कोडनेम, नकाबपोश चेहरे और फर्जी पासपोर्ट… फिर कैसे IC-814 के हाईजैकर्स तक पहुंची थीं भारतीय जांच एजेंसियां?

फ्लाइट IC-814 पर वेब सीरीज बनाकर अनुभव सिन्हा ने हाइजैक केस के पीड़ितों की करीब 25 साल पुरानी यादों को ताजा कर दिया है. इस मामले में उस समय की सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल जरूर खड़े होते हैं, क्योंकि उन्होंने लगातार नेपाल से अलर्ट मिलने के बावजूद इस तरफ ध्यान नहीं दिया था. मगर, हाईजैक के बाद जिस तरीके से जांच एजेंसियों ने काम किया, उससे इसके पीछे के चेहरे जल्द ही सामने आने लगे. एक सप्ताह तक विमान को हाईजैक करके कंधार में रखा गया. हाईजैकर्स वहां रखे गए कोडनेम से एक-दूसरे को बुलाते थे. 31 दिसंबर को समझौता होने के बाद भी मास्क पहनकर विमान से उरते, जिससे उनके बारे में पता लगा पाना आसान नहीं था.

विमान हाईजैक के बाद जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वह कहां से शुरुआत करें. ताकि मामले की तह तक पहुंचा जा सकें. आखिरकार इतने बड़े कांड को अंजाम देने वाले वह पांच लोग कौन थे? वैसे तो विमान का अपहरण नेपाल से हुआ था और सभी आतंकी वहां पर इकट्ठा भी हुए थे, लेकिन इसकी प्लानिंग एक से डेढ़ साल पहले शुरू हो गई थी. यह लोग भारत भी आ चुके थे. यहां पर उनके नाम के पहचान पत्र और पासपोर्ट दोनों ही बन चुके थे, जिनकी मदद से वह भारत से नेपाल पहुंचे.
पाक ने की आतंकियों की मदद
हाईजैक के बाद ही भारत के नेताओं ने पाकिस्तान को दोषी ठहराना शुरू कर दिया, जबकि अभी तक इस्लामाबाद की मिलीभगत का कोई ठोस सबूत भी नहीं था. हालांकि नेपाल पुलिस ने जांच में भारत का पूरा सहयोग किया. इसके बाद पता चला कि पाकिस्तान दूतावास की एक कार (42 सीडी 14) आईसी 814 के उड़ान भरने से कुछ मिनट पहले एयरपोर्ट पर पहुंची थी. पूछताछ में शामिल कुछ कर्मियों ने दावा किया कि पाकिस्तान दूतावास के सचिव मोहम्मद अरशद चीमा और एक अन्य कर्मचारी जिया अंसारी ने इंडियन एयरलाइंस के विमान में सवार कुछ लोगों को एक बैग दिया, लेकिन इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी.
रॉयल नेपाल एयरलाइंस के मुख्यालय में लगा कंप्यूटर प्रमुख ट्रैवल एजेंसियों से जुड़ा था और सभी डेटा को अपनी सेंट्रल यूनिट में इकट्ठा करता था. जांच के बाद पता चला कि तीन यात्रियों ने नेपाल नरेश बीरेंद्र के महल के पास स्थित एवरेस्ट ट्रैवल्स एंड टूर्स से 13 दिसंबर को एक साथ टिकटें खरीदी थीं. टिकटें पहले 27 दिसंबर के लिए बुक की गई थीं, लेकिन 13 दिसंबर की शाम तक तीनों टिकटें 24 दिसंबर के लिए आगे बढ़ा दी गईं. 13 दिसंबर को गोरखा ट्रैवल एजेंसी से दो बिजनेस क्लास टिकट भी ले आए और शाम तक ये दोनों टिकट भी 24 दिसंबर के लिए एडवांस हो गए. हालांकि इससे यह साबित नहीं होता था कि यह पांचों आतंकी वही हैं.
एक कॉल ने खोला राज
इनमें से एक को छोड़कर, पांचों में से किसी ने भी कोई सामान बुक नहीं करवाया था. एक व्यक्ति द्वारा बुक किए गए सामान का वजन सिर्फ 15 किलोग्राम था. जिस दिन 24 दिसंबर को विमान का अपहरण हुआ, उस समय मुंबई पुलिस हरकत-उल मुजाहिदीन के समर्थक अब्दुल लतीफ आदम मोमिन की गतिविधियों पर नजर रखने के दौरान एक कॉल रिकॉर्ड की गई. यह बातचीत लतीफ और रिहा किए गए उग्रवादी मौलाना अजहर मसूद के छोटे भाई अब्दुल रऊफ के बीच थी.
29 दिसंबर को मुंबई पुलिस की एक विशेष टीम ने मोहम्मद अली मार्केट से लतीफ का पीछा करना शुरू किया. उसके घर के बाहर रातभर निगरानी रखने के बाद टीम ने अगले दिन उसका पीछा करना जारी रखा और जोगेश्वरी से कुछ किलोमीटर दूर (जहां लतीफ़ रह रहा था) उसे एक ऑटोरिक्शा से गिरफ़्तार किया गया. पूछताछ करने पर उसने अपहरण के पीछे की महीनों की योजना, अपहरणकर्ताओं के बारे में विस्तृत जानकारी और रणनीति का खुलासा किया.
सभी आवेदन हिंदू नामों से थे
लतीफ की गिरफ्तारी के बाद कई दौर की छापेमारी में मुंबई पुलिस ने पांच पासपोर्ट आवेदन बरामद किए. जो सभी विमान में सवार पांच संदिग्ध अपहरणकर्ताओं के नाम पर थे. सभी आवेदन हिंदू नामों से थे. सभी फर्जी थे, जिनके साथ फर्जी निवास प्रमाण पत्र भी थे. पासपोर्ट आवेदनों में इस्तेमाल किए गए नाम वही थे, जो फ्लाइट टिकट खरीदने के लिए इस्तेमाल किए गए थे. इसके साथ ही ट्रैवल एजेंसियों के परिसरों में जांच के बाद भी यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये लोग ही अपहरणकर्ता हैं. अपहरणकर्ताओं ने काठमांडू की टिकटें पाने के लिए गलत भारतीय नाम और महाराष्ट्र में बने फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस का इस्तेमाल किया था.
Ibrahim Athar: Netflix सीरीज में जिस आतंकी को कोडनेम चीफ दिया गया था, उसका असल नाम इब्राहिम अतहर उर्फ ​​अहमद अली था. वह पाकिस्तान के बहावलपुर का रहने वाला और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का छोटा भाई है. वही IC-814 फ्लाइट के हाईजैक का मुख्य आरोपी है. जिस समय उसने विमान हाईजैक किया था उसकी उम्र करीब 33 साल थी. वह इससे पहले परिवार के साथ पोल्ट्री फॉर्म में काम करता था. इब्राहिम अतहर के बेटे (इब्राहिम अतहर) ने 2019 में पुलवामा हमले को अंजाम दिया था, जिसका बदला लेते हुए भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक महीने के बाद मुठभेड़ में उसे ढेर कर दिया था.
Mistri Zahoor Ibrahim: मिस्त्री जहूर इब्राहिम पांच अपहरणकर्ताओं में से एक था और दूसरे आतंकी उसे ‘भोला’ कहकर संबोधित करते थे. वह पाकिस्तान के कराची की अख्तर कॉलोनी का रहना वाला था. हालांकि मार्च 2022 में मिस्त्री जहूर इब्राहिम की कराची में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी. वह यहां पर जाहिद अखुंद के नाम से रहता था. अब्दुल लतीफ ने पूछताछ के दौरान बताया कि मिस्त्री जहूर इब्राहिम हमेशा कुछ भी बोलने से पहले ‘मैंने बोला ना’ शब्द का इस्तेमाल करते थे और इसलिए उसे ‘भोला’ कहा जाता था.
Shahid Akhtar Sayed: कराची के गुलशन इकबाल का निवासी सईद के बारे में बहुत कम जानकारी है, सिवाय इसके कि विमान में उसके साथी उसे ‘डॉक्टर’ कहकर संबोधित करते थे. बताया जाता है कि शाहिद सईद अख्तर आतंकियों को सर्दी, बुखार आदि होने पर दवाई लिखते थे और इसलिए उन्हें ‘डॉक्टर’ कहते थे.
Sunny Ahmed Qazi: पाकिस्तान के कराची के डिफेंस एरिया का रहने वाले इस आतंकी को विमान में साथी बर्गर के नाम से बुलाते थे, जबकि इसका पूरा नाम सनी अहमद काजी था. वह एक खास समुदाय से था और इसलिए उसे बर्गर कहा जाता था.
Shakir: वेब सीरीज में जिस एक नाम पर विवाद हुआ, वह शंकर है. सबसे हैरान करने वाली बात भी यह है कि शाकिर का राजेश गोपाल वर्मा के नाम से मुंबई के एक मोटर ड्राइविंग स्कूल से लाइसेंस बनवाया था. वह पाकिस्तान के सुक्कुर शहर का रहने वाला था.
अपहरण के बाद यह लोग दक्षिणी अफगानिस्तान में गायब हो गए. हालांकि बाद में पता चला कि यह पाकिस्तान पहुंच गए हैं. आज की बात करें तो इनमें से दो आतंकी PoK में रहते हैं और दो कतर में, जबकि मिस्त्री मारा गया है. भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार, 31 दिसंबर 1999 की शाम को कंधार से निकले अपहरणकर्ता 1 जनवरी की दोपहर हरकत-उल-अंसार के एक शिविर में पहुंचे, जहां विमान हाईजैक की साजिश रची गई थी. पांच अपहरणकर्ता पहले अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर चमन के रास्ते क्वेटा पहुंचे, वह 31 दिसंबर की देर रात बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा पहुंचे.

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