जिम कार्बेट जाने के लिए बेस्ट है ये महीना, बुकिंग से लेकर रूट तक जानिए

पूरब के आसमान में लाली छायी थी, सूरज उगने को बेताब था. दूसरी तरफ़ के आसमान में कृष्ण पक्ष की पंचमी का चंद्रमा अपनी आभा बिखेर कर ढलता जा रहा था. हम सब चुपचाप दम साधे खुली जिप्सी में बैठे थे. झींगुर से ले कर जंगल के हर पशु, पक्षी व कीटों के बोलने की आवाज़ ही सुन रही थीं. बाक़ी सब सन्नाटा! दूर-दूर तक और कोई जिप्सी नहीं न पर्यटक. एक मिनट, दो मिनट और क़रीब 30 मिनट गुजर गए, झाड़ी में से एक खरगोश तक न निकला तो हमारी जिप्सी के ड्राइवर राम बाबू ने कहा, लगता है कि टाइगर किसी और रास्ते से निकल गया. तब हम चले और इस अफ़सोस के साथ कि आज भी शेर (टाइगर) नहीं मिला. राम बाबू ने सांभर की कॉल से अंदाज़ लगाया था कि शेर पास के वाटर होल से पानी पी कर निकला है.
बाघिन की झलक दिखी
यह जिम उत्तराखंड में स्थित कॉर्बेट नेशनल पार्क का बाघ अभयारण्य था. यहीं पर झिरना रेंज और यूपी के अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व की सीमा मिलती थी. दोनों तरफ़ अलग-अलग रेंज की चौकियां थीं. इनमें फ़ॉरेस्ट गार्ड तैनात रहते हैं. करीब 200 मीटर तक दोनों के बीच एक कंटीली बाड़ थी, जिसमें रात को सोलर पावर का करंट दौड़ाया जाता था. लेकिन यह बाड़ सिर्फ मनुष्यों के लिए है, जानवर कोई सीमा नहीं मानते. हम इस स्थान से गुजर कर 100 मीटर पहुंचे होंगे कि अचानक बाईं तरफ की झाड़ी से एक बाघिन निकली और पीछे दो शावक. वे मस्त चाल से आगे बढ़ने लगे. ड्राइवर ने तत्काल गाड़ी रोक दी और इशारे से चुप रहने को कहा. कुछ देर के लिए हमारी तो बोलती बंद हो गई. धीरे-धीरे बाघिन दूर होती गई और फिर सड़क पार कर दूसरी तरफ की झाड़ियों में कूद गई. हम मंत्र-मुग्ध से देखते रहे, यह भी होश नहीं रहा, कि फोटो ले लेते.
निर्भय और निडर बाघ का ठाठ!
जिम कॉर्बेट की वह बाघिन तो हमें झलक दिखा कर चली गई, किंतु संतोष की बात यह थी कि अभी हमारे पास वक्त था. जंगल में हमें अभी दो रातें और गुजारनी थीं. सुबह-शाम हमें अभी कई बार राउंड लेने थे. सोचा आज नहीं तो शाम को सही. सूरज अब खूब चढ़ आया था. धूप तंग कर रही थी. उसी दिन शाम को जब हम जिप्सी से राउंड पर निकले तब हमारे साथ एक वाइल्ड लाइफ़ फोटोग्राफर की जिप्सी भी निकली. हमने उसी के आसपास रहने का फ़ैसला किया. वह फोटोग्राफर मुंबई से आया था और उसे अगली सुबह निकलना था.
काफी दूर जाने के बाद हमने देखा कि उसकी जिप्सी एक झुरमुट में खड़ी है. फोटोग्राफर पीछे बैठा, कैमरे को एक दिशा में लगाये था. हमारे ड्राइवर ने भी थोड़ी दूर पहले जिप्सी निकली. क़रीब 20 मीटर की दूरी पर एक बाघ निकला और एक तरफ से सड़क पार कर चुपचाप बढ़ने लगा. हमने जिप्सी धीरे-धीरे बढ़ानी शुरू की. अब हम उसके काफी निकट थे. उसकी चाल में एक राजसी ठाठ था. हम भले पास हो किंतु उसे कोई भय नहीं था, वह निर्भय, निडर आगे बढ़ रहा था. करीब छह फुट लंबा यह बाघ बहुत कमनीय लग रहा था. परंतु हमारे अंदर तो एक भय था. थोड़ी देर बाद वह दूसरे झुरमुट में घुस गया और आंखों से ओझल हो गया.
नवंबर से मार्च ही कॉर्बेट घूमने का आनंद
अपने देश में घूमने का मौसम अक्टूबर से मार्च तक का है. जब न चिलचिलाती गर्मी होती है न हाड़-कंपाऊं ठंड. यूं भी भारत देश के तीन तरफ़ समुद्र है और उत्तर में हिमालय. इसलिए अक्टूबर से मार्च ही यहां घूमने का असली सीजन है. बाक़ी में या तो गर्मी अथवा बारिश. यूं तो भारत में कई टाइगर रिजर्व हैं लेकिन जिम कॉर्बेट की बात अलग है.
15 जून से यह बरसात के कारण बंद हो जाता है और फिर 15 नवंबर को खुलता है. लेकिन अप्रैल के पहले हफ़्ते से ही यहां गर्मी पड़ने लगती है, इसलिए दोपहर को घूमना बहुत मुश्किल होता है और जानवर भी झाड़ियों के भीतर जा कर सुस्ताने लगते हैं. इसे में घूमना निरर्थक होता है. दिसंबर अंत से ही कड़ाके की ठंड पड़ने लगती है, इसलिए बेहतर है कि यहां नवंबर, दिसंबर और फरवरी मार्च में ही जाएं. कुछ भी हो बाघ अगर देखने हों तो उत्तराखंड का जिम कार्बेट और यूपी का अमानगढ़ सबसे उम्दा अभयारण्य हैं.
जंगल के गेस्ट हाउस की ऑफलाइन बुकिंग
दिल्ली से जिम कार्बेट जाने का सबसे सुगम रास्ता है वाया गजरौला, मुरादाबाद, ठाकुरद्वारा, काशीपुर और राम नगर होकर है. लेकिन मुरादाबाद से ठाकुरद्वारा के बीच सड़क बहुत ख़राब है. इसलिए लौटने में हमने रूट रामनगर से कालाढूंगी, बाजपुर, रुद्रपर से रामपुर का बनाया. वहां से दिल्ली के लिए एनएच-24 (इसे अब एनएच-9 कहते हैं) पर चढ़े. रामनगर में रात बिताकर सुबह आप जिम कार्बेट में प्रवेश ले सकते हैं.
जिम कार्बेट के अंदर वन विभाग के रेस्ट हाउसेज हैं पर उनमें बुकिंग पहले से करानी पड़ती है. इनमें से कुछ ऑनलाइन बुक होते हैं, लेकिन कोर एरिया वाले ऑफ लाइन. जितने भी प्राइवेट होटल या रिजॉर्ट हैं, वे इन रेंज के बाहर हैं. ये होटल महंगे भी हैं, 5 से 10 हज़ार के बीच में सामान्य दर्जे के होटल हैं. वहां से जंगल सफ़ारी का आनंद लेने के लिए आपको रेंज के अंदर जाना पड़ेगा. जिसका समय फिक्स है, इसके बाद फिर आप बाहर. लेकिन रेंज के भीतर फ़ॉरेस्ट के गेस्ट हाउस में रुकना बेहतर रहता है. जिम कॉर्बेट के किसी भी रेंज में जाने के लिए आपको अपनी गाड़ी राम नगर में छोड़नी पड़ेगी और सफारी वालों की जिप्सी ले कर ही आप फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस तक जा सकते हैं. रेंज के अंदर निजी गाड़ी ले जाने की अनुमति नहीं है.
झिरना का वन विश्राम गृह 116 साल पुराना
यहां जिप्सी आपको 3500 रुपए प्रतिदिन की दर से मिलती है. अंदर जाने का परमिट आपको राम नगर के परमिट ऑफिस से मिलेगा. इसके तहत प्रति व्यक्ति फीस 250 रुपए, ड्राइवर की परमिट फ़ीस भी आपको देनी होगी. जिप्सी की एंट्री का 1000 रुपए अलग से. अंदर के रेस्ट हाउस 1250 से 2500 रुपए प्रति कमरे की दर से मिलेंगे. चूंकि बहुत सीमित रेस्ट हाउस हैं इसलिए कम से कम दो महीने पहले बुकिंग कराएं. मैने झिरना रेंज के ओल्ड फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस तीन दिन दो रातों के लिए बुक क़राया था.
चूंकि यह 1908 का बना हुआ है और आज भी उसकी वैसी ही शक्ल है. इसलिए यह रेस्ट हाउस 5000 रुपए प्रति दिन की दर से था. अलबत्ता सीनियर सिटिजन होने के कारण हमें दोनों कमरे आधी दर पर मिले थे.
दिल्ली से बहुत करीब
इस सुइट में दो बेड रूम और एक ड्रॉइंग रूम था. अंदर रूम सर्विस का 4000 रुपए लेते हैं और खाने का प्रति मील प्रति व्यक्ति 300 रुपए. इस रेंज के लिए ढेला गेट से प्रवेश करते हैं, जो राम नगर से 20 किमी है. उधर धनगढ़ी गेट से प्रवेश लेकर आप ढिकाला पहुंच सकते हैं, वहां पर फॉरेस्ट के रेस्ट हाउसेज के अलावा एक गेस्ट हाउस भी हैं, उसमें कई रूम मिल जाते हैं. इसके अलावा रामनगर-धनगढ़ी रूट में रामगंगा के किनारे बहुत सारे प्राइवेट होटल और रिजॉर्ट भी हैं.
दिल्ली से जिम कार्बेट की दूरी 245 किमी है तो लखनऊ से 450 किमी. दोनों ही राजधानियों से रेल सेवा भी है और बस सेवा भी. निजी गाड़ियों से भी पहुंचा जा सकता है. दोनों ही स्थान से हाइवे कामचलाऊ हैं. लखनऊ से एनएच-9 के जरिए आप बरेली आ सकते हैं और वहां से पंतनगर होते हुए जिम कार्बेट पहुंचा जा सकता है. यह एनएच-9 बस सीतापुर तक ही बेहतर है और फोर लेन है, जबकि दिल्ली से मुरादाबाद तक एनएच-9 फोर लेन का है.
मनाली आम पर्यटकों के लिए नहीं
आगे का रास्ता आप सामान्य जिला पंचायत व स्टेट हाइवे पर चलते हुए पूरी करते हैं. गजरौला के सिवाय खाना-पीना रास्ते में नहीं मिलेगा. इसलिए बेहतर रहे कि गजरौला के मिड वे पर ही भोजन या ब्रेकफास्ट कर लें. मुरादाबाद शहर में जाने की कोई जरूरत नहीं है. इसी तरह लखनऊ से आने वालों के लिए बेहतर स्थान हाइवे होटल हैं या फिर बरेली के होटल-रेस्त्रां. जिम कार्बेट के अंदर ढिकाला के अलावा सुल्तान, ब्रजरानी और मनाली सर्वोत्तम गेस्ट हाउस हैं. इसमें से सिर्फ ढिकाला और ब्रजरानी ही पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं. मनाली में आमजन के प्रवेश की मनाही है. वहां जाने के लिए आपको वन विभाग से विशेष अनुमति लेनी होगी और आपको बताना होगा कि आप मात्र घुमक्कड़ी का शौक नहीं रखते बल्कि आपको वाइल्ड लाइफ में रुचि है.
तेंदुओं का भय
सुल्तान में तेंदुए बहुतायत में हैं और पहले तो वहां फॉरेस्ट रेस्ट हाउस की बालकनी में आराम फरमाते मैंने उन्हें 1990 के आसपास देखा था. मनाली रेंज सबसे दुर्गम है और यहां भालू, हाथी तथा बाघ निर्द्वंद घूमा करते हैं. इसीलिए इस रेंज में टूरिस्ट सफारी पर रोक लगी है. हमने तो मनाली में कई बार पैंथर, टाइगर, अजगर और भालू तो देखे ही हैं. यहां का रेस्ट हाउस 1929 का बना हुआ है और यहां बिजली नहीं है. रात को जब आप अपने कमरे से बाहर आएं तो देखें कि रेस्ट हाउस की कटीली बाड़ की परली तरफ असंख्य लाल चमकती हुई आंखें आपको घूर रही होती हैं. ये दरअसल वे हिंसक जानवर हैं जो रेस्ट हाउस के अंदर आने को आतुर होते हैं पर बाड़ पर दौड़ता सोलर पावर का करंट उन्हें बाड़ के भीतर घुस आने से रोके रखता है.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *