क्या प्रेगनेंसी के दौरान हुई ब्लीडिंग है खतरनाक? एक्सपर्ट्स से जानें

प्रेगनेंसी हर महिला के जीवन में काफी उतार-चढ़ाव लेकर आता है और अगर बात पहली प्रेगनेंसी की हो तो महिला काफी बातों से अनजान होती है. ऐसे में समय-समय पर सतर्क रहना बेहद जरूरी होता है ताकि कोई अनहोनी न हो. इसलिए इस दौरान होने वाली हर छोटी-बड़ी बात को बारीकी से समझना बेहद जरूरी हो जाता है. इसी कड़ी में बेहद जरूरी प्रेगनेंसी के दौरान होने वालीब्लीडिंग के बारे में जानना भी है. क्या प्रेगनेंसी के दौरान किसी भी प्रकार की ब्लीडिंग होना सामान्य है.
पहली तिमाही यानी की फर्स्ट ट्राइमेस्टर की बात की जाए तो इस दौरान हल्की ब्लीडिंग होना सामान्य होता है. पहली तिमाही में 12 हफ्तों के दौरान 25 फीसदी महिलाएं थोड़ी बहुत ब्लीडिंग की शिकायत करती है, जो कि बेहद सामान्य है जिसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. इस दौरान शरीर में कई बदलाव हो रहे होते हैं तो इस दौरान हल्की ब्लीडिंग हो सकती है, लेकिन अगर ब्लीडिंग ज्यादा है तो ये बिल्कुल भी सामान्य नहीं है क्योंकि ज्यादातर मामलों में ये गर्भपात की निशानी होती है जिसे तुरंत डॉक्टर को रिपोर्ट करना चाहिए. डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की मदद से भ्रूण की धड़कन का पता लगाती है जिससे पता लगता है कि गर्भपात हो गया है या नहीं.
पहली तिमाही में ब्लीडिंग की वजह
प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में कुछ सामान्य ब्लीडिंग हो सकती है क्योंकि इस दौरान फर्टिलाइज्ड अंडा गर्भाशय की परत में खुद को इंप्लांट करता है. कुछ महिलाएं इसको नॉर्मल पीरियड्स की तरह समझती हैं क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं होता कि वो प्रेग्नेंट है. लेकिन ये ब्लीडिंग नॉर्मल पीरियड्स से हल्की होती है और कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक हो सकती है.
एक्टोपिक प्रेगनेंसी है खतरनाक
पहली ही तिमाही के दौरान कई बार फर्टिलाइज्ड अंडा गर्भाशय की दीवार से न चिपक कर गर्भाशय के बाहर ही फैलोपियन ट्यूब से जुड़ जाता है. ये बेहद ही खतरनाक स्थिति है. अगर इसे समय रहते रिपोर्ट न किया जाए तो मां की जान को खतरा हो सकता है. लेकिन ऐसा काफी कम मामलों में ही देखा जाता है. यहां अगर भ्रूण विकसित होना शुरू हो जाए तो फैलोपियन ट्यूब के फटने का खतरा रहता है. जिससे मां की जान तक जा सकती है.
मोलर प्रेगनेंसी
मोलर प्रेगनेंसी को जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक बीमारी भी कहा जाता है, यह एक बेहद ही दुर्लभ स्थिति है, इसमें बच्चे के बजाय गर्भाशय के अंदर असामान्य ऊतक विकसित होने शुरू हो जाते हैं. ये ऊतक कैंसरयुक्त भी हो सकते हैं और शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकते हैं जिसकी वजह से उल्टी जैसा महसूस होता है.
इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर की स्थिति में भी प्रेगनेंसी के दौरान ब्लीडिंग हो सकती है. कई बार किसी संक्रमण के कारण भी ऐसा हो सकता है इसलिए इसके बारे में डॉक्टर से सलाह लेना बेहद जरूरी है.
दूसरी और तीसरी तिमाही में ब्लीडिंग
प्रेगनेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही में ब्लीडिंग होना गंभीर हो सकता है ये आपके और आपके बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए इसके कारण जाना आपके लिए जरूरी है.
प्लेसेंटा प्रीविया
ये वो स्थिति होती है जब प्लेसेंटा गर्भाशय के नीचे बैठ जाता है और आंशिक या पूर्ण रूप से बर्थ कैनाल को ढक देता है, ये बेहद ही रिस्क वाली स्थिति है, ऐसा लगभग 200 मामलों में से 1 में देखा जाता है. इसमें ब्लीडिंग हो सकती है और ये एक आपातकालीन स्थिति है जिसमें महिला के सी-सेक्शन किए जाने की जरूरत हो सकती है.
ब्लीडिंग को न करें नजरअंदाज
तीसरी तिमाही में बच्चा होने से पहले ही महिला को हल्की ब्लीडिंग शुरू हो जाती है जो इस बात का संकेत होती है कि बच्चे की डिलीवरी का समय नजदीक है ये ब्लीडिंग बेहद सामान्य और रेड और ब्राउन रंग की हो सकती है.
इसलिए प्रेगनेंसी में होने वाली किसी भी ब्लीडिंग को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, अगर ब्लीडिंग बेहद असामान्य लगे तो तुरंत डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए.

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