गांधी जी क्यों नहीं पीते थे गाय-भैंस का दूध, बीमार होने पर करना पड़ा था ये काम
देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पूरा जीवन अगर देखा जाए तो न सिर्फ देश के लिए उन्होंने एक बड़ा योगदान दिया है बल्कि उनके उपदेश और जीवनशैली प्रेरणा है. 1 अक्टूबर 1869 में गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ. प्रारंभिक शिक्षा घरेलू स्तर पर लेने के बाद महात्मा गांधी ने हाई स्कूल की शिज्ञा राजकोट में जाकर पूरी की. उनकी शादी बेहद कम आयु में हो गई थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी शिक्षा को जारी रखा. वह एक मेधावी छात्र रहे और लंदन में लॉ की डिग्री लेने के साथ ही उन्होंने वकालत की शुरुआत भी की और कई सालों तक बतौर वकील कार्यरत रहे. उनका पूरा जीवन प्रेरणादायक है. फिर चाहे वह सत्य और अहिंसा पर चलने के लिए दिए गए उनके उपदेश हों या फिर संयमित जीवनशैली. गांधी जी सही खानपान और शारीरिक श्रम को सेहतमंद रहने के लिए बेहद जरूरी मानते थे, लेकिन वह अपने आहार में दूध कभी शामिल नहीं करते थे.
गांधी जी ने सन् 1913 में कहा था कि जिस तरह से भोजन मांसपेशियों और हड्डियों के साथ ही दिमाग के लिए भी जरूरी होता है, ठीक उसी प्रकार से व्यायाम भी शरीर और मस्तिष्क दोंनों के लिए आवश्यक है. यदि शरीर को व्यायाम न मिले तो वह बीमार हो जाता ठीक इसी तरह से दिमाग सुस्त हो जाता है. यही वजह थी कि वह शारीरिक श्रम और खानपान दोनों पर ध्यान देते थे. वह अपने आहार में फल, मेवा शामिल करते थे, लेकिन गाय और भैंस का दूध नहीं पीते थे. तो चलिए जान लेते हैं क्या थी इसके पीछे की वजह.
क्यों नहीं पीते थे गांधी जी गाय और भैंस का दूध
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बलराम भार्गव द्वारा लिखी गई एक किताब में गांधी जी के स्वास्थ से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की गई हैं, जिसमें बताया गया है कि गांधी जी का यह मानना था कि बचपन में मां का दूध पीने के अलावा लोगों को अपनी रोजाना के आहार में दूध शामिल करने की आवश्यकता नहीं है. एक आदर्श आहार में सिर्फ फल और मेवा होना ही काफी है. खासतौर पर बादाम और अंगूर शरीर के ऊतकों और तंत्रिकाओं को पोषण देने के लिए काफी हैं.
जब गंभीर रूप से बीमार पड़ गए गांधी जी
किताब में दी गई जानकारी के अनुसार, एक बार जब गुजरात के खेड़ा में गांधी जी एक अभियान पर काम कर रहे थे तो व्यस्तता के चलते इस दौरान आहार में अनियमितता होने की वजह से वह गंभीर रूप से बीमार हो गए, इसलिए उन्हें दूध लेने की आवश्यकता थी, लेकिन उन्होंने गाय और भैंस का दूध न पीने की कसम ली थी और इसी के चलते उन्होंने डॉक्टरों से लेकर वैज्ञानिकों और वैद्यों तक की मदद ली. जिसके बाद उन्हें मूंग दाल का पानी और मोहरा तेल और बादाम का दूध डाइट में शामिल करने की सलाह दी गई, लेकिन इससे भी गांधी जी को कोई सहायता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने अपने स्वास्थ्य को देखते हुए बकरी का दूध पीने का निर्णय लिया.
गांधी जी ने लोगों की दी यह सलाह
गांधी जी ने बाद में कहा कि दूध को डाइट में शामिल न करना, इस एक्सपेरिमेंट से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है और मुझे इस बारे में न सिर्फ जानकारी देनी चाहिए बल्कि इसे एक्सपेरिमेंट को अपनाने को लेकर वॉर्निंग भी देनी चाहिए. जिन लोगों में मेरे इस एक्सपेरिमेंट को फॉलो किया है, उन्हें इसे रोक देना चाहिए, जब तक कि उन्हें खुद यह खुद फायदेमंद महसूस न हो या फिर डॉक्टर उन्हें ऐसा करने की सलाह न दे. गांधी जी का कहना था कि अपने एक्सपेरिमेंट के दौरान उन्होंने समझा कि जिन लोगों का पाचन तंत्र कमजोर है या जो लोग ज्यादातर बिस्तर पर ही रहते हैं उनके लिए दूध से हल्का कोई और पौष्टिक आहार नहीं है.
इतने मील चलते थे गांधी जी
ICMR में छपी इस किताब में यह भी लिखा गया है कि गांधी जी 1890 के दशक की शुरुआत में रोजाना लगभग 8 मील पैदल चलते थे. वह शाम के समय एक घंटे की सैर किया करते थे तो वहीं बिस्तर पर सोने जाने से पहले भी गांधी जी 30 से 45 मिनट तक की सैर करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि बौद्धिक कार्य करने के लिए तन के साथ ही मस्तिष्क का स्वस्थ रहना भी जरूरी है.