चीन जैसी सरकार, भारत से मामूली व्यापार…कितना अहम है लाओस जहां के दौरे पर पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय लाओस दौरे के लिए राजधानी वियनतियाने पहुंच चुके हैं. प्रधानमंत्री यहां 21वें आसियान-भारत समिट और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. लाओस की राजधानी वियनतियाने में समिट का आयोजन किया जाएगा. इस साल लाओस आसियान सम्मेलन का मेजबान और वर्तमान अध्यक्ष है.
पीएम मोदी ने लाओस रवाना होने से पहले सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X पर इसे एक खास मौका बताया है. पीएम ने लिखा है कि, ‘यह एक विशेष वर्ष है, क्योंकि हम अपनी एक्ट ईस्ट नीति के एक दशक का जश्न मना रहे हैं, जिससे भारत को लाभ हुआ है.

#WATCH | PM Modi arrives in Vientiane as his two-day visit to Laos commences today
PM Modi is on a two-day visit to Vientiane, Lao PDR at the invitation of Prime Minister Sonexay Siphandone to participate in the 21st ASEAN-India and the 19th East Asia Summit. This year marks a pic.twitter.com/kl4Bp2rH2G
— ANI (@ANI) October 10, 2024

लाओस के बारे में जानिए
लाओस में चीन की ही तरह कम्युनिस्ट सरकार है. इसकी सीमा चीन, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम से लगती है. इसका क्षेत्रफल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बराबर है और आबादी करीब 77 लाख है. लाओस में लाओ पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी का दबदबा है और थोंगलुन सिसोलिथ इसके राष्ट्रपति हैं. वह इस पद पर आने वाले पहले व्यक्ति हैं जिनका कोई मिलिट्री बैकग्राउंड नहीं है. 1954 में आजाद होने से पहले लाओस फ्रांसिसी शासन के कब्जे में था. 1997 में लाओस आसियान का सदस्य बना और 2013 में इसने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन की सदस्यता हासिल की.
भारत और लाओस के बीच संबंध
भारत और लाओस के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंध रहे हैं. दोनों देशों के बीच 1956 में डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित हुए. तब से अब तक दोनों देशों की ओर से द्विपक्षीय यात्राएं होती रहीं हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में ही लाओस का दौरा किया था. इसके बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाओस की आधिकारिक यात्रा की थी. 2004 में मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री मोदी आसियान-भारत समिट में हिस्सा लेने के लिए लाओस का दौरा कर चुके हैं.
कोरोना महामारी के दौरान भारत की ओर से 50 हजार कोवैक्सीन की डोज और दवाइयां लाओस भेजी गईं थीं. हाल ही में आए तूफान यागी के दौरान भी भारत ने करीब एक लाख डॉलर की आपदा राहत सामग्री लाओस भेजी थी.
इसके अलावा लाओस के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सिविलाइजेशनल संबंध रहें हैं. बौद्ध धर्म और रामायण दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं. इसी साल 15 से 31 जनवरी के बीच लाओस के रॉयल बैलेट थियेटर के 14 आर्टिस्ट ने भारत में 7वें इंटरनेशनल रामायण मेला में भी हिस्सा लिया था.
पीएम मोदी ने लाओस दौरे पर क्या कहा?
इस बार भी पीएम मोदी लाओस में आसियान-भारत समिट और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. उन्होंने लाओस दौरे पर बयान जारी कर बताया है कि ईस्ट एशिया समिट से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि स्थापित करने का मौका मिलेगा. पीएम ने लिखा है कि लाओस PDR समेत इस क्षेत्र के साथ भारत करीबी सांस्कृतिक और सभ्यतागण संबंध साझा करता है.

Leaving for Lao PDR to take part in the 21st ASEAN-India and 19th East Asia Summit. This is a special year as we mark a decade of our Act East Policy, which has led to substantial benefits for our nation. There will also be various bilateral meetings and interactions with various
— Narendra Modi (@narendramodi) October 10, 2024

भारत और लाओस के बीच व्यापार
भारत और लाओस के बीच द्विपक्षीय व्यापार की बात करें तो वर्तमान वित्तीय वर्ष में करीब 112.6 मिलियन डॉलर का व्यापार हुआ है. इसमें भारत की ओर से 99.7 मिलियन डॉलर का आयात और 12.9 मिलियन डॉलर का निर्यात शामिल है. कोरोना महामारी के चलते आई गिरावट के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार में इस साल 23.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. निर्यात की बात करें तो भारत, लाओस को फार्मा प्रोडक्ट्स, व्हीकल्स, मशीनरी और मैकानिकल अप्लायंस भेजता है. वहीं लाओस से हमारा देश कीमती धातु और उससे बनी वस्तुएं, लकड़ी और लकड़ी के सामान आयात करता है.
भारत के लिए क्यों अहम है लाओस?
लाओस वैसे तो एक छोटा सा देश है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के चलते यह भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर काफी अहम माना जाता है. इसकी सीमा चीन और म्यांमार से लगती है, लिहाजा चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण यह देश रणनीतिक तौर पर भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. यह भारत के इंडो-पैसिफिक विजन का महत्वपूर्ण स्तंभ है, साथ ही साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है. व्यापारिक नजरिए की बात करें तो दक्षिण पूर्व एशिया में लाओस की भौगोलिक स्थिति के कारण भी यह हमेशा से अहम रहा है.
भारत के लिए लाओस कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में और पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 में ही लाओस का दौरा किया था. लाओस को फ्रांस के कब्जे से मुक्ति दिलाने में भी भारत ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एंड कंट्रोल (ICSC) के चेयरमैन के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी. जुलाई 1954 में जेनेवा संधि के आधार पर ICSC की स्थापना की गई थी, इसका उद्देश्य भारत-चीन के बीच दुश्मनी को खत्म करने और लाओस से फ्रांसिसी उपनिवेशवादी शक्तियों की वापसी कराना था.

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