क्या है इजराइल की 18 साल पुरानी वो गलती जिससे इतना बड़ा हो गया हिजबुल्लाह?
हिजबुल्लाह के साथ लगातार नौ माह के संघर्ष के बाद अब इजराइल ने लेबनान में युद्ध की तैयारी कर ली है. नेतन्याहू ने चेतावनी दी है कि अब कूटनीति का समय समाप्त होता जा रहा है. हिजबुल्लाह एक मिलिशिया है जो मिडिल ईस्ट का सबसे ताकतवर संगठन बन चुका है. यही वजह है कि वह इजराइल को सीधे तौर पर चुनौती दे रहा है. कहीं न कहीं इसका बड़ा कारण इजराइल की उस गलती को भी माना जा रहा है जो उसने 18 साल पहले की थी.
ईरान के समर्थन से हिजबुल्लाह लगातार इजराइल को चुनौती दे रहा है. बेशक दोनों तरफ से अभी तक सीधी जंग का ऐलान नहीं हुआ, लेकिन रुक-रुक किए जा रहे हमले सीमा के दोनों तरफ तबाही का नया अध्याय लिख रहे हैं. इजराइल सीधे तौर पर लेबनान से जंग में नहीं पड़ना चाहता था, लेकिन हिजबुल्लाह के कारण वह ऐसा करने को मजबूर है, जबकि हिजबुल्लाह 18 पुरानी खुन्नस निकालने के लिए आईडीएफ से भिड़ने को तैयार है, ताकि वह दुनिया को दिखा सके कि वह कितना ताकतवर है.
18 साल पहले क्या हुआ था?
2006 में 12 जुलाई की सुबह अचानक हिजबुल्लाह ने इजराइल पर रॉकेट बरसाने शुरू कर दिए थे. इससे हालात बेकाबू हो गए. IDF का ध्यान भटका तब तक हिजबुल्लाह उग्रवादी इजराइल की सीमा में घुस आए. इस हमले में इजराइल के आठ सैनिक मारे गए थे और दो का अपहरण कर लिया गया था. ऐसा हिजबुल्लाह ने इसलिए किया था क्योंकि वह कैदियों की अदला बदली के लिए बातचीत करना चाहता था. हिजबुल्लाह को ये उम्मीद नहीं थी कि इजराइल पलटवार करेगा.
इजराइल ने बड़े पैमाने पर लेबनान में हमला बोला और हिजबुल्लाह को जड़ से उखाड़ने की कसम खाई. हवाई हमला के साथ-साथ रॉकेट लांचरों से निशाना साधा गया. बेरुत में जमकर बमबारी की गई. ताबड़तोड़ अंदाज में अटैक कर इजराइल पूरी तरह से हिजबुल्लाह पर हावी हो गया. ब्रिटिनिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक 12 जुलाई की रात में ही इजराइल ने महज 40 मिनट में इतने हमले किए थे कि हिजबुल्लाह के सभी नेता भूमिगत हो गए थे.
बड़ी चुनौती बन गया था हिजबुल्लाह
इजराइल के हमले से हिजबुल्लाह के नेता छिपने को मजबूर हो गए थे, लेकिन उसके लड़ाके मुकाबला करते रहे. इजराइल के लड़ाकों ने 22 जुलाई को जमीनी अभियान शुरू किया, लेकिन पूरी तरह से वह हिजबुल्लाह को काबू नहीं कर पाया. इसे लेकर इजराइल सरकार की आलोचना भी हुई थी. तकरीबन 34 दिन तक युद्ध चलने के बाद 14 अगस्त 2006 को लेबनान ने संयुक्त राष्ट्र संकल्प 1701 की शर्तों को स्वीकार कर लिया था और युद्ध समाप्ति का ऐलान कर दिया गया था.
इजराइल से क्या हुई थी गलती
34 दिन बाद हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन संधि लेबनान से हुई थी. इसकी सबसे पहली शर्त हिजबुल्लाह को निरस्त करने की थी. लेबनान इस पर तैयार था. इजराइल से गलती ये हुई कि उसके जो दो सैनिक अगवा हुए थे, उन्हें भी संधि में वापस नहीं मांगा गया. हिजबुल्लाह ने इसे अपनी जीत के तौर पर दिखाया. अपने आप को इस तरह से प्रस्तुत किया, जिससे लोगों की नजर में वह इजराइल से टक्कर लेने वाला पहला मिलिशिया संगठन बन गया. इससे वह नायक बनकर उभरा और कभी खत्म नहीं हुआ.
अगवा सैनिक तो वापस मांगे, हिजबुल्लाह खत्म की मांग अटकी
हिजबुल्लाह और लेबनान के साथ इस लड़ाई में इजराइल के 40 नागरिक और तकरीबन 120 सैनिक मारे गए थे. हिजबुल्लाह के भी तकरीबन 1100 लड़ाके और लेबनानी नागरिकों की मौत हुई थी. 34 दिन में ही लेबनान ने जो झेला उससे उबरने में उसे काफी वक्त लग गया. बाद में इजराइल ने अगवा सैनिकों की वापस दिए जाने की मांग की. संयुक्त राष्ट्र मीडिएटर बना और दो साल बाद पांच लेबनानी कैदियों के बदले इजराइल को उन अगवा जवानों के शव लौटाए गए. उस समय अगर इजराइल अगर हिजबुल्लाह को खत्म करने की मांग पर अड़ जाता तो आज ये हालात न होते.
अब ताकतवर हुआ हिजबुल्लाह
2006 के लिहाज से देखें तो अब हिजबुल्लाह बहुत ताकतवर हो चुका है. उसे ईरान का भी फुल सपोर्ट है. वहां से उसे लगातार रॉकेट और ड्रोन की खेप मिल रही है. इनमें रॉकेट, टैंक रोधी मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलें भी शामिल हैं. दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि हिजबुल्लाह के पास 130,000 से 150,000 रॉकेट और मिसाइलें हैं. माना जाता है कि ये संख्या हमास द्वारा जारी किए गए रॉकेट और मिसाइलों से ज्यादा हैं.
इजराइल-हिजबुल्लाह के संघर्ष में सीमा पर तबाही
इजराइल-हिजबुल्लाह के संघर्ष में सीमा पर तबाही नजर आ रही है. वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार लेबनान में इस साल हुए इजराइली हमलों से कम से कम 94 नागरिक और 300 से अधिक हिजबुल्लाह लड़ाके मारे गए हैं. ज़रायली अधिकारियों का कहना है कि हिज़्बुल्लाह के हमलों में 20 सैनिक और 12 नागरिकों की मौत हुई है. इसके अलावा दोनों तरफ इमारतों व अन्य संसाधनों को भी खासा नुकसान पहुंचा है.