क्रीमी लेयर पर SC के आदेश को नहीं लागू करेगी सरकार, जानें कोर्ट ने क्या कहा था

अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के रिजर्वेशन को लेकर नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने साफ-साफ लफ्जों में बता दिया है कि आरक्षण में क्रीमी लेयर को आई सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश को लागू नहीं किया जाएगा. कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सरकार के इस फैसले की जानकारी दी. ये बैठक पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई थी, जिसमें SC-ST के लिए संविधान में दिए गए आरक्षण की कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विस्तार से बातचीत हुई.
केंद्र सरकार का कहना है कि एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश लागू नहीं होगी. संविधान के अनुसार मौजूदा आरक्षण ही जारी रहेगा. दरअसल, ‘क्रीमी लेयर’ उन लोगों को कहा जा रहा है जो एससी-एसटी समुदायों में उच्च आय वाले परिवारों से आते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तमाम तरह के कयास लगने शुरू हो गए थे. कहा जाने लगा था कि क्या सरकार कोर्ट की राय पर अमल करेगी या फिर संविधान में दिए गए आरक्षण को हूबहू रखेगी?
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसलों के बारे में बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर डिटेल में चर्चा के बाद मंत्रिमंडल का मत है कि एनडीए की सरकार डॉ. आंबेडकर के दिए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है.
पीएम मोदी के साथ बीजेपी के SC-ST सांसदों की मुलाकात
इस कैबिनेट बैठक से पहले बीजेपी के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सांसदों ने संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के दौरान ही उन्होंने पीएम को एक ज्ञापन सौंपा था. इस ज्ञापन के जरिए उन्होंने मांग रखी थी कि उनके समाज में कोटे के अंदर कोटे से जुड़ा फैसला लागू नहीं हो. आखिरकार पीएम मोदी ने उनकी मांगों पर गौर किया, जिसका नतीजा कैबिनेट की बैठक के बाद साफ दिखाई दिया.
मायावती का क्या कहना है?
वहीं, बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पीएम मोदी की SC-ST सांसदों से मुलाकात का स्वागत किया. उनका कहना है कि पीएम मोदी ने बीजेपी के SC-ST सांसदों को आश्वासन दिया कि SC-ST वर्ग में क्रीमी लेयर को लागू नहीं किया जाएगा, लेकिन अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट के सामने बहस में केंद्र सरकार की तरफ से आरक्षण को लेकर एससी-एसटी में क्रीमी लेयर लागू करने और इनका उप-वर्गीकरण किए जाने के पक्ष में दलील नहीं रखी गई होती, तो शायद यह निर्णय नहीं आता. मायावती की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान संशोधन के जरिए निष्प्रभावी किया जाए. अगर ऐसा नहीं होता है तो राज्य सरकारें अपनी राजनीति के तहत इस निर्णय का इस्तेमाल करेंगी और SC-ST वर्ग का उप-वर्गीकरण कर क्रीमी लेयर को लागू कर सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे में कोटा दिए जाने को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने कहा था कि SC-ST कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बना सकते हैं और इसके तहत अति पिछड़े तबके को अलग से रिजर्वेशन दे सकते हैं. ये फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सात जजों की संविधान पीठ ने सुनाया था. इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे.
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी. सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस बात की जांच कर रही थी कि क्या ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के उसके फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है, जिसमें यह माना गया था कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह हैं और इसलिए उनके बीच कोई सब कैटेगरी नहीं हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2024 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और कहा था कि सब कैटेगरी की अनुमति न देने से ऐसी स्थिति पैदा होगी, जहां क्रीमी लेयर के लोग सभी लाभों को हड़प लेंगे. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट 2004 के उस फैसले की जांच कर रहा था, जिसमें पांच जजों की पीठ ने कहा था कि केवल राष्ट्रपति ही यह अधिसूचित कर सकते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार कौन से समुदाय आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकते हैं और राज्यों के पास इसके साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है.

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