क्या धीमी हो सकती है इकोनॉमी की स्पीड? ये आंकड़ें खराब कर सकते हैं मूड

बीते कुछ समय से भारत की चौथी तिमाही की जीडीपी को लेकर अलग-अलग अनुमान सामने आ रहे हैं. चौथी तिमाही की जीडीपी को लेकर जो हालिया अनुमान लगाए गए हैं वो 7 फीसदी से नीचे के हैं. इसका मतलब है कि देश की जीडीपी की रफ्तार स्लो हो सकती है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि पहली, दूसरी ओर तीसरी तिमाही में जो स्पीड जीडीपी ग्रोथ की देखने को मिली थी, वो 8 फीसदी से ज्यादा थी. जिसमें चौथी तिमाही में डेंट पड़ता दिखाई दे रहा है. रॉयटर्स की लेटेस्ट रिपोर्ट में भी कुछ ऐसा ही कहा गया है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीडीपी ग्रोथ एक साल में सबसे कम रह सकती है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर रॉयटर्स की रिपोर्ट में किस तरह का अनुमान लगाया गया है.
एक साल में सबसे कम ग्रोथ का अनुमान
रॉयटर्स के लेटेस्ट सर्वे में जिस तरह का अनुमान लगाया गया है वो भारत के लिहाज से काफी परेशान करने वाला है. रॉयटर्स के सर्वे में कहा गया है कि कमजोर मांग के कारण जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की इकोनॉमी एक साल में सबसे धीमी गति से बढ़ने की संभावना है. देश की जीडीपी एक साल पहले की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर में अप्रत्याशित रूप से 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी थी.
जिसका श्रेय सब्सिडी में गिरावट दिया जाता है, जिससे नेट इन डायरेक्ट टैक्स में तेजी इजाफा देखने को मिला था. लेकिन ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) द्वारा मापी गई इकोनॉमिक एक्टीविटी में 6.5 फीसदी से अधिक मामूली वृद्धि देखी गई. रॉयटर्स की ओर से इकोनॉमिस्टों के बीच किए गए सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई है कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में वैसे आंकड़ें देखने को नहीं मिलेंगे जिस तरह के आंकड़ें दूसरी और ​तीसरी तिमाही में देखने को मिले थे.
मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों सेक्टर में नरमी
54 अर्थशास्त्रियों के रॉयटर्स सर्वेक्षण के अनुसार, एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी की चौथी तिमाही में इकोनॉमिक ग्रोथ 6.7 फीसदी तक रह​ने की संभावना है. ग्रॉस वैल्यू एडेड ग्रोथ में भी गिरावट देखने को मिल सकती है जो 6.2 फीसदी पर आ सकती है. सर्वे में अधिकतर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों सेक्टर में नरमी के कारण ग्रोथ की स्पीड कम होने की संभावना है.
उन्होंने एग्रीकल्चर के भी ना के बराबर योगदान का भी हवाला दिया है. जीडीपी ग्रोथ का पहले का अनुमान 5.6 फीसदी से 8.0 फीसदी की रेंज में था. जीडीपी ग्रोथ का आधिकारिक आंकड़ा 4 जून को आम चुनाव परिणाम घोषित होने से कुछ दिन पहले 31 मई को दोपहर 12 बजे आने की संभावना है.
कमजो​र डिमांड है इस अनुमान की वजह
रॉयटर्स सर्वे में एक ज्यादा सवालों का जवाब देने वाले दो-तिहाई से ज्यादा अर्थशास्त्रियों ने कहा कि जीडीपी ग्रोथ रेट उनके पूर्वानुमान से कहीं अधिक होने की संभावना कम है. जेनरल सोसाइटी के इकोनॉमिस्ट कुनाल कुंडू ने कहा, कोर महंगाई में गिरावट जारी है और महामारी की शुरुआत के बाद से सबसे कम वृद्धि दर्ज करना कमजोर घरेलू मांग का लक्षण है. प्राइवेट कंजंप्शन में कमजोर ग्रोथ भी आगामी तिमाहियों में दिखाई देने की संभावना थी.
इकोनॉमिक ग्रोथ, जो पिछले वित्तीय वर्ष में औसतन 7.7 फीसदी थी, इस वित्तीय वर्ष में धीमी होकर 6.8 फीसदी और अगले में 6.6 फीसदी होने का अनुमान लगाया गया था, जिससे पता चलता है कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के लिए लगातार 8 फीसदी की ग्रोथ अभी भी मुमकिन नहीं हो पा रही है. जबकि अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वर्कफोर्स में शामिल होने वाले लाखों युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरी वृद्धि उत्पन्न करने के लिए 8 फीसदी या उससे अधिक की ग्रोथ की जरुरत है.
5-6 फीसदी “रीजनेबल” ग्रोथ रेट
पैंथियन मैक्रोइकॉनॉमिक्स के एशिया अर्थशास्त्री मिगुएल चान्को ने कहा कि 5-6 फीसदी भारत की इकोनॉमी के लिए “रीजनेबल” ग्रोथ रेट है. अर्थशास्त्रियों के जीडीपी अनुमानों और सरकारी अनुमानों के बीच बढ़ते अंतर ने यह भी सवाल उठाया है कि भारत विकास को कैसे मापता है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने कहा कि उसे जनवरी-मार्च तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.9 फीसदी रहने की उम्मीद है.
एएनजेड के अर्थशास्त्री धीरज निम ने कहा कि मुझे लगता है कि इनफॉर्मल सेक्टर के जीडीपी का थोड़ा अधिक अनुमान लगाया गया है… यही वजह है कि जमीन पर चीजें शायद उतनी उत्साहपूर्ण नहीं दिख रही हैं जितना कि हेडलाइन आंकड़े बता रहे हैं. इनफॉर्मल सेक्टर देश की जीडीपी में लगभग आधा योगदान देता है और भारत के लगभग 90 फीसदी वर्कफोर्स को रोजगार देता है.

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