क्या लीक हो रही थी उत्तर कोरिया की जानकारी? किम जोंग को नहीं रहा जिनपिंग पर भरोसा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर गए हुए हैं और इसको लेकर दुनिया की नजर भारत पर लगी हुई है, लेकिन इसी बीच एक ऐसी खबर भी सामने आई है जोकि दुनिया को हैरान करने वाली है. लंबे समय तक चीन के साथ रहने वाले किम जोंग उन के जिनपिंग को झटका देते हुए रूस पर भरोसा जताया है, जिस वजह से आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच कुछ कड़वाहट भी देखने को मिल सकती है.
मिली खबर के अनुसार, प्योंगयांग द्वारा अपने सरकारी टेलीविजन पर प्रसारण के लिए चीनी सैटेलाइट के स्थान पर रूसी सैटेलाइट का उपयोग करना उत्तर कोरिया पर बीजिंग के कम होते प्रभाव को दिखाता है. कोरियन सेंट्रल टेलीविजन जैसे उत्तर कोरिया के सरकारी प्रसारकों ने 20 जून से रूसी सैटेलाइट एक्सप्रेस 103 के माध्यम से अपना विदेशी प्रसारण शुरू कर दिया था तथा 1 जुलाई तक चाइना सैट 12 सैटेलाइट को छोड़ दिया था.
दक्षिण कोरिया के मंत्रालय के एक अधिकारी ने घोषणा की कि उत्तर कोरिया ने अपने सरकारी टीवी प्रसारण को चीनी सैटेलाइट से बदलकर रूसी सैटेलाइट पर कर दिया है, जिससे प्योंगयांग के प्रसारण की निगरानी दक्षिण कोरिया की सरकारी एजेंसियों और मीडिया के लिए जटिल हो गया है. चीन के सैटेलाइट को छोड़ने का मतलब है कि उत्तर कोरिया और रूस के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ रहा है. इसके साथ ही यह भी सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या उत्तर कोरिया को डर लग रहा था कि उसकी जानकारी चीन के पास जा रही है, जोकि आने वाले समय में खतरनाक है या फिर उसको इसके लीक होने का डर सता रहा था.
क्या चीन को खटक रही है रूस और उत्तर कोरिया की करीबी?
मॉस्को और प्योंगयांग दोनों ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण दुनिया में अलग-थलग हैं. उत्तर कोरिया यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस को गोला-बारूद और रूस उत्तर कोरिया के सैटेलाइट विकास कार्यक्रम के लिए सहायता और तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है. हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जून में प्योंगयांग का दौरा किया, जहां उन्होंने किम जोंग-उन से मुलाकात की और एक “व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर संधि” पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया है कि यदि किसी पर हमला होता है तो दूसरा देश उसकी सहायता करेगा.
रूस और उत्तर कोरिया के बीच नई संधि चीन को काफी परेशान करने वाली है, क्योंकि अब तक उत्तर कोरिया का एकमात्र सहयोगी चीन था. हालांकि, इस संधि के बाद रूस अब हस्तक्षेप कर सकता है. इसलिए उत्तर कोरिया पर चीन का एकाधिकार प्रभाव कम हो गया है. वैसे व्यापार को लेकर उत्तर कोरिया की चीन पर निर्भरता लगभग 95 प्रतिशत है, लेकिन रूस के साथ व्यापार और संबंधों के विस्तार से उत्तर कोरिया को चीन से अधिक सापेक्ष स्वायत्तता मिलेगी.
उत्तर कोरिया द्वारा सैटेलाइट चैनलों को पूरी तरह से चीनी से हटाकर रूसी पर स्विच करना यह प्रतीकात्मक रूप से उस पर चीन के प्रभाव को कम होना दिखाता है. हालांकि मॉस्को-प्योंगयांग सैन्य संबंधों पर बीजिंग ज्यादातर चुप रहा है. किम के साथ शी की आखिरी मुलाकात जून 2019 में हुई थी जब वह उत्तर कोरिया के दौरे पर गए थे. उत्तर कोरिया पर चीन कुछ हद तक प्रभाव बनाए रखने की कोशिश करेगा, लेकिन मॉस्को और प्योंगयांग के बीच घनिष्ठ संबंधों की वजह से वह उस पर दबाव नहीं डाल सकता. बीजिंग शायद सोचता है कि मॉस्को और प्योंगयांग के बीच संबंध अल्पकालिक हितों पर आधारित हैं, जो यूक्रेन युद्ध खत्म होने के बाद कमजोर हो जाएंगे.
चीन को क्यों है रूस की जरूरत?
चीन अभी तक दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों को लेकर असहज है, लेकिन वाशिंगटन की इंडो-पैसिफिक रणनीति को नियंत्रित करने के लिए उसे रूस की जरूरत होगी और यूक्रेन युद्ध समाप्त होने के बाद बीजिंग प्योंगयांग पर अपना प्रभाव दोबारा से बनाने की उम्मीद करेगा. चूंकि उत्तर कोरिया लंबे समय से युद्ध की तैयारी कर रहा है, इसलिए उसके पास गोला-बारूद का भंडार और उत्पादन प्रणाली मौजूद है. इसलिए रूस ने उत्तर कोरिया के साथ एक वास्तविक अर्धसैनिक गठबंधन पर हस्ताक्षर किए, क्योंकि उसको इनकी काफी जरूरत थी.
इसके साथ ही चीन किसी भी तरह से रूस का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में समर्थन नहीं करता और वह हथियार देने की बात को भी नकारता है. चीन का मानना है कि ऐसा करने से आने वाले दिनों में शीत युद्ध की स्थिति हो सकती है और दुनिया विश्व युद्ध की कगार पर पहुंच जाएगी, जबकि किम जोंग उन यह साफ-साफ कह चुके हैं कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया के साथ आने से शीत युद्ध की स्थिति बनेगी और यह आने वाले समय के लिए बेहतर है. ऐसे में दोनों देशों के नेताओं के अलग-अलग बयान चीन और उत्तर कोरिया के बीच दूरियां बढ़ाने लगे हैं.