गौतम गंभीर में आखिर क्या है खास, रिटायरमेंट के 8 साल में ही बन गए कोच

गौतम गंभीर सिर्फ 42 साल की उम्र में टीम इंडिया के कोच बन गए हैं. 27 जुलाई से बतौर कोच उनका पहला असाइनमेंट श्रीलंका में शुरू हो रहा है. गौतम गंभीर कोच तो बन गए लेकिन ये समझना होगा कि वो कोच कैसे बने? आखिर वो कौन सी वजहें थीं जो उनके पक्ष में गईं. मौजूदा समय में विश्व की बड़ी क्रिकेट टीमों में वो संभवत: सबसे युवा कोच हैं. मसलन- पाकिस्तान के हेड कोच जेसन गिलेस्पी 49 साल के हैं. टीम के दूसरे कोच गैरी कर्स्टन की उम्र 56 साल है. इंग्लैंड के कोच ब्रैंडन मैक्कलम भी गौतम गंभीर से कुछ दिन बड़े ही हैं. न्यूजीलैंड के कोच गैरी स्टेड 52 साल के हैं. ऑस्ट्रेलिया के कोच एंड्रयू मैकडोनाल्ड 43 साल के हैं. इससे पहले भारतीय टीम के कोच राहुल द्रविड़ भी पचास पार के ही थे.
इसे ऐसे भी समझिए कि गौतम गंभीर करीब आठ साल पहले जिन खिलाड़ियों के साथ खेल रहे थे अब वो उन्हीं के कोच हैं. गौतम गंभीर ने नवंबर 2016 में जो आखिरी मैच खेला था उसमें से करीब आधा दर्जन खिलाड़ी ऐसे हैं जो अभी टीम इंडिया के सदस्य हैं. शुरूआत तो रोहित शर्मा से ही करते हैं, रोहित और गंभीर 2007 में टी20 वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे. इसके बाद विराट कोहली का नाम आता है. विराट कोहली और गौतम गंभीर ने 2011 वर्ल्ड कप में बहुत अहम साझेदारी की थी. इसके अलावा आर अश्विन, मोहम्मद शमी, रवींद्र जडेजा जैसे नाम भी हैं जो भारतीय टेस्ट टीम का नियमित हिस्सा हैं. जो अब गौतम गंभीर की कोचिंग में खेलेंगे.
आखिर क्या खास है गौतम गंभीर में?
एक खिलाड़ी के तीन आयाम हो सकते हैं. वो गेंदबाज या बल्लेबाज होगा, फिर वो कप्तान हो सकता है और अंत में वो कोचिंग कर सकता है. अब इन तीनों आयाम पर गौतम गंभीर को परखते हैं. सब कुछ ‘क्रिस्टल क्लियर’ है यानी बिल्कुल साफ-साफ दिखाई देता है. सबसे पहले बल्लेबाजी पर आते हैं. अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनके करीब दस हजार रन और 20 शतक को छोड़ दीजिए. गंभीर की दो पारियां ही भारतीय क्रिकेट इतिहास में दर्ज हैं. 2007 टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने भारत की तरफ से सबसे ज्यादा 75 रन बनाए थे. 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने सबसे ज्यादा 97 रन की पारी खेली थी. 2007 में भारत ने टी20 वर्ल्ड कप जीता था और 2011 में वर्ल्ड कप.
गौतम गंभीर रहे हैं लीडर
इसके बाद कप्तानी के रोल की बात करते हैं. टीम इंडिया में तो उन्हें कप्तानी के बहुत गिने चुने मौके मिले लेकिन फ्रेंचाइजी क्रिकेट में वो कप्तान रहे. कप्तान भी उन्हें कोलकाता नाइट राइडर्स ने बनाया. जो आईपीएल के इतिहास की बड़ी टीमों में शुमार थी. टीम के साथ किंग खान का नाम जुड़ा हुआ था. सौरव गांगुली, ब्रैंडन मैक्कुलम, क्रिस गेल जैसे तमाम बड़े नाम टीम के साथ थे लेकिन जीत नसीब नहीं हो रही थी. 2008 में कोलकाता छठे नंबर पर थी. 2009 में तो वो आखिरी पायदान की टीम थी. 2010में भी टीम छठे पायदान पर ही रही थी. 2011 में गंभीर कोलकाता की टीम के साथ बतौर कप्तान जुड़े. ये पहला साल था जब कोलकाता की टीम प्लेऑफ तक पहुंची. इसके बाद पहली बार उसे चैंपियंस लीग में खेलने का मौका भी मिला.
2012 और 2014 में कोलकाता की टीम गौतम गंभीर की कप्तानी में चैंपियन बनी. यानी दूसरे रोल में भी गौतम गंभीर ने अपना दमखम दिखाया. अब तीसरे रोच की बात कर लेते हैं. यहां भी कहानी बिल्कुल साफ है. गौतम गंभीर लखनऊ की टीम के साथ बतौर मेंटॉर जुड़े. उनके रहते लखनऊ की टीम ने पहले ही साल प्लेऑफ के लिए क्वालीफाई किया. 2024 में गंभीर वापस कोलकाता की टीम के साथ आए और कोलकाता ने खिताब जीता. पूरे टूर्नामेंट की सबसे कंसिसटेंट टीम कोलकाता ही थी. क्रिकेट के खेल में बड़े कम ही नाम ऐसे होंगे जिन्हें इन तीनों रोल में कामयाबी मिली हो.
कोच से ज्यादा दोस्त की भूमिका में दिखेंगे गंभीर
गौतम गंभीर ने श्रीलंका रवाना होने से पहले कहा कि खिलाड़ियों को खुश रखना उनकी प्राथमिकता में है. खुशनुमा माहौल वाले ड्रेसिंग रूम में जीत भी आती है. इन दोनों बयानो का संदेश बिल्कुल साफ है कि गंभीर चीजों को पेचीदा नहीं करने वाले. उन्हें पता है कि वो खिलाड़ियों के दोस्त बनकर रहेंगे तो नतीजे खुद-ब-खुद मिलेंगे. विराट को लेकर भी वो अपनी बात कह चुके हैं कि वो दोनों आपस में मैसेज ‘एक्सचेंज’ करते हैं. गंभीर विराट की जमकर तारीफ कर रहे हैं.
गंभीर को विराट की जरूरत है
गंभीर अच्छी तरह जानते हैं कि उनके करियर का आंकलन भी जीत से ही होगा और जीत के लिए विराट जरूरी हैं. इस बात को भी समझना होगा कि अगर इन दोनों के बीच रिश्ते इतने ही खराब होते तो शायद गंभीर इस जिम्मेदारी को संभालते ही नहीं. वो अच्छा भला कोलकाता की टीम के साथ मेंटॉर थे और शाहरूख खान के साथ उनके रिश्ते बताने की जरूरत नहीं है. गंभीर तो उस मिजाज के हैं जहां उनकी टीम के किसी खिलाड़ी का विरोधी टीम के साथ कुछ ‘झगड़ा-लफड़ा’ हो गया तो वो भी साथ में जाकर दो-दो हाथ कर आएंगे. वो ‘टीम-मैन’ हैं. विराट से भी जब वो भिड़े थे तो नवीन उल हक़ के लिए ही भिड़े थे. उनके लिए खिलाड़ी से पहले टीम है. 2024 आईपीएल में उन्होंने रिंकू सिंह को कम मौके दिए लेकिन अंत में रिंकू के हाथ में ट्रॉफी तो थी ही.
गंभीर के सामने ग्रेग चैपल और गैरी कर्स्टन का उदाहरण भी है. ग्रेग चैपल ने हंटर चलाया तो वो सिर्फ और सिर्फ विवाद के लिए याद रखे जाते हैं. जबकि गैरी कर्स्टन ने किसी म्यूजिक डायरेक्टर की तरह हर खिलाड़ी को कुछ रोल देकर आजाद छोड़ दिया तो वो कामयाब कोच बने. ये भारतीय क्रिकेट का वो दौर शुरू हो रहा है जहां गौतम उतने ‘गंभीर’ नहीं होंगे.

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