क्या होते हैं अम्बिलिकल कॉर्ड ब्लड बैंक, प्राइवेट में है लेकिन सरकारी में क्यों नहीं? एक्सपर्ट्स ने बताया
मां के गर्भ में मौजूद बच्चे को गर्भनाल (अम्बिलिकल कॉर्ड) से पोषण और ऑक्सीजन मिलता है. अधिकतर लोगों को लगता है कि बच्चे के जन्म होने के बाद गर्भनाल का कोई यूज नहीं होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इस अम्बिलिकल कॉर्ड को कॉर्ड ब्लड बैंक में सुरक्षित रखा जा सकता है. इसमें मौजूद ब्लड से कई बीमारियों के इलाज का दावा भी किया जाता है. वैज्ञानिक दावा करते हैं कि गर्भनाल में मौजूद स्टेम सेल ब्लड से खून से संबंधित बीमारियों का ट्रीटमेंट किया जा सकता है. इससे ब्लड कैंसर, सिकल सेल एनीमिया और इम्यून सिस्टम से संबंधित बीमारियों का इलाज हो सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर चिल्ड्रेन हॉस्पिटल ने दावा भी किया है कि उन्होंने कॉर्ड ब्लड स्टेम सेल से 40 से अधिक बच्चों की आनुवांशिक बीमारियों का सफल इलाज किया है.
विदेशों में तो गर्भनाल को बैंक में डिपॉजिट करने का चलन बीते कुछ सालों से बढ़ रहा है. अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में कॉर्ड बैंक की सुविधा है. अमेरिका में कॉर्ड ब्लड बैंक में गर्भनाल को रखने के लिए करीब 200 डॉलर सालाना की रकम लेते हैं. इससे गर्भनाल को इसके डोनर और उसके परिवार के लिए सुरक्षित रखा जाता है. सेल ट्रायल डेटा के मुताबिक, अमेरिका में 3 से 4 फीसदी कपल बच्चे के जन्म के बाद गर्भनाल को बैंक में सुरक्षित रख रहे हैं. फ्रांस में भी यह चलन बढ़ा है, लेकिन आंकड़ा 1 फीसदी से कम ही है.
क्या भारत में भी है कॉर्ड ब्लड बैंक की सुविधा?
भारत में भी गर्भनाल को रखने के लिए कॉर्ड ब्लड बैंक हैं. कुछ प्राइवेट अस्पतालों मे यह सुविधा है.लेकिन यहां के सरकारी अस्पतालों में कॉर्ड ब्लड बैंक हीं है. लेकिन जब बच्चे की गर्भनाल से कई बीमारियों के इलाज का दावा किया जाता है तो देश के सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा क्यों नहीं है? इसका जवाब जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की है.
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जूनियर डॉक्टर नेटवर्क के राष्ट्रीय संयोजक डॉ इंद्रानिल देशमुख बताते हैं कि भारत मेंं लोगों को गर्भनाल के फायदों और इससे बीमारियों के इलाज की जानकारी नहीं है. 1 फीसदी लोग भी गर्भनाल को बैंक में सुरक्षित नहीं रखना चाहते हैं. ऐसे में सरकार इसपर काम भी नहीं कर पाती है. हां,.कुछ प्राइवेट अस्पतालों में यह सुविधा जरूर है, लेकिन वहां भी ऐसे कम ही लोग आते हैं जो कॉर्ड ब्लड को बैंक में रखना चाहते हैं. चूंकि कॉर्ड ब्लड बैंक को बनाने का खर्च काफी अधिक है ( करोड़ों में) लोग भी इसको सुरक्षित रखना नहीं चाहते हैं तो सरकारी अस्पतालों में इसकी सुविधा नहीं है.
सफदरजंग हॉस्पिटल में गायनेकोलॉजी विभाग में डॉ. सलोनी चड्ढा बताती हैं कि कॉर्ड ब्लड बैंक में गर्भनाल को सुरक्षित रखने का खर्च हर साल 40 से 60 हजार रुपये तक है. लोग हर साल इतनी रकम नहीं देना चाहते हैं. भारत में कॉर्ड ब्लड प्राइवेट संस्थानों में हैं तो, लेकिन वहां कोर्ड ब्लड से किसी मरीज का इलाज हुआ है यह अभी रिसर्च का विषय है.
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं
दिल्ली में वरिष्ठ फिजिशियन डॉ अजय कुमार बताते हैं कि इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स भी कॉर्ड ब्लड के यूज का समर्थन नहीं करती है. एकेडमी कहती है कि इसके भविष्य में किसी इस्तेमाल की उम्मीद बेहद कम है. ऐसे में सरकारी संस्थानों में इस तरह के बैंक नहीं हैं. हां, देश में करीब 22 प्राइवेट संस्थान हैं जहां कॉर्ड ब्लड बैंक है.
आईसीएमआर का भी कहना है कि अब तक गर्भनाल के ब्लड के संरक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह दावा भी ठीक नहीं है कि कॉर्ड के ब्लड से कई बीमारियों का इलाज हो जाएगा. ऐसे में जो प्राइवेट ब्लड बैंक विज्ञापन या दूसरे जरिये गर्भनाल से बीमारियों के ठीक होने का दावा करते हैं यह भ्रामक हो सकता है.