घोषणा पत्र में पार्टी या उम्मीदवार जो वादे करते हैं, उसे भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता- SC
चुनाव के दौरान कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में जो वादे करता है, जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता दी जाती है, उसे उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने इस संबंध में दायर याचिका को खारिज करते हुए इस तर्क को बहुत दूर की कौड़ी बताया.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री का अध्ययन किया है और याचिकाकर्ता शशांक जे. श्रीधर का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को भी काफी विस्तार से सुना है. बेंच ने 17 मई को पारित एक आदेश में कहा कि वकील का यह तर्क कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में की गई प्रतिबद्धताएं, जो अंततः बड़े पैमाने पर जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, उस पार्टी के उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण के समान होंगी, बहुत दूर की कौड़ी है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.
‘प्रश्न पर विस्तृत रूप से विचार करने की जरूरत नहीं’
सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के प्रश्न पर विस्तृत रूप से निपटने की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले में इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में हमें इस तरह के प्रश्न पर विस्तृत रूप से विचार करने की जरूरत नहीं है. ऐसे में अपीलें खारिज की जाती हैं. हालांकि इस दौरान बेंच ने कानून के प्रश्न को खुला रखा जिस पर उचित मामले में निर्णय लिया जा सकता है.
कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका
दरअसल याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. अप्रैल में हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस नीति को वो लागू करने की उम्मीद करते हैं, उसके संबंध में एक पार्टी की घोषणा, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के प्रयोजनों के लिए एक भ्रष्ट आचरण नहीं है. याचिकाकर्ता चामराजपेट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता है. जिसने 2023 के कर्नाटक राज्य विधानमंडल चुनाव में उम्मीदवार बी जेड जमीर अहमद खान के चयन को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है.
उम्मीदवार की जीत को रद्द करने की मांग
खान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) से उम्मीदवार थे और उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की थी. याचिका को न्यायमूर्ति एम आई अरुण की अध्यक्षता वाली एकल न्यायाधीश पीठ ने खारिज कर दिया.याचिकाकर्ता का कहना है कि जमीर अहमद पांच गारंटी देकर मतदाताओं को लुभाया है. उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतदाताओं को भ्रष्ट कर दिया है. ऐसे में याचिकाकर्ता ने जमीर अहमद के चयन रद्द करने की मांग की थी. चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों के वादों के खिलाफ वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.