गरीबों की मजबूरी अमीरों की जरूरत, क्यों पनप रहे किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट?
कुछ दिनों पहले की बात है गुरुग्राम में पुलिस ने एक किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया था. अंगों की खरीद- बिक्री मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था. अब ऐसा ही एक मामला दिल्ली में सामने आया है. दिल्ली पुलिस ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट के रैकेट में शामिल एक बड़े अस्पताल की महिला डॉक्टर को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा 6 और लोगों की भी इस मामले में गिरफ्तारी हुई है. रैकेट से जुड़े लोग बांग्लादेश से डोनर भारत लाते थे. डोनर से यह लोग किडनी काफी कम पैसों में खरीदते और मरीज को 25 से 30 लाख रुपये में ट्रांसप्लांट करते थे.
किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट के खुलासे के ये दो नहीं बल्कि बीते कुछ सालों में सैंकड़ों मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन ये किडनी रैकेट आखिर क्यों पनप रहे हैं? ये जानने से पहले जानते हैं कि भारत में किडनी ट्रांसप्लांट की क्या स्थिति है और इस अंग का ट्रांसप्लांट क्यों और कैसे किया जाता है.
किडनी की मांग अधिक डोनर बहुत कम
राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के मुताबिक, देश में हर साल 1 लाख से अधिक लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. लेकिन 12 से 13 हजार ट्रांसप्लांट ही पो पाते हैं. इसका कारण यह है कि किडनी की जरूरत वाले मरीज की संख्या काफी अधिक है, लेकिन इसको डोनेट करने वाले बहुत कम है. आइए अब जानते हैं कि किडनी ट्रांसप्लांट क्या है.
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ डॉ. अंशुमान कुमार बताते हैं कि जब किसी की किडनी फेल होती है तब इसके ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. इसके लिए एक डोनर चाहिए होता है, जो अपनी किडनी मरीज को दान कर सके. डोनर की किडनी स्वस्थ होनी चाहिए. किडनी दान करने वाला लाइव डोनर या कोई ब्रेन डेड व्यक्ति भी हो सकता है. ट्रांसप्लांट के लिए एक पूरी प्रक्रिया होती है. इसमें मरीज के कई तरह की जांच होती है. सरकार के नियमों के हिसाब से ट्रांसप्लांट किया जाता है. किडनी ट्रांसप्लांट में तीन से पांच घंटे लगते हैं.
डॉ. अंशुमान बताते हैं कि शरीर के अन्य ऑर्गन की तुलना में किडनी का ट्रांसप्लांट आसान होता है. इसमें मरीज की खराब किडनी के पास ही डोनर की किडनी को लगा दिया जाता है. इस ट्रांसप्लांट का रिजेक्शन रेट भी कम होता है. सर्जरी के बार मरीज जल्दी रिकवर भी कर जाता है. अन्य अंगों की तुलना में इसका ट्रांसप्लांट भी कम रिस्क वाला होता है और इसके लिए बहुत बड़े अस्पताल या तकनीक की जरूरत नहीं पड़ती है.
क्यों पनप रहे किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट
दिल्ली एम्स के मेडिसिन विभाग के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट हमेशा अमीर व्यक्ति ही कराता है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी अस्पतालों में 6 -8 महीने में में एक बार ट्रांसप्लांट होता है. जबकि, प्राइवेट अस्पतालों में जब चाहें तब इसको करा सकते हैं. प्राइवेट अस्पतालों में ट्रांसप्लांट का खर्च 15 से 20 लाख रुपये है. (कुछ अस्पतालों में यह इससे कम या ज्यादा भो हो सकता है) ऐसे में अमीर इंसान ही इसको करा पाता है. अगर किसी को परिवार से कोई डोनर मिल जाता है तो अच्छा है, लेकिन अगर नहीं मिलता है तो तब ये किडनी रैकट वाले ही अस्पताल और डॉक्टर के साथ मिलकर डोनर उपलब्ध कराते हैं.
ये डोनर वह व्यक्ति होता है जिसके पास पैसा नहीं होता और यह मजबूरी में अपनी किडनी बेच देता है. इसके लिए 5 से 10 लाख रुपये जितना भी मिले. इस पूरे खेल में दलाल से लेकर डॉक्टर सब पैसे खाते हैं. कई जगह तो डॉक्टरों की देखरेख में ही पूरा रैकेट चलता है. गरीब लोगों को पैसों की जरूरत होती है और अमीर मरीजों को किडनी की.. यही से पूरा खेल शुरू होता है. किडनी रैकेट की जड़े इतनी गहरी है कि इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है.
कैसे हो रोकथाम
डॉ. अंशुमान बताते हैं कि इसके लिए सबसे जरूरी है कि लोग अंगदान को लेकर जागरूक रहें. अगर लोग खुद से अंगदान करेंगे तो इससे मरीज को समय पर अंग मिल सकेगा और अंगों का रैकेट चलाने वालों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, अंगों की खरीद-बिक्री के मामले में कानून और भी कड़े बनाने होंगे, तभी कोई हल निकल पाएगा. लेकिन यह एक लंबी लड़ाई है.