हैं. डिप्टी सीएम ने मुलाकात करने वाले सभी बीजेपी नेताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की हैं.
इन दिनों केशव प्रसाद मौर्य से मिलने वाले बीजेपी और सहयोगी दलों के नेताओं में ज्यादातर ओबीसी और दलित समदाय के हैं. इसके अलावा केशव ने जिस तरह से योगी सरकार से संविदा और ऑउटसोर्सिंग के तहत होने वाली नियुक्ति में आरक्षण के नियमों के पालन को लेकर सवाल उठाए हैं और उनकी सूचनाएं मांगी हैं, उसके पीछे सिर्फ जानकारी उठाना मकसद नहीं है बल्कि उसके सियासी मायने भी हैं.
पीडीए के नैरेटिव को तोड़ने की स्ट्रैटेजी
माना जा रहा है कि विपक्ष के पीडीए फॉर्मूला (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के नैरेटिव को तोड़ने की स्ट्रैटेजी है. इसके साथ ही केशव प्रसाद मौर्य का खुद को ओबीसी चेहरे के तौर पर स्थापित करने का प्लान तो नहीं है? 2024 के लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है. उसकी सीटें 62 से घटकर 33 पर पहुंच गई हैं. यूपी में बीजेपी 2014 में 71 और 2019 में 62 सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन 2024 में सिर्फ 33 सीटें ही मिलीं और 29 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.
बीजेपी की हार में सबसे बड़ी वजह ओबीसी और दलित वोटों का छिटकना रहा है. बीजेपी ने 2014 में जिन गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों को अपने साथ जोड़कर मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाई थी, उसमें कांग्रेस-सपा गठबंधन सेंधमारी करने में कामयाब रहा है.
अनुप्रिया पटेल भी ओबीसी के मुद्दे को उठाने में जुटीं
लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटों के छिटकने से सिर्फ बीजेपी को ही नहीं बल्कि उसके सहयोगी दलों को भी नुकसान उठाना पड़ा है. इसी का नतीजा था कि अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल लगातार ओबीसी के मुद्दे को उठाने में जुटी हैं. सीएम योगी को पत्र लिखकर उन्होंने ओबीसी आरक्षण में भेदभाव का आरोप लगाया था.
साथ ही कहा था कि दलितों को नौकरियों में योग्य नहीं कहकर रोका जा रहा है, इससे आक्रोश बढ़ रहा है. इस पर रोक लगनी चाहिए. अनुप्रिया पटेल के बाद संजय निषाद ने भी ओबीसी के मुद्दे पर योगी सरकार को घेरा था और बुलडोजर नीति पर सवाल खड़े किए थे. इतना ही नहीं कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम लिखवाने के योगी सरकार के फैसले का आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने विरोध किया था.
सुर में सुर मिला रहे हैं राजभर और संजय निषाद
केशव प्रसाद मौर्य से ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद सिर्फ मुलाकात ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उनके सुर में सुर भी मिला रहे हैं. संगठन को सरकार से बड़े वाले बयान को लेकर सभी सहयोगी दलों का साथ मिला है. केशव जिस तरह से ओबीसी नेताओं से मिल रहे हैं, उसके पीछे माना जा रहा है कि ओबीसी चेहरे को तौर पर खुद को स्थापित करने की स्ट्रैटेजी है.
राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ने अब खुलकर मोर्चा खोल दिया है और हर वो कदम उठा रहे हैं, जिसके जरिए खुद को बीजेपी में मजबूत कर सकें. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी में इस समय सबसे बड़े ओबीसी नेता हैं. 2024 में जिस तरह से ओबीसी और दलित वोट छिटका है, उसे लेकर बीजेपी बैकफुट पर है.
सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करने की कोशिश
बीजेपी की कोशिश दोबारा से अपनी सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करना है. इसके चलते बहोरन लाल मौर्य को एमएलसी बनाने का फैसला किया गया है, जो केशव मौर्य के करीबी हैं. यूपी में जो परसेप्शन बना हुआ है कि योगी सरकार में सिर्फ सवर्ण जातियों का ही दबदबा है, उसे तोड़ने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है. केशव मौर्य ने इसके लिए मोर्चा संभाल लिया है और बीजेपी नेताओं से लेकर सहयोगी नेताओं के साथ मुलाकात करके सियासी संदेश देने में जुटे हैं ताकि ओबीसी के बीच एक मजबूत छवि बन सके.

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