क्या होता है साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड, कैसे ये मेंटल स्ट्रेस कर सकता है दूर
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर रहे हैं. WHO ने साल 2022 में यह डाटा जारी किया था. लेकिन कभी आपने ये सोचा है कि आत्महत्या के मामले इतना क्यों बढ़ रहे हैं.दरअसल, आज ज्यादातर लोग किसी न किसी मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं और ये बात वो किसी को न बताने के चलते हमेशा चिड़चिड़े और गुस्से में रहते हैं. ये परेशानी धीरे-धीरे डिप्रेशन का रूप ले लेती है और डिप्रेशन आत्महत्या का कारण बन सकता है, लेकिन क्या आप जानते हैं की सामान्य फर्स्ट एड की तरह ही एक दिमागी फर्स्ट एड भी होता है. अगर यह समय पर मिल जाए तो व्यक्ति की मेंटल हेल्थ खराब नहीं होती है.
जैसे छोटा-मोटा कटने, चोट लगने और बीमार होने पर व्यक्ति को फर्स्ट एड की जरूरत होती है और उसकी छोटी-मोटी चोट पर मरहम पट्टी हो जाती है, ऐसे ही आज लोगों को अपनी हर छोटी-मोटी परेशानी को शेयर करने के लिए साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड की जरूरत है. जहां उन्हें अपनी हर छोटी-मोटी बात का पहला और आसान समाधान मिल जाए ताकि परेशानी आगे न बढ़े. यही वजह है कि आज समय के साथ इसकी मांग बढ़ रही है क्योंकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड की मदद से काफी हद तक मानसिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है और उन्हें बढ़ने से रोका जा सकता है.
कैसे काम करता है साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड
मेंटल हेल्थ एडवाइसर और एक्सपर्ट डॉक्टर रूही सतीजा कहती हैं कि आज के समय में जब हर कोई किसी न किसी मानसिक तनाव में है तो ऐसे में साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड उस व्यक्ति को एक सहायक के तौर पर तुरंत समाधान देता है. ये एक तरह की काउंसलिंग होती है जो साइकोलॉजिकल एक्सपर्ट्स द्वारा की जाती है. इसमें किसी भी तरह की मानसिक समस्या से जूझ रहे व्यक्ति के मन की बात सुनकर उसकी परेशानी को हल किया जाता है. ऐसे में व्यक्ति को इस तरह का माहौल मिलता है कि वो अपने दिल की बात कहने में हिचकिचाता नहीं और उसकी आधी परेशानी दिल को हल्का करने से ही हल हो जाती है. बस जरूरत होती है उस व्यक्ति की बात को बिना जज किए सुनने की.
क्यों की जाती है साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड
इसका उद्देश्य मानसिक तौर से परेशान व्यक्ति की मेंटल हेल्थ को बेहतर करना है ताकि वो रिलेक्स महसूस कर सके और वो उस परेशानी से काफी हद तक रिलीफ महसूस कर सके. इस काउंसलिंग के जरिए व्यक्ति को ये विश्वास दिलाना होता है कि वो किसी भी मानसिक परेशानी में अकेला नहीं है बल्कि उसका दर्द समझने वाला और उसके मन की सुनने वाला कोई है.
विदेशों में ये ट्रेंड हो रहा है मशहूर
ये फर्स्ट एड किसी भी परिचित या साइकोलॉजिकल एक्सपर्ट्स दिया जा सकता है लेकिन आज वक्त के साथ इसकी मांग बढ़ती जा रही है और विदेशों में ये काउंसलिंग काफी आम बात हो गई है. इसे किसी भी तरह की मेंटल हेल्थ से जोड़कर देखना और व्यक्ति को साइकोलॉजिकल बीमार समझना गलत है. इसका उद्देश्य उसके मन की बात सुनकर उसे ये विश्वास दिलाना है कि सब ठीक है और सब ठीक हो सकता है ताकि वो बेहतर महसूस कर सके और उस परेशानी से खुद को निकाल सके.अपने मन की बात साझा करें
डॉ रूही कहती हैं कि अगर आप अपने मन की बात किसी से कर लें तो आपकी आधी परेशानी, आधा दिमाग हल्का हो जाता है और आप बेहतर फील करते हैं, उसी उद्देश्य से ये काउंसलिंग की जाती है जहां आपको कोई जज करने की बजाय आपके दिल की सुनता है और आपको सही राह दिखाता है.