जम्मू-कश्मीर चुनावों से कश्मीरी पंडितों को क्या है उम्मीद? घर वापसी और सुरक्षा अहम मुद्दा
जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों में कश्मीरी पंडितों की रिहैबिलिटेशन एक बार फिर से बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. सभी राजनीतिक दल कश्मीरी पंडित वोटरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनकी घर वापसी के लिए एक ठोस योजना बनाएंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित करने का अधिकार है, जिसमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा. नामित किए जाने वाले कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला होगी. इस व्यवस्था के तहत कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है.
कश्मीर पंडितों की सुरक्षा, विस्थापन और रोजगार जैसे मुद्दे धारा 370 हटने से पहले और बाद में जम्मू-कश्मीर में हमेशा से सबसे बड़े मुद्दे रहे हैं. अब जब केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है, तो कश्मीरी पंडित समाज के लोगों की चुनावों को लेकर क्या सोच है, इस पर TV9 ने एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है.
कश्मीर पंडितों की चुनाव में भूमिका
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कश्मीरी पंडितों के लिए दो नामित सीटें आरक्षित की गई हैं. वहीं, बीजेपी ने कश्मीर घाटी में दो कश्मीरी पंडित उम्मीदवारों को जगह है. हालाकि अभी तक बीजेपी का घोषणा पत्र जारी नही हुआ है. बता दें कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के अलायंस और पीडीपी ने अभी तक कश्मीरी पंडित उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है लेकिन दोनों पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का विशेष जिक्र किया है।
क्या सुरक्षा है कश्मीरी पंडितों का चुनावी मुद्दा?
लंबे समय से आतंकियों के निशाने पर रहे कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा भी इस बार का एक अहम चुनावी मुद्दा है. कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उनकी स्थायी रिहैबिलिटेशन के लिए यह आवश्यक है कि कश्मीर में काम कर रहे सभी कश्मीरी पंडितों को जहां-जहां वे रहते हैं, वहां सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे बिना डर के रह सकें.
चुनावों से कश्मीरी पंडितों को क्या उम्मीद?
कश्मीरी पंडित समाज पिछले तीन दशकों से अपनी घर वापसी के लिए संघर्ष कर रहा है. हालांकि, पहले भी कई चुनावों में राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया. बावजूद इसके, कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग इस बार के चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की तैयारी कर रहे हैं ताकि उनकी आवाज़ केंद्र तक पहुंच सके और उनके मुद्दों का समाधान हो सके.