क्यों जरूरी है ‘वधावन’, कैसे बनेगा गेम चेंजर? जानिए इस पोर्ट की हर खास बात

पीएम मोदी शुक्रवार को महाराष्ट्र पहुंचे. यहां उन्होंने पालघर में न्यू इंडिया के मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव रखी. ये शिलान्यास था वधावन पोर्ट का. ये भारत में सबसे ज्यादा कंटेनर क्षमता वाला पोर्ट होगा. वधावन बंदरगाह भारत में गहरे पानी में स्थित सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक होगा. अंतरराष्ट्रीय समुद्री परिवहन के लिए सीधे संपर्क स्थापित कराएगा. ये ऑल वेदर ग्रीनफील्ड पोर्ट होगा. यानी कि इसका इस्तेमाल हर मौसम में होगा. इसकी लागत 76 हजार 220 करोड़ रुपये है. इसका निर्माण दो चरणों में किया जाएगा, पहला चरण 2029 तक पूरा होगा. दूसरा चरण 2034 तक पूरा होगा. आइए इस बंदरगाह से जुड़ी कई विशेष बातें बताते हैं.
वधावन पोर्ट पालघर में है. यहां से भविष्य में समुद्री कनेक्टिविटी कैसे बनेगी? भारत इस पोर्ट के जरिए साउथ ईस्ट एशिया, मिडिल ईस्ट, यूरोप और अफ्रीका तक समुद्र के रास्ते इंटरनेशनल ट्रेड कर सकेगा. वधावन पोर्ट की क्षमता 2 करोड़ 32 लाख TEU है, जो देश में सबसे ज्यादा होगी. TEU एक तकनीकी टर्म है. इसका फुल फॉर्म है Twenty Foot Equivalent Units यानी 20 फीट लंबा, 8 फीट चौड़ा और ऊंचा एक कंटेनर…एक यूनिट कहलाता है. यानी 2 करोड़ 32 लाख कंटेनर्स के बराबर इसकी क्षमता है.

निर्माण पूरा होने के बाद भारत का ये पोर्ट दुनिया के टॉप 10 पोर्ट में शामिल हो जाएगा. फिलहाल भारत का एक भी पोर्ट दुनिया के टॉप-10 पोर्ट में शामिल नहीं है. एक और खास बात ये है कि ये एक डीप ड्राफ्ट पोर्ट है. यानी इसकी नैचुरल गहराई 20 मीटर के करीब होगी.
ये समंदर के किनारे नहीं बल्कि तट से 6 किलोमीटर दूर समंदर में बनाया जाएगा. जो 1 हजार 448 हेक्टेयर में फैला होगा. इस पोर्ट में 9 कंटेनर टर्मिनल होंगे. हर टर्मिनल की लंबाई एक हजार मीटर होगी. इस पोर्ट में 4 मल्टी परपज बर्थ, 4 लिक्विड बल्क बर्थ, 1 आरओ बर्थ, स्माल क्राफ्ट, कोस्ट गार्ड बर्थ और रेल टर्मिनल शामिल हैं.
यहां बर्थ का अर्थ है जगह. ठीक वैसे ही जैसे ट्रेन में यात्रियों के लिए जगह होती है. उसी तरह पोर्ट पर शिप को खड़ा करने के लिए भी जगह होती है. उसे बर्थ कहा जाता है.

वधावन पोर्ट बनने क्या होगा फायदा?
वधावन पोर्ट में 20 मीटर की नैचुरल गहराई भारत के लिए वरदान की तरह है. बड़े जहाज को किसी पोर्ट पर आने के लिए कम से कम 12 से 20 मीटर की गहराई जरूरी होती है. अब तक भारत में एक भी पोर्ट ऐसा नहीं था, जिसकी गहराई 20 मीटर हो. इसके कारण भारतीय पोर्ट पर अभी बड़े जहाज़ों को आने में परेशानी होती थी. बड़े जहाजों से आने वाले समान को पहले कोलंबो या सिंगापुर जैसे पोर्ट्स पर उतरा जाता है. वहां से फिर छोटे जहाज के जरिए उस सामान को भारत लाया जाता है. इससे लागत करीब 10 हजार रुपये प्रति कंटेनर बढ़ जाती है. जब वधावन पोर्ट बन जाएगा तो ये लागत सीधे-सीधे बच जाएगी.
ये अब तक का सबसे खर्चीला पोर्ट प्रोजेक्ट है. इसकी कुल लागत 76 हजार 220 करोड़ रुपये है. इसमें जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी यानी JNPA की 74% और महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड यानी MMB की 26% हिस्सेदारी होगी. इसमें रेल मंत्रालय 1 हजार 765 करोड़ रुपये और सड़क संपर्क के लिए सड़क परिवहन मंत्रालय 2 हजार 881 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे. महाराष्ट्र सरकार बिजली के लिए करीब 300 करोड़ रुपये का निवेश करेगी.

इस पोर्ट के बनने से कम से कम 12 लाख लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा. इसके अलावा पोर्ट के आसपास रियल एस्टेट सेक्टर, वेयर हाउस और सर्विस सेक्टर का भी विकास होगा, जिससे रोजगार के बड़े अवसर पैदा होंगे. कनेक्टिविटी के हिसाब से इस पोर्ट की लोकेशन भी काफी अच्छी मानी जा रही है.
इस पोर्ट से सिर्फ 12 किलोमीटर की दूरी पर WDFC यानी वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर है. नेशनल हाईवे से इसकी दूरी सिर्फ 35 किलोमीटर है और मुंबई-बड़ौदा एक्सप्रेसवे से सिर्फ 22 किलोमीटर है.

2020 में कैबिनेट ने पोर्ट के निर्माण पर दी थी मंजूरी
ऐसा दावा किया जाता है कि वधावन पोर्ट का आइडिया 1991 में आया था. 1997 में पहली बार महाराष्ट्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को पोर्ट निर्माण का प्रस्ताव सौंपा, लेकिन एक ही साल बाद 1998 में इसे खारिज कर दिया गया. 2016 में फिर से पोर्ट निर्माण की दिशा में काम शुरू हुआ. 2020 में केंद्रीय कैबिनेट ने वधावन पोर्ट के निर्माण पर सैद्धांतिक मंजूरी दी. इसके बाद DPR यानी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की गई. फिर पिछले दिनों कैबिनेट ने इसके बजट को मंजूर किया और आज इस पोर्ट की आधारशिला रखी गई.
रिपोर्ट- टीवी9 ब्यूरो.

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