क्या खनिज संपदा वाली जमीन पर राज्य लगा सकते हैं टैक्स? सुप्रीम कोर्ट 25 जुलाई को सुनाएगा फैसला
क्या राज्य सरकारें खनिज संपदा वाली जमीन पर लगा सकती हैं टैक्स? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ 25 जुलाई को फैसला सुनाएगी. इस पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे. अदालत न इस मामले 14 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था. ये मामला पिछले करीब 25 साल से कोर्ट में लंबित है. इस फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व के खनिज समृद्ध राज्यों के कर राजस्व पर गंभीर असर पड़ सकता है.
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई की है. राज्यों के टैक्स लगाने को लेकर 85 याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी. ये मामला साल 2011 में इस बेंच के पास भेजा गया था. क्योंकि इस मामले में पांच और सात जजों की पीठ के फैसलों के बीच विरोधाभास था.
रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने का विरोध
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर राज्य की सरकारों के द्वारा खनिज पर रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने का विरोध किया. केंद्र ने अदालत से कहा कि राज्यों द्वारा रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने की अनुमति ना देने को कहा है. केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि खनिज समृद्ध राज्यों द्वारा लगाए गए टैक्स से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. खनन क्षेत्र में FDI में बाधा आएगी. भारतीय खनिज महंगा हो जाएगा. व्यापार घाटे में वृद्धि और राज्यों के बीच विषम आर्थिक विकास के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा.
केंद्र सबके लिए समान रूप से काम करता है
केंद्र के पास खनिज संसाधन संचालित विकास के स्थानीयकृत हिस्से बनाने के बजाय, देश भर में सामंजस्यपूर्ण खनिज विकास सुनिश्चित करके राष्ट्रीय सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाने के कर्तव्य के साथ-साथ शक्ति भी है. एक गैर-सामंजस्यपूर्ण राजकोषीय व्यवस्था, कम खनिज संपन्न राज्यों को खनिज समृद्ध राज्यों से उच्च कीमतों पर कच्चे माल की खरीद करने के लिए मजबूर करेगी. केंद्र द्वारा निर्धारित रॉयल्टी की एक समान लेवी खेल के मैदान को समतल करती है, जिससे देश भर में घरेलू उद्योग को न्यायसंगत तरीके से बढ़ावा मिलता है.साथ ही राज्यों के लिए राजस्व सृजन भी सुनिश्चित होता है.