चुनाव 2024: INDIA गठबंधन के वे 10 चेहरे, जिन्होंने रोक दिया मोदी का रथ!

अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की जनता को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि उनके अंदर राजनीतिक सूझबूझ अपने पिता मुलायम सिंह यादव से कम नहीं है. इसलिए उन्होंने एक और ‘लड़के’ के साथ मिल कर यूपी में मोदी का रथ रोक लिया. यूपी का यह दूसरा लड़का था राहुल गांधी. जिन्होंने पिछले दो लोकसभा चुनावों की नाकामी और दो साल पहले हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बुरे प्रदर्शन के बावजूद हिम्मत नहीं हारी. पहले दक्षिण से सुदूर उत्तर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली और फिर उत्तर पूर्व के मणिपुर से मुंबई तक की न्याय यात्रा पूरी की. इन दोनों लड़कों के जज़्बे और साहस का ही कमाल था कि इस बार बीजेपी 272 के आंकड़े से बहुत पीछे रह गई. इन दोनों के अलावा ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी, सीताराम येचुरी, जयराम रमेश, उद्धव ठाकरे, शरद पवार और पवन खेड़ा ने ऐसी बिसात बिछायी कि मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लाख कोशिशों के बाद भी आगे नहीं बढ़ सका.
बीजेपी की ‘खुशफहमी’ की हवा निकल गई
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NDA के लिए 400 पार का आह्वान किया था और बीजेपी के लिए 370 का लक्ष्य. उनका यह आत्म विश्वास विरोधी दलों को पस्त करने के लिए काफी था. लेकिन राहुल गांधी को अपनी यात्राओं के बूते यह भरोसा था कि वह प्रधानमंत्री की इस खुशफहमी की हवा निकाल देंगे. हुआ भी यही 4 जून को जैसे ही नतीजे आने शुरू हुए भाजपा खेमे में मायूसी छाने लगी. हालांकि बीजेपी 240 सीटें हासिल कर चुकी है और उसका गठबंधन (NDA) सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत पा गया है. किंतु तीसरी बार क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछली दो सरकारों की तरह बेफिक्र हो कर सरकार चला पाएंगे? यह सवाल पूरे बीजेपी कुनबे में उठ रहा है. जिस तरह निर्भीक हो कर उन्होंने पिछली दो लोकसभाओं में अपने एजेंडे के अनुरूप प्रस्ताव पास कराए, वे भविष्य में उन्हें मुश्किल में डाल देंगे.
‘लड़कों’ ने ‘बड़ों’ पर बाजी मारी
राहुल गांधी और अखिलेश यादव को लोग राजनीति में बच्चा समझते रहे लेकिन इन दोनों ‘लड़कों’ ने अपनी दृढ़ता, लगन और आत्म विश्वास से बिखरे पड़े विपक्षी कुनबे में जान फूंक दी. ऊपरी तौर पर सबको यही दिखता है. लेकिन उनको आगे कर वे राजनीतिक ‘चाणक्य’ भी मोदी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे थे, जो पिछले दस वर्षों से उनके ‘हिंदुत्व’ से आजिज आ चुके थे. इसमें कोई शक नहीं कि अपने हिंदुत्व मंत्र का राजनीति में इस्तेमाल उन्होंने सबसे पहले गुजरात में किया था, जब वे वहाँ के मुख्यमंत्री थे. यह प्रयोग सफल रहा और वे लगातार तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. भाजपा के अंदर के और बाहर के अपने सारे विरोधियों को उन्होंने धूल चटा दी. 2014 लोकसभा चुनाव के पूर्व जब भाजपा ने उन्हें अपना पोस्टर बॉय बनाया तब फिर इसी हिंदुत्व के बूते ही वे सत्ता पर पहुँचे.
PDA हिंदुत्व पर भारी पड़ा
दो बार लगातार उनका यह प्रयोग सफल रहा. लेकिन इस बार उनके इस प्रयोग को सफल न होने देने के लिए विपक्षी दलों ने इंडिया गठबंधन बना कर PDA का रोड मैप ड्राफ्ट किया. PDA अर्थात् पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक. इस PDA की धार नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व पर भारी पड़ गई. कहीं-कहीं यह PDA पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक था तो कहीं-कहीं अखिलेश यादव ने इसे पीड़ित, दलित और अगड़ा बता दिया. नतीजा जो-जो भी समुदाय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के राज से दुखी थे, वे भी इस PDA की छतरी की तले आ गए. ख़ासकर अवध और पूर्वांचल में PDA को इसी रूप में लिया गया. उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से भाजपा को मात्र 33 पर अटका देना आसान नहीं था. पर राहुल और अखिलेश की जोड़ी ने यह कर दिखाया. भाजपा के अहंकारी सांसदों को धूल चटाने के लिए ऐन मौके पर ऐसे उम्मीदवार उतारे गए, जिन्होंने स्मृति ईरानी जैसी ताकतवर राजनेता को पटखनी दे दी.
लेफ्ट की विचारधारा भी कामयाब रही
राजनीति की इस चौसर में लेफ्ट फ्रंट के नेताओं का करिश्मा खूब रहा. CPM के महासचिव सीताराम येचुरी तो इस इंडिया गठबंधन के मूल में ही थे. दूसरी तरफ़ राहुल गांधी को इंडिया गठबंधन के साथ डट कर खड़े होने की तैयारी कराने में जयराम रमेश और पवन खेड़ा का बड़ा योगदान रहा. इन दोनों नेताओं ने ऐसा समाँ बांधा कि राहुल गांधी में अपने लक्ष्य के प्रति निरंतरता बनी रही. राहुल गांधी की यात्राएं उनका हर आमों-खास से सरल भाव से मिलना और उनका खिलंदड़ी अंदाज सबको लुभाता रहा. वे कहीं भी रुक कर चाय पी लेते, किसी जगह खड़े हो कर छोले-भटूरे खा लेते और किसी की भी बाइक में बैठ कर सैर कर लेते. मुझे याद है, कि पश्चिम बंगाल की CPM सरकार ने जब ममता की रैली को रोकने के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस लगा रखी थी, तब वे घनघोर बारिश में एक बाइक के पीछे बैठ कर चमकाई तल्ला पहुंच गई थीं, जहां उनकी रैली थी. ठीक दस साल बाद ममता ने 34 साल पुरानी CPM सरकार को उखाड़ फेंका.
ममता का चंडी पाठ
यह ममता का ही जज़्बा था कि आज पश्चिम बंगाल में लेफ्ट फ्रंट चित पड़ा है. ममता वहां 2011 से एकछत्र राज कर रही हैं. ऐसी ममता बनर्जी से भिड़ना नरेंद्र मोदी के लिए आसान नहीं था. 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी से सीधे पंगा लिया और भाजपा की विधानसभा में बुरी तरह पराजय हुई. जबकि विधानसभा चुनाव के दो वर्ष पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में यही नरेंद्र मोदी बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीत चुके थे. भाजपा ने वहां धर्म की राजनीति की और जय श्रीराम का नारा लगाया. बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी ने जनसभाओं में चंडी पाठ कर भाजपा की हवा निकाल दी. भाजपा भूल गई कि भारत के हर प्रदेश के हिंदुओं में श्रीराम अकेले आराध्य नहीं हैं. यहां तो ब्रजधाम के गोकुल में राधे-राधे बोलना होगा तो द्वारिका में जय श्रीकृष्ण. यह विविधता ही भारत की जान रही है और इसी को पहचानने में नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा भूल कर बैठी.
ममता ने सिखाया सबक
ममता बनर्जी ने बंगाल में भाजपा से सात सीटें जीत लीं. उनका आंकड़ा 22 से 29 पर पहुंच गया और भाजपा का 18 से 11 पर आ गया. ममता ने यहां पर इंडिया गठबंधन से अलग चुनाव लड़ा था. उन्होंने कांग्रेस के ताकतवर नेता अधीर रंजन चौधरी को बरहामपुर में अपने प्रत्याशी यूसुफ पठान से पराजित करवा दिया. जबकि वे 1999 से लगातार इस सीट से जीत रहे थे. यूसुफ पठान क्रिकेटर हैं और मूल रूप से गुजरात के. उनको बांग्ला भी नहीं आती. उन्होंने पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद को दुर्गापुर लोकसभा सीट से और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को आसनसोल सीट से भी विजयश्री दिलवाई. इस तरह ममता ने अपना क़द राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के बराबर कर लिया. उन्हीं के अनुरूप लालू प्रसाद यादव ने बिहार में मोदी के समक्ष एक बड़ी दीवार खड़ी की. वे चारा घोटाले में हुई सजा के चलते खुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे किंतु अपने बेटे तेजस्वी यादव को उन्होंने राजनीति में दक्ष कर दिया. नतीजा यह रहा कि जो RJD 2019 में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, उसे चार सीटें मिल गईं. वे दृढ़ता से इंडिया गठबंधन के साथ रहे.
बुजुर्ग शरद पवार और उद्धव ठाकरे की ताकत
महाराष्ट्र में NDA को तगड़ा झटका लगा है. वहां भाजपा ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की NCP में सेंध लगाई थी. दो साल पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को तोड़ कर अपने साथ कर लिया और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा कर बैक किया. पिछले वर्ष बुजुर्ग चाणक्य शरद पवार के भतीजे अजित पवार को भी तोड़ लिया, उन्हें महाराष्ट्र सरकार में उप मुख्यमंत्री बनवा दिया. मुंबई में उद्धव के पिता का बाल ठाकरे का राज चलता था. उनका कहा वेद वाक्य था. असंख्य लोग उनसे उपकृत होते और उनके लिए जान देने को तत्पर रहते. ऐसे बाल ठाकरे के परिवार में तोड़-फोड़ भाजपा को महँगी पड़ी. इसी तरह अजित पवार के जाने से नाराज़ शरद पवार ने इंडिया ब्लॉक को और मजबूत किया. लोकसभा चुनाव में भाजपा को 48 सीट वाले इस प्रदेश की चोट महँगी पड़ी.
खरगे का खड्ग
इंडिया ब्लॉक को 543 में से 235 के क़रीब पहुंचने का बड़ा श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी जाता है. डेढ़ वर्ष पहले उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. इसके पहले वे मनमोहन सरकार में रेल मंत्री रह चुके थे. कर्नाटक के एक दलित परिवार में पैदा हुए मल्लिकार्जुन खरगे अपनी मेधा से इस पद तक पहुंचे थे. उन्होंने इंडिया ब्लॉक की इच्छाओं के अनुरूप कांग्रेस को सांगठनिक स्तर पर मजबूत किया. दलित चेहरा होने के कारण कांग्रेस को दलितों का एकमुश्त वोट मिला. उत्तर प्रदेश में मुसलमान और यादव यदि अखिलेश के साथ था तो दलित वोट कांग्रेस के कारण मिला. PDA की अवधारणा को पुख्ता करने में मल्लिकार्जुन खरगे का अहम रोल रहा. भले NDA गठबंधन भाजपा की अगुवाई में अपनी सरकार बना ले परंतु इस बार भाजपा अपनी मां की बात तो नहीं ही सुना पाएगी.
प्रियंका के बिना अमेठी मुश्किल थी
मंगलवार को नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने जो प्रेस कांफ्रेंस की, उसमें उन्होंने बड़े ही वात्सल्य भाव से अपनी छोटी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को याद किया. उन्होंने कहा, इस जीत में मेरी छोटी बहन प्रियंका का बड़ा रोल है, जो शरमाई हुई पीछे खड़ी है. वह सामने नहीं आती, लेकिन राहुल गांधी जब देश व्यापी प्रचार पर थे तब यही प्रियंका रायबरेली में अपने भाई और अमेठी में कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा को जिताने में जी-जान से जुटी थी. प्रियंका अपने मकसद में सफल रहीं.

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