गांव वाले बंदर और पागल कहकर देते थे ताना, अब पैरालंपिक में मेडल जीतकर रचा इतिहास
पेरिस पैरालंपिक का छठा दिन भारत के लिए ऐतिहासिक रहा. 3 सितंबर को भारतीय एथलीट्स ने कुल 5 मेडल जीतकर टोक्यो के रिकॉर्ड को तोड़ दिया. अब भारत के पास कुल 20 मेडल हैं, जो पैरालंपिक खेलों में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. भारत के इस ऐतिहासिक कारनामे में तेंलगाना की दीप्ति जीवनजी ने भी अहम योगदान दिया. उन्होंने महिला रेस की 400 मीटर टी20 कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता. ऐसा करने वाली वो पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई हैं. 20 साल की दीप्ति ने 55.82 सेकंड में रेस पूरा किया. वो महज 0.66 सेकंड से पहले स्थान से चूक गईं.
जन्मजात मानसिक रूप से कमजोर
दीप्ति जीवनजी तेंलगाना के वारंगल जिले की रहने वाली हैं. उन्होंने पैरालंपिक के टी20 कैटेगरी में मेडल जीता है. ये कैटेगरी मानसिक रूप से विकलांग खिलाड़ियों के लिए रिजर्व होती है. इस ऐतिहासिक मुकाम तक पहुंचना दीप्ति के लिए बहुत कठिन था. उन्हें अपने काबिलियत को साबित करने के लिए अपनी मानसिक बीमारी के साथ-साथ समाज से भी लड़ाई लड़नी पड़ी.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में उनकी मां धनलक्ष्मी जीवनजी और पिता यधागिरी जीवनजी ने खुलासा किया है कि दीप्ति का जन्म सूर्यग्रहण के समय हुआ था. वो जन्मजात मानसिक रूपे से कमजोर थीं. इस वजह से उन्हें बातचीत करने करने या किसी भी सामान्य काम को करने में दिक्कतें आती थीं.
गांव वाले देते थे ताना
दीप्ती के माता-पिता ने बताया कि जन्म के समय उनका सिर बहुत ही छोटा था. इसके अलावा उनकी होठ और नाक भी आम बच्चों से थोड़ा अलग थी. इस वजह से गांव वाले और कई रिश्तेदार दीप्ति को पागल कहते थे. इतना ही नहीं उन्हें बंदर कहकर भी चिढ़ाया जाता था.
यधागिरी जीवनजी ने खुलासा किया कि उन्हें कई लोगों ने तो ये भी सलाह दी कि वो अपनी बेटी को किसी अनाथ आश्रम में छोड़ दें. हालांकि उन्होंने किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया. अब उन्हें अपनी बेटी को मेडल जीतते हुए देखकर गर्व महसूस होता है. साथ ही चैंपियन बनता देखकर वाकई में लगने लगा है कि दीप्ति भगवान का दिया हुआ एक खास तोहफा हैं.
संघर्ष से भरा था बचपन
दीप्ति की मां धनलक्ष्मी जीवनजी ने बताया कि उनके दादाजी की मौत के बाद खेती वाली जमीन बेचनी पड़ी. इससे परिवार पर आफत टूट पड़ी. पूरा परिवार खाने के लिए भी तरस जाता था. दीप्ति के पिता मुश्किल से 100 से 150 रुपए कमा पाते थे, जिससे घर का खर्च नहीं चल पाता था. ऐसे में उन्हें अपने पति को सपोर्ट करने और दोनों बेटियों दीप्ति और अमूल्या की जरूरतों को पूरा करने के उन्हें भी काम करना पड़ता था.
धनलक्ष्मी जीवनजी ने ये भी खुलासा किया कि दीप्ति बचपन से ही शांत स्वाभाव की थीं और बहुत कम बोलती थीं. गांव के बच्चे उनकी बीमारी के कारण चिढ़ाते, तब वो घर आकर खूब रोती थीं. ऐसे में वो दीप्ती को खुश करने के लिए मीठा चावल या कभी चीकन बनाकर खिलाती थीं.
कैसे तय किया पैरालंपिक का सफर?
दीप्ती को बचपन से ही एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी. 15 साल की उम्र में स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के कोच एन रमेश की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने देखते ही भारतीय एथलीट के टैलेंट को पहचान लिया. इसके बाद उन्होंने अपनी निगरानी में ट्रेनिंग देनी शुरू की. काफी मेहनत के बाद 2022 के एशियन पैरा खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर दीप्ति ने पहली बड़ी सफलता हासिल की. इस दौरान उन्होंने एशियन रिकॉर्ड भी तोड़ा था. इसके बाद 2024 में जापान में हुए वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स में वो चैंपियन बनीं, जहां उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया. अब उन्होंने पेरिस पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है.