गांव-गरीब को मार रही महंगाई, इस इंटरनेशनल रिपोर्ट में हुआ खुलासा

‘गांव’ और ‘गरीब’… महात्मा गांधी ने भी जब अपने आर्थिक सिद्धांतों को दुनिया के सामने रखा था, तो सबसे पहले इनकी ही बात की थी. उन्होंने कहा था कि देश में जब भी कोई नीति बने तो इस बात को सबसे पहले ध्यान में रखा जाए कि उसका समाज के निचले तबके यानी गरीब पर क्या असर होगा? आज इसी गरीब और गांव को महंगाई दर की मार सबसे अधिक झेलनी पड़ रही है. एक इंटरनेशनल रिपोर्ट में इसका पूरा खाका खींचा गया है.
कोविड महामारी के बाद जब देश की अर्थव्यवस्था ने फिर से रफ्तार पकड़नी शुरू की, तो अलग-अलग सेक्टर के लिए वह अलग-अलग रही. इसे ‘K-Shape’ रिकवरी कहा गया, जिसका मतलब कुछ सेक्टर्स में तेजी आना और कुछ में नरमी आना है. भारत में यही स्थिति महंगाई की भी है. इंटरनेशनल ब्रोकरेज कंपनी एचएसबीसी की एक रिपोर्ट मंगलवार को जारी हुई, जिसमें कहा गया है कि महंगाई से कुछ तबके अन्य के मुकाबले ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.
गांव-गरीब की हालत ज्यादा खराब
एचएसबीसी के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत में शहरी कंज्यूमर्स के मुकाबले महंगाई से ग्रामीण उपभोक्ता ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. उन्होंने एक रिपोर्ट में कहा कि जिस तरह इकोनॉमी में ‘के’ आकार की रिकवरी देखने को मिली, उसी तरह के हालात महंगाई के मामले में हैं.
एचएसबीसी के मुख्य इकोनॉमिस्ट प्रांजल भंडारी ने अपनी रिपोर्ट में हाल की भीषण गर्मी का हवाला भी दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक देश में एक तरफ जहां फूड आइटम्स महंगाई ऊंची (लंबे समय से 8 प्रतिशत के आसपास) है, वहीं देश की मुख्य महंगाई दर में नरमी देखी जा रही है. इसकी एक बड़ी वजह गांवों में फसल को हो रहा नुकसान और पशुधन की मृत्यु दर है.
जब देश की मुख्य महंगाई दर कैलकुलेट की जाती है, तो उसमें खाद्य वस्तुओं और पेट्रोल-डीजल इत्यादि ईंधन की कीमतों के असर को शामिल नहीं किया जाता. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने ईंधन की कीमतों में कटौती करके मदद का हाथ बढ़ाया है, लेकिन आमतौर पर गांवों में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी का उपयोग शहरों की तरह नहीं होता. इस वजह से रूरल एरिया की महंगाई दर शहरी इलाकों की तुलना में अधिक है.
फूड इंफ्लेशन ज्यादा परेशान करने वाली स्थिति
एचएसबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में फूड आइटम्स की महंगाई दर ज्यादा डराने वाली है और असमंजस पैदा करती है. ये सवाल सबके दिमाग में आएगा कि जब गांव में खाद्यान्न का उत्पादन होता है, तो वहां महंगाई शहरों की तुलना में कम होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं.
इसकी वजह है कि फसलों के नुकसान से किसानों को आय का नुकसान हो रहा है. उनकी कोशिश है कि शहरी खरीदारों को उपज का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा बेच दें. इससे उन्हें मामूली तौर पर फसल पर रिटर्न अधिक मिल सकता है, लेकिन ये ग्रामीण इलाकों में खाद्यान्न की आपूर्ति को घटा रहा है. इससे भी कीमतें बढ़ रही हैं.
जबकि इसके उलट शहरी इलाकों में बंदरगाहों से डिनर टेबल तक सामान पहुंचाने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर है. इससे इंपोर्ट पर कम कीमत पर आई वस्तुओं को सस्ते में लोगों के पास तक पहुंचाने में मदद मिलती है. एचएसबीसी का मानना है कि अगर बारिश सामान्य नहीं होती है, तब संभवतया भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) नीतिगत दर में जल्दी कटौती नहीं करेगा.
गेहूं और दाल के भंडार हैं कम
रिपोर्ट के मुताबिक अगर जुलाई और अगस्त में बारिश सामान्य नहीं होती है, तो गेहूं और दालों के कम भंडार को देखते हुए, 2024 में खाद्यान्न के मोर्चे पर स्थिति पिछले साल के मुकाबले खराब हो सकती है. जून में अब तक बारिश सामान्य से 17 प्रतिशत कम रही है. वहीं उत्तर-पश्चिम इलाके में 63 प्रतिशत कम बारिश हुई है जहां भारत का सबसे ज्यादा अनाज पैदा होता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि बारिश सामान्य हो जाती है, तो महंगाई में तेजी से कमी आ सकती है. आरबीआई नीतिगत दर में कटौती करने में सक्षम होगा और मार्च 2025 तक इसमें 0.5 प्रतिशत की कमी हो सकती है.
(इनपुट : भाषा)

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