गोंडा ट्रेन हादसे के बाद उठी कवच सिस्टम लागू करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका
गुरुवार 18 जुलाई को गोंडा जिले में बड़ा हादसा हुआ. चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही 15904 डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतर गई. ट्रेन के 10 कोच पटरी से उतर गए. इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई और 27 लोग घायल हो गए हैं. इस घटना के बाद से ही कवच सिस्टम को भारतीय रेल यात्रियों की सुरक्षा के मद्देनजर लागू करने की मांग उठने लगी, जो कि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची.
ट्रेन का डिरेल होने का यह कोई पहला हादसा नहीं है, इससे पहले भी ऐसे हादसे देखें गए हैं, जिसके बाद कवच सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड जज के नेतृत्व में एक विशेषग्य समिति बनाकर पूरे देश में रेल यात्रियों के जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग उठाई जा रही है.
क्या होता है कवच सिस्टम
कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम (Automatic Train Protection) है, जिसे भारतीय रेलवे ने आरडीएसओ ( Research Designs and Standards Organisation) के जरिए विकसित किया है. कवच सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में काम करना शुरू किया था. कवच टेक्नोलॉजी इस तरह काम करती है कि ट्रेन आपस में न भिड़े, ट्रेनों को आपस में भिड़ने से रोका जाए. इस तकनीक में अगर ट्रेन सिग्नल को जंप कर देती है तो वो खुद रुक जाती है. हालांकि यह सिस्टम अभी सभी ट्रेनों तक नहीं पहुंच पाया है.
ओडिशा हादसे के बाद उठी मांग
ओडिशा में पिछले साल ऐसा ही एक हादसा सामने आया था जहां बालासोर में ट्रेन पटरी से उतर गई थी. ओडिशा में हुई दुर्घटना के बाद कवच सिस्टम लागू करने की याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2024 में तब निपटारा कर दिया था, जब रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में कवच सिस्टम को लागू करने समेत अन्य कदम उठाने का हवाला दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
याचिका में पिछले साल हुए ओडिशा हादसे के बाद भी सामने आई रेल दुर्घटनाओं और यात्रियों की जान माल का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता और अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन के बावजूद रेलवे कि ओर से कवच सिस्टम लागू करने और यात्रियों कि जानमाल के मद्देनजर कदम उठाने में देरी को याचिका में आधार बनाया है. कवच सिस्टम को लेकर जून में निपटायी गई याचिका का हवाला देते हुए समान मुद्दे पर दाखिल याचिका पर जल्द सुनवाई कर उचित आदेश जारी करने की मांग सर्वोच्च अदालत से की गई है.